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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिशिरकालः १०७२ शीकरः शिशिरकालः (पुं०) सर्दी के समय। मुख्य, प्रमुख, प्रधान। (सुद० १२५) शिशिरकिरणः (पुं०) चंद्रमा, शशि। उत्तम, योग्य, सज्जन, पूज्य। (समु० १/२१) शिशिरदीधितिः (स्त्री०) चन्द्र, शशि। शिष्टः (पुं०) विशिष्ट व्यक्ति, सज्जन पुरुष। सभ्यजन। शिशिररश्मिः (स्त्री०) चन्द्र, शशि। (जयो०वृ० १/३२) योग्य पुरुष (जयो०१२/१४२) 'किं शिशिरात्ययः (पुं०) सर्दी का अन्त, वसंत ऋतु। वावशिष्टमिह शिष्टसमीक्षणीयम्' (जयो० १२/१४२) शिशिरापगमः (पुं०) सर्दी का अंत। शिष्टसभा (स्त्री०) विद्वत्सभा, सज्जन सभा। राज्यसभा। शशिरांशुः (पुं०) चन्द्र, शशि। (जयो० १०/९) शिष्टस्तवनं (नपुं०) श्रेष्ठ स्तवन। (समु० ४/४) शिशिरोचित (वि०) अनुष्णोचित। (वीरो० १५/७४, वीरो०९/२०) शिष्टाचारः (पुं०) सच्चरित्र, उत्तम आचरण। (जयो०वृ०२/४०) शिशुः (पुं०) [शो+कु-सान्वद्भावः, द्वित्वम्] (दयो०१७, सम्पादनीयानीति (जयो०वृ० ३/२२) (जयो०वृ०७/४७) भक्ति०१६)। शिष्टात्मन् (पुं०) विशिष्ट व्यक्ति। (समु० १/३८) बालक। शिष्टिः (स्त्री०) [शासक्तिन] राज्य, शासन। ०पुत्र। (जयो० १/५५) बाल। (जयो० २/३०) आज्ञा, आदेश। छोटा बच्चा (हित० सं०४९) भान्ति क्रीडनकतो यतः ०सजा, दण्ड। शिशोः (जयो० २/३०) शिष्यः (पुं०) [शास्+क्यप्] छात्र, चेला, विद्यार्थी। ०वत्स, बछड़ा, छौना। शिष्यता (वि०) शिष्यत्व, शिष्यपना। ०स्तमंप। (जयो० १७/१५) एवं पर्यटतोऽमुष्य देशं देशं जिनेशिनः। शिशुकः (पुं०) लघुतर बालक। (वीरो० १/८) (सुद० १/५) शिष्यतां जगृहु पा बहवश्चेतरे जनाः।। (वीरो० १५/१५) शिशुक्रन्दः (पुं०) बच्चे का रुदन। शिष्यत्व (वि०) शिष्यपना। (वीरो०१५/४६) शिशुक्रन्दनं (नपुं०) बच्चे का रुदन।। शिष्यपरम्परा (स्त्री०) शिष्यपना की विशेषता। (जयो० २/४२) शिशुपालः (पुं०) दमघोष का पुत्र, चेदि देश के राजा का छात्रपने की योग्यता। पुत्र। शिष्यभावः (पुं०) छात्रभाव, विद्यार्थी रूप। (जयो०वृ० १/५५) शिशुभावः (पुं०) बाल रूप। (जयो० ११/१२) शिष्यशिष्टिः (स्त्री०) छात्र अनुसंधान, छात्रचयन। शिशुमती (स्त्री०) छोटी बच्ची। (मुनि० ११) शिष्यसंचालनं (नपुं०) छात्रानुशासन। शिशमारः (पुं०) संस नामक जन्तु। शिष्या (स्त्री०) छात्रा (वीरो०१५/३८) शिशुवाहकः (पुं०) जंगली बकरा। जाकियव्वे सत्तरस-नागार्जुनस्य भामिनी। शिश्नं (नपुं०) पुरुष की जननेन्द्रिय। श्रीशुभचन्द्रसिद्धान्त-देवशिष्या बभूव या। (वीरो० १५/३८) शिश्विदान (वि०) [श्वित्+सन्+आनच्] सद्गुणी, पुण्यात्मा। | शी (अक०) शयन करना, आराम करना, लेटना, सोना, दुष्ट, पापी। विश्राम करना। दर्भे शयानं (जयोवृ० ११/५०) दृग्यामितः शिष् (सक०) चोट पहुंचाना, मार डालना पञ्चशरः स्मरोऽतिशेते विधिं तौ सफलीकरोति (जयो० बचा देना। ११/६५) 'क्वचित् स शेतेऽथ शुचेव तूर्णम्' (वीरो०१२/१७) शिष्ट (भू०क०कृ०) [शास्+क्त] छोड़ा हुआ, बचा हुआ। शी (स्त्री०) शयन, विश्राम, सोना। शान्ति। शिष्टाचार। (जयो० २/४०) परस्त्री-शी स्त्रीषु स्व-परस्त्रीषु इति वि० (जयो० १६/६६) प्रशिक्षित, शिक्षित, अनुशिष्ट। समान। (सुद० १/४३) अवशिष्ट, बाकी, बचा हुआ। शीक् (सक०) तर करना, छिड़कना। प्रशंसनीय। (जयो० ३/२३) आर्द करना, गीला करना। बुद्धिमान्, विद्वान्। शीकरः (पुं०) [शीक्+अरन्] बौछार, तुषार। ०सभ्य। (जयो० १४/७) जलकण, वृष्टिकण। (जयो०१३/१९) जलांश (वीरो० शिष्य, नम्र। ४/६६) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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