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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धिकरणं ११८५ सीतानकः ० कार्यनिष्पत्ति। (जयो० १०/८४) ० प्रसिद्धि, ख्याति। सिद्धान्तप्रसिद्धान् वसुकर्ममुक्तान् (सिद्ध भक्ति०९) ० समृद्धि। कार्य सिद्धि। (सुद० ९१) कार्य सम्पन्नता। (सम्य०१४) ० प्रयोजन। (दयो० ३२) ० प्रतीत, आभास। (सम्य० ११६) ० अनन्त ज्ञानादि स्वरूपोपलब्धिः। सिद्धिकरणं (नपुं०) सिद्धि प्रक्रिया। (जयो० १/३१) सिद्धिगत (वि०) प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ। सिद्धिदात्र (वि०) कल्याण देने वाला। सिद्धि प्रियः (पुं०) कल्याण प्रिय। (सम्य० १५) सिद्धिमार्गः (पुं०) मुक्तिपथ। (हित०२) सिद्धिवधू (स्त्री०) मुक्ति लक्ष्मी। (वीरो० २१/२२) सिद्धिवनिता (स्त्री०) मुक्तिवधू। (वीरो० २१/२४) सिद्धिश्री (स्त्री०) मुक्तिलक्ष्मी। (वीरो० २१/२०) सिधु (सक०) सिद्ध होना, मुक्त होना। (भक्ति०१) स्ववाञ्छितं सिद्धयति येन तत्प्रथा। प्रयाति लोक! परलोकसंकथा। (वीरो० ९/११) ० सम्पन्न होना, पूर्ण होना। ० प्रमाणित होना। सिधाला (वि०) सुख देने वाला। (समु० १/२२) सिध्मम् (नपुं०) [सिध्+मन्] छाला, खुजली। ___० कोढ़, कुष्ठ ग्रस्त स्थान। सिध्यः (पुं०) [सिध्+णिच्+यत्] पुष्य नक्षत्र। सिनः (पुं०) [सि+नक्] ग्रास, कौर, कबल। सिमी (स्त्री०) गौर वर्ण की स्त्री। सिन्दुकः (पुं०) एक वृक्ष विशेष। सिन्दूरः (पुं०) एक प्रकार का वृक्ष। सिन्दूरम् (नपुं०) सिंदूर, लाल वर्ण का, जो सुहागिन स्त्रियों के द्वारा अपनी मांग में भरा जाता है। सौभाग्य सूचक। (जयो०३/५९) सिन्दूरकला (स्त्री०) सौभाग्यकला। (जयो० १४/८१) राग परिणाम। (जयो० ११/११) सिन्दूलम् (नपुं०) सिंदूर। (जयो० १३/१०७) सिन्धुः (पुं०) [स्यन्द्-उद् संप्रसारणं दस्य धः] उदधि, सागर, समुद्र, वारिधि। (सम्य० १२५) (जयो० ५/३४) (सुद०१/३) ० सिन्धु नदी। (वीरो० २।८, ४/१२) सिन्धुकः (पुं०) एक वृक्ष विशेष। सिन्धुदेशाधिपति (पुं०) सिन्धुदेश का राजा। (जयो० ६/५८) सिन्धुनदः (पुं०) समुद्र। (सुद० १/१४) सिन्धुनदी (स्त्री०) सिन्धु नामक नदी। (जयो० ६/५८) सिन्धुनिर्मथनम् (नपुं०) समुद्र मंथन। (जयो० १४/८८) सिन्धुपति (पुं०) सिन्धु देश का राजा। ___० समुद्र। (जयो०वृ० ६/५८) सिन्धुरः (पुं०) [सिन्धु+र] हस्ति, हाथी, कटि। (जयो०१३/३२) सिन्धुवधू (स्त्री०) नदी रूप वधू। (जयो० १३/९६) सिन्व् (सक०) गीला करना, तर करना। सिप्रः (पुं०) पसीना, स्वेद, प्रस्वेदजल। (जयो० १३/७९) (जयो० १२/१२२) ० निदाघसलिले सिप्रे' इति वि' (जयो० १४/९३) ० चन्द्र। सिप्रझर (वि०) पसीना झरना। (जयो० १४/९३) सिप्रभाग (वि०) पसीना बहने लगना। (जयो० १२/१२२) ___ 'जनस्तत्रौष्ठयसम्भावनयापि' (जयो० १२/२२) सिप्रशिवः (पुं०) प्रस्वेदजल, पसीना। (जयो० १३/७९) सिप्रा (स्त्री०) सिप्रा नामक नदी, जो उज्जैनी नगरी के समीप बहती है। ० करधनी, कन्दौरा, तगड़ी। सिम (वि०) [सि+मन्] सम्पूर्ण, सब, समस्त। सिरः (पुं०) [सि+टक्] पीपलमूल। सिरा (स्त्री०) [सिर+टाप्] धमनी, नाड़ी। हिस्सा। सिव् (सक०) सीना, रफू करना। सिवरः (पुं०) हस्तिी, हाथी। सिसृक्षा (स्त्री०) [सृज्+सन्+डा+टाप्] रचना भाव। सिहुण्डः (पुं०) सेहुंड नामक पौधा। सिहकः (पुं०) गुग्गुल, गन्धद्रव्य। सीक् (सक०) छिड़कना, बखेरना। सीकरः (पुं०) [सीम्यते, सिच्यतेऽनेन-सीक्+अरन्] फुहार, जलकण। सीत्कृतिः (स्त्री०) सीतकार शब्द-सिसकारी। रदच्छदं सीत्कृतिपूर्वक। (वीरो० ९/२३) सीता (स्त्री०) ० सीता नामक नदी, ० जनकात्मजा। (जयो० १३/५३) ० सीता राम पनि। मिथिलानरेश की पुत्री। (जयो०६/१२०) ० हल की रेखा, खेत की खुदी हुई रेखा। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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