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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शरपुंखः १०५४ शर्करायुक्त शरपुंखः (पुं०) बाणों के पंख। शरप्रवृत्ति (स्त्री०) शरसंचालन की प्रवृत्ति, शीतकाल स्थिति। (वीरो० ९/२८) शरभः (पुं०) [शृ+अभच्] हस्ति शावक! टिड्डी। ऊँट। शरयु (स्त्री०) [शृ+अयु:] सरयु नदी। शरलकं (नपुं०) पानी, जल। शरवर्षशतोत्तरि (वि०) पांच सौ वर्ष पीछे। (वीरो० २२/६) शरव्यं (नपुं०) [शरवे शरशिक्षायै हितं-शरु-यत] निशाना, लक्ष्य। शराग्रयः (पुं०) तीक्ष्ण तीर। शराक्षेपः (पुं०) बाण क्षेपण, बाणों की वर्षा। शराटिः (पुं०) पक्षी विशेष। शराधिकारि (पुं०) जल अधीक्षक, पानी की अधिकारी। (समु०६/१०) शरारु (वि०) [शृ+आरु] अहितकर, कष्टकर, हानिकारक। शरार्पित शाप (वि.) बाणों से आबिद्ध। (जयो० ५/९) शरावः (पुं०) कोरा, कड़वका, सकोरा। शरावं (नपुं०) ०पात्र विशेष। मिट्टी का एक छोडा पात्र। (जयो० ५/१०५) ०सकोरा। शरावती (स्त्री०) एक नगरी विशेष। शरिमन् (पुं०) [शृणाति यौवनं-श+इमन्] पैदा करना, जन्म देना। शरीरं (नपुं०) [शृ+ईरन्] देह, काया, तनु। शीर्यन्त इति शरीराणि। 'शरीरमेन्तमलमूत्रकुण्डं यत्पूतिमांसास्थिवसादिझुण्डम्। (सुद० १०१) कलेबर (जयो०० २५/५८) जानाम्यनेकाणमितं शरीरं जीव: पुनस्ततप्रमितं च धीरः। (वीरो० १४/३०) भोगायतन, भोगस्थान। (सम्य० २४) ०औदारिक आदि शरीर। (सम्य० ४२) शरीरकर्तृ (पुं०) पिता, जनक। शरीरकर्मन् (नपुं०) शरीर का कार्य। शरीरकर्षणं (नपुं०) शरीर की कृषता। शरीरगत (वि०) देहगत। (सुद० १३६) शरीरच्छायः (पुं०) शरीर प्रतिबिम्ब, शरीर की परछाई। (जयो०१२/१२०) शरीरजः (०) रोग, आधि, व्याधि। ०पुत्र, सन्तान। कामोद्दीपन। शरीरतुल्य (वि०) देह सदृश। शरीरदण्डः (पुं०) देह दण्ड्, शारीरिक दण्ड। शरीरदेश: (पुं०) काय के प्रदेश (सुद० १२३) शरीरधारिन् (वि०) देह को प्राप्त षट् काय जीवादि। शरीरधृक् (वि०) शरीर धारक। शरीर नन्दिन् (वि०) देहगत आनन्द मनाने वाला। शरीरपतनं (नपुं०) मृत्यु, पौत, मरण। शरीरपर्याप्ति (स्त्री०) शरीर रूप परिणमन। शरीरपातः (पुं०) मरण, मृत्यु। शरीरबद्ध (वि०) शरीरी। शरीरबन्धः (पुं०) दैहिक रचना प्रक्रिया, शरीर की बनावट। शरीर भेदः (पुं०) शारीरिक अन्तर, शरीर वियोग मृत्यु, मरण। शरीरयष्टिः (स्त्री०) दैहिक क्षीणता, पतला शरीर, कृशकाय। शरीरयात्रा (स्त्री०) जीवन-यापन, देह पुष्टि का साधन। शरीरवर्गः (पुं०) संसारी जन। (जयो० १६/२५) शरीरवर्जित (वि०) अङ्गातिग, देह रहित। (जयो०१० २/१५३) शरीरविवेकः (पुं०) सुख-दुःखादि का विवेक। शरीरशोभा (स्त्री०) देहप्रभा, शरीर की चमक। (जयो०१/७०) शरीरसंघातः (पुं०) शरीरगत शुद्धि। शरीरसंलेखना (स्त्री०) आहारादि का त्याग करना। शरीरसंस्कारः (पुं०) देह को सजाना। शरीरस्थितिः (स्त्री०) देह पुष्टि। (दयो० ३४/ ) शरीरहानि (स्त्री०) क्षीण शरीर। (वीरो० १८/२४) मरण, मृत्यु। शरीराङ्गोपाङनाम (पुं०) अंग-उपांग की उत्पत्ति, शरीर रचना। शरीरिन् (वि.) [शरीर+इनि] शरीरधारी, शरीर युक्त। जीवित, चेतनामय, प्राणयुक्त। संचेत्यते यावदसंज्ञिकर्मफलं शरीरीपरिभिन्नमर्म। यतो नहि ज्ञानविधाथियकर्मकर्तुं तदा प्रोत्सहतेऽस्य नर्म।। (सम्य०४१) जिसके शरीर होता है-शरीरमस्यास्तीति शरीरी। (धव० ९/२२१) सरीरमेयस्स अस्थि त्ति सरीरी (धव० १/१२०) शर्करजा (स्त्री०) [शृ+कान्-जन्+ड+टाप्] मिश्री। शर्करा (स्त्री०) [शृ+का+टाप्] शक्कर खाण्ड। ०कंकड़ी, रोड़ी, बजरी। ०बालू से युक्त भूमि, रेत। ०ठींकरा। शर्करायुक्त (वि०) सिताश्रित, शर्करा मिश्रित, शक्कर युक्त। (जयो०वृ० १६/९) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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