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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन्यास-आश्रमः ११४२ सप्तधातु वैराग्यभाव, विरक्ति परिणाम। ०धरोहर, निक्षेप। योगी। (जयो० २/११७) सन्यास-आश्रमः (पुं०) योगी आश्रम। (जयो० २/११७) (जयो०वृ० १८/४८) सन्यासाश्रमः (पुं०) योगी आश्रम, तपस्वी स्थल। सन्यासिन् (पुं०) त्यागी, विरक्ति। (जयो० २६/१०३) विरागी (दयो० २५) सन्यासोपनिषद् (वि०) सन्यास सम्बंधी उपनिषद। (दयो० २५) सन्योगुणः (पु०) सज्जन गुण। (समु०१/२४) सन्विहर (वि०) साथ में विहार करने वाला। (समु० ३/८) सप् (अक०) सम्मान करना, पूजा करना। सपक्ष (वि०) पक्षेण सह-पंखों वाला। ०पक्षवाला, दलवाला। ०बन्धु, सदृश, समान। सपक्षः (पुं०) समर्थक, अनुगामी, पक्षपाती। सजातीय, सम्बंधी। सपक्षता (वि०) पक्षपना-रुचि। (जयो० २८/३२) सपक्षयुक्तता (वि०) पक्षसहितपन। (जयो० २८/३२) सपत्नः (पुं०) [सह एकार्थे पतति पत् न सहस्य सः] शत्रु, | विरोधी। सपत्नी (स्त्री०) [समानः पतिः यस्याः] ०अपनी भार्या, निजाङ्गना। (जयो०८/६४) प्रतीयत्नी-सौत। (जयो० १४/३०) सहपत्नी, सौत। सपत्नीक (वि०) [सपत्नी+कप्] पत्नी सहित। सपत्नीगणः (पुं०) स्त्रीसमूह। (जयो०१० २३/२७) सपत्राकरणं (नपुं०) [सह पत्रेण सपत्र+डाच्+कृ+ल्युट्] अत्यंत पीड़ाजनक। कष्टदायी। सपत्राकृतिः (स्त्री०) [सपत्र+डाच्+कृ+क्तिन्] वेदना, पीड़ा, सन्ताप, दु:ख। सपदि (अव्य०) [सह+पद्+इन् सहस्य सः] इस समय, अब (सुद०८१) (जयो० १/९५) ०अधुना। (जयो० ५/४) (जयो० ३/५) शीघ्र, तुरंत। (सुद० ४/३०) ०तत्काल, तत्क्षण। सपर्ण (वि०) पर्ण सहित-पत्र सदश। (जयो०८/४१) सपर्या (स्त्री०) [सपर+यक+अ+टाप] पर्युपासना (जयो० २२/३६) अर्चना, पूजा, प्रार्थना। (वीरो० ५/६) ०सम्मान, आदर। सपर्यापर (वि०) पूजा में तत्पर। (वीरो० ५/६) सपाद (वि०) [सहपादन] पैरों वाला। एक चौथाई बड़ा हुआ। सपिक्ष (वि०) पिक्ष सहित-पार्श्व पिच्छया मयूर पक्ष निर्मिता (जयो० २१/२८) सपिण्डः (पुं०) [समानः पिंडा मूलपुरुषो निवापो वा यस्य] पिण्डदान देने वाला। सपिण्डिकरणं (नपुं०) पिण्डदान करना। सपीतिः (स्त्री०) [सह एकत्र पीति:-पानं+पा+क्तिन] सहपान, मिलकर पान करना। सपूत (वि०) पुत्र युक्त। (समु० ९/२) सप्रकाशकर (वि०) स्व प्रकाशक। (हित० ४३) सप्त (नपुं०) सात। (जयो० १/१९) सप्तक (वि०) [सप्तानां समूह:] सातवां, सात की संख्या वाला। सप्तकी (स्त्री०) [सप्तभिः स्वरैः इव कायति शब्दायते सप्तन्+कै+क+ङीष] 'करधनी 'ति प्रसिद्धा मेखला। (जयो० १५/४६) करधनी, कंदौरा, तगड़ी। सप्ततिः (स्त्री०) [सप्तगुणिता दशतिः) सत्तर। सप्तधा (अव्य०) [सप्तन्+धाच्] सात प्रकार से, सात गुणा। सप्तन् (सं०वि०) [सदैव बहुवचनान्त] सात, सात संख्या। (सुद० १०८) सप्तचत्वारिंशत् (स्त्री०) सैंतालीस। सप्तच्छ्रदः (पुं०) सप्तपर्ण। (वीरो० १३/११) सप्तच्छदगन्धवाहः (पुं०) सप्तपर्ण वृक्षों की सुगन्ध-ते शारदा गन्धवहाः सुवाहा वहन्ति सप्तच्छदगन्धवाहाः। (वीरो० २१/२४) सप्तजिह्वः (पुं०) आग, अग्नि। सप्तज्वालः (पुं०) आग, अग्नि। सप्ततत्त्व (नपुं०) सात तत्त्व। जीवाजीवादि ज्ञान। सप्तत्रिंशत् (स्त्री०) सैंतीस। सप्तदशन् (वि०) सत्रह। सप्तदीधितिः (स्त्री०) अग्नि, आग। सप्तद्वयोदारः (पुं०) चौदह। (वीरो० ११/५) सप्तद्वीपा (स्त्री०) पृथ्वी। सप्तधातु (पुं०) सात प्रकार की शारीरिक धातुएं। अन्नरस, रुधिर, मांस, चर्बी, हड्डी, मज्जा और वीर्य। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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