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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संशयः ०शंका, शक- ० अनिर्णय की स्थिति । ० अनवस्थित कोटि | | संशय: (पुं०) [सम्+शी+अच्] संदेह, अनिश्चितता, संकोच ० मिथ्या (जयो० २/८६) www.kobatirth.org १११२ संशयगत ( वि०) शंका को प्राप्त हुआ। संशयछेदः (पुं०) आशंका का निवारण | संशयनिवारक (वि०) संदेह प्रतिकारी (जयो०वृ० ३ / ९६ ) संशयमिध्यात्वं (नपुं०) वस्तु स्वरूप का निश्चय न होना- सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः किं भवेन्नो वा। संशयवचनीभाषा (स्त्री०) संदिग्ध वचन युक्त भाषा संशयान् (वि०) [सम्+शी+ शानच् संशय+आलुच् ] संदेहपूर्ण, अस्थिर, अनिश्चित, चंचल । संशयालंकारः (पुं०) संशय अलंकार। जिसमें धर्मसाम्य के कारण अमुक वस्तु यह है कि यह है इस प्रकार जब संशय की उद्भावना होती है तब संशय अलंकार होता है। इदमेतदिदं वेति साम्याद् बुद्धिर्हि संशयः । हेतुभिर्निश्चयः सोऽपि निश्चयान्तः स्मृतोयण । (वाग्भट्रा ०४ /७८) धान्यस्थली पालक-बालिकानां गीतश्रुतेर्निश्चलतां दधानाः । चित्तेऽध्वनीनस्य विलेप्यशङ्का मुत्पादयन्तीह कुरङ्गरङ्का ।। (वीरो० २ / १३) संशयित (वि०) शंका से युक्त संशयितमिथ्यात्वं (नपुं०) संशयपूर्वक श्रद्धान होना । संशरणं (नपुं०) [सम् + शृ + ल्युट् ] आक्रमण, युद्ध का आरम्भ । ० चढ़ाई, धावा । संशायिन (वि०) शयन भाव युक्त। (जयो० १७/१८) संशित (भू० क० कृ० ) [ सम्+शो+क्त] तेज, तीक्ष्ण। संशुद्ध (भू० क० कृ० ) [ सम्+शुभ् +क्त] निर्णीत सुनिश्चित, निर्धारित निश्चित | ०क्रियान्त्रित पूर्ण किया गया। संशीर (पुं०) संत (वीरो० १२/१४) संशुच् ( अक० ) सोचना, विचारना - संशोच्यताम् । (जयो० १८/४१) ० विशुद्ध, पवित्र, श्रेष्ठ। (जयो०वृ० १/१५) ० सुसंस्कृत, अभीष्ट । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संचित संशुद्धि (स्त्री० ) [ सम्+शुभ् क्तिन्] विशुद्धि, परिशुद्धि, विशेष शुद्धि, पूर्णनिर्मलता, स्वच्छता। ० परिशोधन, संशोधन, समाधान 'आग संशुद्धये राजा सुदर्शनमहात्मनः' (सुद० १०९ ) संशुध् (सक०) पवित्र करना, स्वच्छ करना, संशोधन करना। निर्मल करना संशोधयेमुर्दभत्सदारीञ्जना (वीरो० १७/१५) ०प्रतिक्रमण करना। 'तदर्थं प्रतिक्रमणं करोतीत्यर्थः ' (जयो० २७/५१) ० साफ करना, परिमार्जित करना (जयो०वृ० १३ / १६) संशोधयेत् । ( मुनि० १२ ) संशोचनीय (वि०) विचारणीय (वीरो० ९/४५) संशोधनं (नपुं० [सम्-शुभ् + ल्युट् ] ० समन्वेषण । (जयो० २४/९८ ) ० पवित्रीकरण, स्वच्छ, शुद्ध । ० परिमार्जन, प्रक्षालन (मुनि० १३) संशोधनकर्त्री (स्त्री०) विशोधिनी, परिमार्जित करने वाली स्त्री । (जयो० १२ / ९६ ) संशोधित (भू०क० कृ०) परिमार्जित । (वीरो० २२/४ ) स्वच्छता युक्त संशोधितं में भवताच्चरित्रम् । ( भक्ति० ४९ ) संश्चत् (नपुं०) [सम्+श्चु+डति] दाव पेंच, जादूगरी, इन्द्रजाल, मरीचिका । संश्यान (भू०क०कु० ) (सम्+श्यै+क्त] संकुचित, सिकुड़ा हुआ । ०जमा हुआ, ठिकुरा हुआ, ०लपेटा हुआ, ० अवसन्न। संश्रत (वि०) आरुढ़ । (मुनि० ३) संश्रयः [सम्+ श्रि+अच्] आवास स्थल, निवास स्थान, आरामगृह, विश्राम स्थल । (सुद० १ / १५ ) तदेकदेशः शुचिसन्निवेशः श्रीमान् सुधीमानवसंश्रये सः (सुद० १ / १५ ) For Private and Personal Use Only ० आश्रय, आधार, शरण, आश्रम । संश्रवः (पुं० ) [ सम् + श्रु+अप्] प्रतिज्ञा । (जयो० १३ / २० ) वचनबद्धता । ध्यानपूर्वक सुनना । संश्रवणं (नपुं०) [सम्+श्रु+ल्युट्] सुनना। ०कर्ण, कान। निशमन । (जयो० ६/३९) संश्रि (सक०) आश्रय देना (जयो० ३/६५) संश्रित (भू०क० कृ० ) [ सम् + श्रि+क्त] आश्रय दिया हुआ, सहारा दिया हुआ। ० शरण में गया।
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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