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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सौराष्ट्रम् १२०८ स्कन्धः सौराष्ट्रम् (नपुं०) सौराष्ट्र प्रदेश। सौरिः (पुं०) [सूरस्यापत्यं पुमान् इञ्] शनिग्रह। सौरिक (वि०) दिव्य, स्वर्ग सम्बंधी। आसवीय, मदिरा सम्बंधी। सौरिकः (पुं०) शनि। ० स्वर्ग। ० कलाल, ० मदिरा। सौरी (स्त्री०) सूर्य पत्नी। सौरीय (वि०) सूर्य सम्बधी। सूर्य के योग्य। सौर्य (वि०) सूर्य से सम्बंधित। सौलभ्यम् (नपुं०) [सुलभ+ष्यञ्] सुलभता, सुगमता। ० प्राप्ति की सुविधा। सौल्विकः (पुं०) [सुल्व+ठक्] ताम्रकार, कसेरा। सौव (वि०) स्वर्गीय, दिव्य।। सौवम् (नपुं०) आदेश, राजाज्ञा। सौवग्रामिक (वि०) गांव से सम्बन्धित। सौवर (वि०) एक ध्वनि विशेष, स्वर सम्बंधी। सौवर्चल (वि०) [सुवर्चल+अण] सुवर्चल नामक देश को प्राप्त। सौवर्ण (वि०) [सुवर्ण+अण्] सुनहरी। ० स्वर्णमुद्रा के तुल्य। सौवर्ण्य (वि०) शोभनो वर्णो रूपं यस्य स-अच्छा वर्ण। सौवस्तिक (वि.) [स्वस्ति+ठक्] आशीर्वादात्मक। सौवाध्यायिक (वि.) [स्वाध्याय ठक्] स्वाध्याय सम्बंधी, स्वाध्यायी। सौविदः (पुं०) [सु+विद्+क अण् सुष्ठु विदन्नृपः लं लाति-ला+क+अण] कञ्चकी, अन्तःपुर का बृद्ध व्यक्ति। (जयो० ५/६०) सौवीरम् (नपुं०) [सुवीर+अण] बेर फल। ० अंजन, सुरमा। ० कौजी। सौवीरकः (पुं०) [सौवीर-कन्] बेरी, बेर का पेड़। सौवीर्यम् (वि.) [सुवीर+ष्यञ्] विक्रम, वीरता। सौष्य (वि०) पराक्रम्प। सौशील्यम् (नपुं०) [सुशील+ष्यञ्] सदाचरण, नैतिक आचरण। सौश्रवसम् (नपुं०) [सुश्रवस+अण्] ख्याति, प्रसिद्धि, कीर्ति। सौष्ठवम् (नपुं०) परकौशल, पुष्टता, सौन्दर्य, लालित्य। लोमोत्थितिः सौष्ठववैजयन्त्यां, सुमेषु साम्राज्यपदं लिखन्त्याम्। (जयो० ११/३२) ० सौन्दर्य, सुंदरता। (जयो० ११/९२) ० भलाई, चतुराई, श्रेष्ठता, रमणीयता। इहाङ्गसम्भावित सौष्ठवस्य (जयो० १/४६) सौस्थ्य (वि०) सुस्थिति युक्त। (जयोवृ० १/३०) सौस्नातिकः (पुं०) [सुस्नात+ठक्] स्नान को पूछने वाला। सौहार्दः (पुं०) [सुहृद्+अण्] मित्र का पुत्र। सौहार्दम् (वि०) सरलभाव। (हित०५०) ० मैत्रीभाव-सौहार्दमणिमात्रे तु क्लिष्टे कारुण्यमुत्सवम्। (सुद० ४/३५) ० मित्रता। (दयो० ६२) ० सद्भाव, मैत्री, स्नेह। ० आश्वासन। (जयो०वृ० १३/१७) सौहार्दभावः (पुं०) सरलभाव। सौहार्दसूचक (वि०) आश्वासन युक्त। (जयो० १३/१७) सौहार्यम् (नपुं०) [सुहृद्+ष्यञ्] मित्रता, स्नेह, प्रेमभाव। सौहित्यम् (नपुं०) [सुहित+ष्यञ्] ० तृप्ति, संतुष्टि। ० सद्भावना। ० पूर्णता, पूर्ति। ० कृपालुता। सौहृद (वि०) सभ्यता, सद्भावना। (जयो० ४/४८) स्कन्द (अक०) कूदना, उछलना, गिरना, टपकना। स्कन्द् (सक०) उठाना, फैलाना। स्कन्दः (पुं०) उछना। ० कार्तिकेय का नाम। ० शिव। ० चतुर व्यक्ति। स्कन्दनम् (नपुं०) क्षरण, बहना, गिरना, रिसना। स्कन्दपुराणम् (नपुं०) अष्ठादश पुराणों में से एक पुराण। स्कन्ध् (सक०) एकत्र करना, चुनना, इकट्ठा करना। स्कन्धः (पुं०) [स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखाया वा कर्मणि घञ्] ० कन्धा अक्षोपरिप्रदेश (जयो० १४/३६) ० वृक्ष का तना, शाखा, डाली, पेड़ी, तना। (सुद० १३२) ० परिच्छेद, अध्याय, खण्ड। ० पथ, मार्ग, रास्ता। ० संग्राम, युद्ध, लड़ाई। ० सम्पूर्ण अंशों से परिपूर्ण। स्कन्धं सर्वांशसम्पूर्णं भवन्ति। (गो०जी० ६०४) ० अनन्त प्रदेशों से युक्त, अन्तानन्त परमाणुओं से युक्त। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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