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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रद्दधता १०९३ श्रमणाधारः श्रद्दधता (वि०) श्रद्धा रखने वाले। (जयो० १/६८) श्रन्थ् (अक०) ०दुर्बल होना, विश्रान्त होना, ०थकना, उदास होना। श्रन्थः (पुं०) [श्रन्थ्+घञ्] ढीला करना, स्वतन्त्र करना। श्रन्थनं (नपुं०) [श्रथ्+ल्युट्] मारना, विनाश करना, निर्बल होना। ०प्रयत्न, चेष्टा। ०बांधना। ०मुक्त करना। श्रद्धा (स्त्री०) [श्रत्+या+अ+टाप्] oआस्था, विश्वास, निष्ठा, भरोसा। (जयो० १/६६, जयो०वृ० १/१६) आदर, सम्मान, तत्त्वार्थाभिमुखी बुद्धि। (सुद०७१) ०प्रबल इच्छा, विज्ञातार्थरुचि। (जयो० २/१४८) शान्ति, मन की स्वस्थता। (जयो० ४/६५) ०दोहद, गर्भशीला की आकांक्षा। श्रद्धानं (नपुं०) आस्था, विश्वास, रुचि। (सम्य ८२) श्रद्धाविधि: (स्त्री०) सम्मान विधि। (वीरो० २२/१५) श्रद्धापरिणामः (पुं०) समादर श्री गुण परिणाम। श्रद्धाभावः (पुं०) समादर भाव। श्रद्धालु (वि०) [श्रद्धा+आलुच्] निष्ठावान्, सम्मानशील। ०इच्छुक, अभिलाषी। विश्वास करने वाला। श्रद्दधता (वि०) श्रद्धा रखने वाला। (जयो० १/६८) श्रन्थ् (अक०) दुर्बल होना, विश्रान्त होना, थकना, उदास होना। श्रन्थः (पुं०) [श्रन्थ्+घञ्] ढीला करना, स्वतन्त्र करना। श्रन्थनं (पुं०) [श्रथ् ल्युट्] ०ढीला करना, खोलना। ०चोट पहुंचाना, मारना। विनाश करना, बांधना। श्रपणं (नपुं०) [श्रा+णिच् ल्युट्] गरम करना, उबालना, खोलाना। श्रपित (भू०क०कृ०) [श्रा+णिच्+क्त] गरम किया गया, उबलाया गया। श्रपिता (स्त्री०) मांड, कांजी। श्रम (अक०) चेष्टा करना, उद्योग करना, प्रयत्न करना। | परिणाम करना। (जयो० १८/३२) ०परिश्रम करना, मेहनत करना। ०ताश्चर्या करना, इन्द्रिय दमन करना। ० श्रान्त होना, थकना। दु:खी होना, म्लान होना, खिन्न होना। विश्राम करना। (जयो० २७/५८) श्राम्यति-विश्रामं करोति। श्रमः (पुं०) [श्रम्+घञ्] परिश्रम, चेष्टा प्रयत्न। (जयो० ३/८१) ०थकान, श्रान्त, परिभान्ति। (दयो० ३९) ०कष्ट, दु:ख। तपस्या, साधना। (वीरो० ) इन्द्रियदमन। व्यायाम। (जयो० ३/८२) श्रमकर्मिन् (वि०) मेहनती, परिश्रमी। श्रमकषित (वि०) थकाहारा। श्रमगतः (वि) परिश्रम को प्राप्त हुआ। श्रमजनित (वि०) परिनि:स्विन्न। (जयो० १३/७१) श्रमजलं (नपुं०) पसीना। श्रमण (वि०) [श्रम्+युच्] परिश्रमी, मेहनती। श्रमणः (पुं०) साधु, अनगार। संयती। त्यागी-क्षमायामस्तुविश्रामः श्रमणानां तु भो गुण! सुराजा राजते वंश्यः स्वयं माञ्चकमूर्धनि।। (जयो० ७/४६) समो सव्वत्थ मणो जस्स भवइ स समणो। सर्वग्रन्थविनिर्मुक्त, तपोनिष्ठ। श्रमणाः श्रमहन्तारं सत्त्वानां सन्ति साम्प्रतम। (दयो० श्रमणकर्मिन् (वि०) तपस्वी कर्म वाला। श्रमणगत (वि०) साधुपने को प्राप्त हुआ। श्रमणचर्या (स्त्री०) संयती की चर्या। श्रमणतपश्चर्या (स्त्री०) महाव्रती की तपाराधना। श्रमणधीरत्व (वि०) श्रमण की धीरता। श्रमण संघः (पुं०) साधु संघ। श्रमणसूक्तं (नपुं०) श्रमण सम्बंधी विचार। (दयो०) श्रमहन्तार (वि०) थकान दूर करने वाला। (दयो० १/१६) श्रमणाचारः (पुं०) संयत के आचार-विचार। श्रमणाधारः (पुं०) श्रामणों का अवलम्बन। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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