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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुगस्थानं १०७६ शुण्डारः प्रकाश, कान्ति। शयनीयोऽसि किलेति क्षायितः। ०अग्नि। (सुद०३/२२) शुगस्थानं (नपुं०) बाणासन। शुचिरश्मिन् (पुं०) चन्द्र, शशि। (जयो० ११/४९) शुङ्गः (पुं०) बड़ का पेड़, पेबंदी बेर। शुचिराट (पुं०) उत्तम राजा। (सुद० १००) शुङ्गा (स्त्री०) [शुङ्ग+टाप्] जौ की बाल, किशारु। शुचिर्वाक्यं (नपुं०) हर्षयुक्त वाक्य, मन्दहास युक्त वचन। शुङ्गिन् (पुं०) [शुङ्गा+इनि] वट वृक्ष। बड़ का पेड़। 'शुचिरवदाता चेति मदीयमिदं वाक्यमस्तीति' (जयो० शुच् (अक०) खिन्न होना, दु:खी होना। शोक करना, विलाप ११/५३) करना। (जयो० ५/२३) शुचिवारि (नपुं०) निर्मल जल। (जयो० १२/३२) ०पछताना, खेद करना। पुनीतवाक्य। शुच्शुचा (स्त्री०) शोक, संताप। (सुद० १/४१) शुचिव्रत (वि०) सद्गुणी, पुण्यात्मा। ०कष्ट, दु:ख, रंज। शुचिशर्वरी (स्त्री०) चन्द्र से युक्त चांदनी रात। शुचमापन्न (वि०) दुःखी, कष्ट को प्राप्त। (जयो०७० १२/३) शुचिस् (नपुं०) प्रकाश, कान्ति। (सुद० ३/१६) शुचि (स्त्री०) सफेद, धवल, शुभ्र। शुचिसन्निवेशः (पुं०) शुचिता का प्रवेश, पवित्रता का स्थान। शुचिनिशानमुदेति अदो बल्। (समु० ७/२) (सुद० १/१५) विमल, विशुद्ध, निर्मल। (जयो० १/६) शुचिस्मित (वि०) मधुर मुस्कान। निर्दोष, विशुद्ध। (जयो० २/८०) शुचिहास (वि०) प्रेमस्मित, प्रेमपूर्ण हंसी। (जयो० १६/२०) सम्प्रपश्यति हि किन्न शुचेव-चिन्तयेव (जयो० ) साधुचिद्वारिचारितमुदूखलं शुचि। (जयो० २/८०) शुच्य (सक०) स्नान करना, नहाना। निष्कलंक, निष्पाप, पवित्रात्मा। सद्गुणी। ०प्रक्षालन करना, धोना। पुनीत, पूत, सच्चा, निश्छल। निचोड़ना, निकालना। ०मानस-शुद्ध। अर्क सींचना। ०भद्रता, शुद्धता, यथार्थता। शटीरः (पुं०) वीर, योद्धा। शुचिः (पुं०) सूर्य चन्द्र। ०नायक। ०अग्नि। शुल् (अक०) लड़खड़ाना, लंगड़ा होना। शचिचित्तं (नपुं०) विशुद्ध चित्त। (समु० २/१६) ०बाधा डाला जाना। शुचिचित्रकः (पुं०) उत्तम चित्र, अच्छा चित्र। (जयो०१०/१०) | शुण्ठ् (सक०) पवित्र करना, शुद्ध करना। स्वच्छ-साफ एवं स्पष्ट चित्र। सूखना। शचित्व (वि०) निर्दोषत्व, निर्मलत्व। (जयो० ४/६५) शुण्ठिः (स्त्री०) सोंठ, सूखा अदरक। (जयो०वृ० २८/२९) __०पवित्रत्व, पवित्रता। (जयो० १९/४४) शुष्ठः (पुं०) [शुण्ड्+अच्] हाथी की सूंड। शुचिनाम्बरं (नपुं०) स्वच्छ वस्त्र-शुचिना पवित्रेण स्वच्छेन उन्मत्त हाथी का मद। चाम्बरेण वस्त्रेण। (जयो०वृ० १९/११) शुण्डकः (पुं०) शराब सींचने वाला कलाल शुचिनिशानं (नपुं०) सफेद निशान, सफेदी युक्त बालों के ०वाद्यमन्त्र। चिह्न। (समु० ७/२) शुण्डा (स्त्री०) हाथी की सूंड। शुचिपक्षः (पुं०) शुक्लपक्ष। (वीरो० ४/२) मद्यालय, मद्यपान गृह, मधुशाला। शुचिपात्रं (नपुं०) स्वच्छपात्र। (जयो० १२/११५) वेश्या, रण्डी, कुटनी, दूती। शुचिबोधः (पुं०) उत्तम बोध, अच्छा ज्ञान। (सुद० ३/२२) ०कमन नाली सम्यग्ज्ञान। शुण्डारः (वि०) शराब खींचने वाला, कलाल। शुचिबोधवदायतेऽन्वितः हाथी की सूंड। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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