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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यवनिका ८७१ याच् यवनिका (स्त्री०) परदा, संवृतिका। (जयो० २४/३७) यवनी (स्त्री०) [यु-ल्युट्+ङीप्] यवन स्त्री। यवसम् (नपुं०) [यु+असच्] घांस, चारा। यवागु (स्त्री०) [यूयते मिश्रयते यु-आगु] खिचड़ी। (दयो० ९३) कांजी, चावलों का मांड। यवानिका (स्त्री०) [दुष्टो यवो यवानी यवङीष] अजवायन। यविष्ट (वि०) [युवन्+इष्ठन्] कनिष्ठ, सबसे छोटा। यवीयस् (वि०) [युवन्+ईयसुन्] छोटा बच्चा। यशस् (नपुं०) [अश् स्तुतौ असुन् धातोः युट् च्] ०यश, प्रतिष्ठा, कीति, प्रसिद्धि। (जयो० २/२१) । प्रशस्ति। (जयो०वृ० १/१५) गौरीकृतं किन्तु यशोमयेन। विश्रुत, ख्याति। (सम्य० १५४) 'परिकलितः किल यशसा राशि:( (सुद० १/४४) यशसा विधुमात्मतेजसाऽर्कमपाकर्तुमुतास्थितो रसात्। (समु० २/११) यश:किणः (पुं०) कीर्ति से परिपूर्ण। अथ जन्मनि सन्मनीक्षिण प्रससाराप्यभितो यशः किणः। (वीरो० ७/१) यशःप्रयस् (नपुं०) धवल दूध। (सुद० ३/१८) कीर्ति का विस्तार-अभितोऽपि भवस्तलं यशः पयसाऽलङ्कृतवान्निजेन सः। यशःप्रकाशित (वि०) कीर्ति से मंडित। (सुद० ३/११) यशःप्रशस्तिः (स्त्री०) कीर्ति लाभ, (वीरो० १८/३१) प्रशस्ति __ की प्राप्ति। (जयो० ६/६६) यशःप्रसारः (पुं०) कीर्तिकलाप-'गर्भार्भकस्येव यशः प्रसारैः' (वीरो०६/३) यशःशरीरं (नपुं०) प्रशस्तदेह, उज्ज्वलशरीर, कान्तिमान देह। (जयो० १/३३) यशःस्फूर्तिः (स्त्री०) कीर्ति का विस्तार, प्रतिष्ठा गान। यशसः स्फूर्तिरुद् भूति। (जयो० ६/६५) यशस्कर (वि०) यशस्वी, कीर्ति प्रदाता। यशस्काम (वि०) प्रसिद्धि की कामना करने वाला। यशस्कायं (नपुं०) कान्ति युक्त शरीर, प्रभावान् देह, देदीप्यमान शरीर। यशस्तिलकः (पुं०) सोमदेव रचित एक जैन संस्कृत चम्पूकाव्य। ___यशस्तिलकचम्पू (जयो० २२/८५) यशस्य (वि०) कीर्ति स्थापत करने वाला। यशस्विन (वि०) [यशस+विनि] प्रसिद्ध. विख्यात. विश्रत। सहजकीर्तिमान् (जयो० २३/६९) यशोद (वि०) कीर्तिकर। यशोदा (स्त्री०) नन्द की पत्नी, कृष्ण को पालन वाली। (दयो० ५८) यशोधन (वि०) प्रसिद्धि प्राप्त, कीर्ति के धन को प्राप्त हुआ। __'यश एवं धनं यस्याः सा यशोधनाः' (जयो० १७/३९) यशोधरा (स्त्री०) अलकापुरी के राजा दर्शक एवं रानी श्रीधरा की पुत्री। (समु० ५/२१) राजा सूर्यावर्त की रानी। (समु०५/२१) यशोनिरुपिणी (वि०) कीर्ति स्थापन करने वाली। यशसः कीर्तेनिरुपपिणी,प्ररूपणाकारिणी। (जयो० १३/६१) यशोपटहः (पुं०) कीर्ति निनाद। यशोभिरामः (पुं०) कीर्ति प्राप्त। (वीरो० १३/१२) यशोलाभः (पुं०) कीर्तिलाभ। (जयो०१० ३/१३) यशोवितानं (नपुं०) यश मंडप। (वीरो० १३/१०) यशोविशिष्ट (वि०) प्रख्यात, कीर्तियुत। (जयो०३/२३) यशोवृष (वि.) कीर्तियुक्त। (समु० ३/३४) यष्टिः (स्त्री०) लकड़ी, लाठी, छड़ी। ०सोटा, गदा। ०खंभा, स्तम्भ, तना। (जयो० १४/३३) ०डंठल, वृन्त। ०शाखा, टहनी। यष्टिग्रहः (पुं०) गदाधर। यष्टिनिवासः (पुं०) मयूरवास। यष्टिप्राणः (पुं०) शक्तिहीन। यस् (अक०) प्रयास करना, प्रयत्न करना। या (सक०) जाना, प्राप्त होना। यामि गच्छामि (जयो० १६/७२) प्रयाण करना। याम एव सदसीह (जयो० ४/२८) यान्ति (सुद० ९०) यातु, याति (सुद०८८) यास्यामि-जाऊंगा- (समु० ३/९) या (अक०) चलना-यास्यतीव हि भवान् (जयो० ४/१०) यामि यात यदिवश्चिदुदेदि भूपवित्तु जनतावशगेति यातुम्। (जयो० ४/११) यास्यसि (सुद० ४/२७) नष्ट होन, ओझल होना। या (सर्व स्त्री०) यस्या सा काशी। रुचिरा पुरी। (जयो० ३/३०) यागः (पुं०) [यज्+घञ्] यज्ञ, आहूति, उपहार, हवन। (जयो० १६/२५) प्रार्थना करना, अनुरोध करना। (जयो० ६/७७) अनुनय विनय करना। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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