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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रौतभाव ११०१ श्लिष्टोपमा श्रौतभाव (वि०) याज्ञिक भाव वाला। सेवा, वैयावृत्य। श्रौत सूत्रं (नपुं०) वेदसूत्र संचय। ०कामना, इच्छा, वाञ्छा, चाह। श्रौत्रं (नपुं०) [श्रोत्र स्वार्थे अण्] कर्ण, कान। वेद प्रवीणता। | श्लाधित (भू०क०कृ०) [श्लाज+क्त] प्रशंसा किया गया, श्रौषट् (अव्य०) आहूति सम्बंधी उच्चारण, पूजन के समय स्तुति किया गया। आह्वान पर बोला जाने वाला शब्द। प्रशंसित, स्तुत्य, प्रशस्य। श्लक्ष्ण (वि०) [श्लिष्+कस्न] मृदु, कोमल, सौम्य, | श्लाघ्य (वि०) [श्लाघ्+ण्यत्] स्निग्ध। प्रशस्य, स्तुत्य। (जयो० १/५५) चिकना, चमकदार। प्रशंसनीय, महनीय। (जयो० १८/९६) स्वल्प सूक्ष्म, पतला, सुकुमार। प्रशस्त, धन्य। (जयो०वृ० १/१०७) ०सुंदर, लावण्य युक्त। संश्लिष्ट। (जयो०वृ० १/६१) श्लक्ष्णकं (नपुं०) [श्लक्ष्ण+कन] सुपारी, पूगीफल। शिलकु (वि०) कामुक, लंपट, लालची। श्लक्ष्णत्व (वि०) सचिक्कणता, चिकनापन। (वीरो० ३/३२) ०दास, आश्रित। श्लक्ष्णदेहं (नपुं०) स्निग्ध शरीर। कृश शरीर, पतला शरीर। श्लिक (नपुं०) नक्षत्र विद्या, फलित ज्योतिष। श्लक्ष्णभावः (पुं०) मृदुभाव, कोमल परिणाम। श्लिक्युः (वि०) लंपट, सेवक। श्लक्ष्णशरीरः (पुं०) स्निग्धतनु। (जयो०वृ० १३/८) श्लिष् (अक०) जलना, तप्त होना। श्ल ङ्क् (सक०) जाना, पहुंचना। श्लिष् (सक०) आलिंगन करना, गले लगाना। ग्रहण करना, लेना, समझना। श्लङ्ग (सक०) शिथिल होना, ढीला होना। बल होना। ०अंगीकार करना। चोट पहुंचना, क्षति पहुंचाना। जोड़ना, सम्मिलित करना। मिलाना। श्लथ (वि०) [श्लथ्+अच्] शिथिल, ढीला, थकान युक्त। श्लिषा (स्त्री०) [श्लिष्+अ+टाप्] ०खुला हुआ, फिसला हुआ। आलिंगन, भेंट, मिलन। ०जकड़ा हुआ। चिपकना, जुड़ना। ०बिखरा हुआ। श्लिष्ट (भू०क०कृ०) [श्लिष्+क्त] श्लघीकृत् (वि०) आश्लेष, शिथिल हुआ। (जयो० १८/९२) श्लिष्टिः (स्त्री०) [श्लिष्+क्तिन्] आलिंगन, परिरभण। श्लाख (अक०) व्याप्त होना, प्रविष्ट होना। श्लिष्टोपमा (स्त्री०) श्लिष्टोपमा नामक अलंकार। जहां दो श्लाघ् (सक०) प्रशंसा करना, स्तुति करना, पूजा करना, अर्थों की संभावना के साथ उपमा हो। अर्चना करना। यत्रास्ति व्यर्थानां च संभावयहेव त।। गुणगान करना, कीर्तन करना, सराहना करना। उपमा सादृशं अपि, श्लिष्टोपमा च उच्यते।। (जयो० वृ० श्लाघनं (नपुं०) [श्लाघ्+ल्युट] प्रशंसा करना, पूजा करना, ३/७७, ३/७६, ३/७५, ७९, ८/३२, ८/३३, १३/५८) गुणगान करना। कर्बुरासारसम्भूतं पद्मरागगुणान्वितम्। कीर्तन, सराहना। राजहंसनिषेव्यं च रमणीयं सरो यथा।। (जयो० ३/७६) श्लाघनीय (वि.) [श्लाघ+अनीयर] प्रशंसनीय। (दयो० ३१) कधुर सुवर्णस्य य आमारः प्रशस्य (जयो० १८/४१) प्रसारस्तेन सम्भूतं सम्पन्नम्। श्लाघा (स्त्री०) [श्लाघ्+अ+टाप्] वह मण्डप सरोवर के समान रमणीय है, क्योंकि सरोवर प्रशंसा, स्तुति, सराहना। (जयो० २/१५८) में तो कर्बुर अर्थात् जल का आसार/समूह होता है तो ०प्रशस्ति। (जयो०वृ० १/१६) मण्डप भी कर्बुर या सुवर्ण से बना हुआ है। ०सर्वप्रिया। (वीरो० १/१६) सरोवर में पद्म/कमल होते हैं तो यह मण्डप भी पद्मराग साधुर्गुणग्राहक एष आस्तां मणि से युक्त है। सरोवर में राजहंस होते हैं तो यह मण्डप श्लाघा ममारादसतस्तु तास्ताः' भी श्रेष्ठ राजाओं से सेवित है। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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