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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विकसित ९६१ विकिरणं विकसित (भू०क०कृ०) [वि+कस्+क्त] प्रफुल्लित। प्रमुदित। उत्सुकता, उत्कण्ठा, हर्ष, आनन्द। (जयो० ३/९३), हर्षित। एकान्तवास, एकाकीपन। उफुल्लित। (जयो०वृ० १४/८८) विकाशक (वि०) विकसित करने वाला, प्रदर्शन करने वाला, विकाशील , हर्षयुक्त। खिला हुआ। खिलने वाला। विकस्वर (वि०) [विकस्+वरच] खिला हुआ, विकासमान विकाशनं (नपुं०) [वि+काश्+ल्युट्] प्रदर्शन, प्रकटीकरण। (जयो० १३/६१) खिलना, प्रफल्लित होना। 'यदस्तुतच्चित्तसरोजसत्कलि०खुला हुआ, प्रफुल्लित। विकाशनायार्कमहः किलाछलि। विकारः (पुं०) खोटा निमित्त। यतो मातुरादौ पयो भुक्तवान् तु विकाशपरत्व (वि०) खिलने वाले। (समु० ७/२०) स न सिंहस्य चाहार एवास्ति मांस। विकारः पुनर्दुर्निमित्त विकाशशील (वि.) खिलने वाले। (जयो० ९/१३) प्रभावात्समुत्थो न संस्थाप्यतां सर्वदा वा।। (वीरो० १६/२२) विकाशिन् (वि०) [वि+काश+णिनि] दिखाई देने वाला, विकारः (पुं०) [वि+कृ+घञ्] विभाव परिणति। चमकने वाला। विक्षोभ, उत्तेजना, उद्वेग। खिलने वाला, प्रफुल्लित होने वाला। (जयो० ३/१३) विकृत परिणाम, राग-द्वेषादि भाव। विकासः (पुं०) [वि+कस्+घञ्] खिलना, प्रफुल्लित होना, षडयन्त्र-'मनाङ्न भूपेन कृतो विचार: कच्चिन्महिष्याश्च फूलना। भवेद्विकारः' (सुद०१०७) खुलना, विकसित होना। (सुद० ७९) विषय-वासना, कामभाव। मनाङ् न चित्तेऽस्य पुनर्विकारः विकासनं (नपुं०) [विकिस्+ल्युट्] फूलना, खिलना, खुलना। (सुद० ९९) विकासयामास (वि०) विकास होने वाले। ०व्याधि, रोग, पीड़ा। खिलने वाले, खुलने वाले। विकारकृत (वि०) वैचित्य पूर्ण। (जयो० १७/८२) दिखने वाली। यूनो दृगाप्लावन हेतवे तु विकासयामास विकारगत (वि०) विक्षोभ को प्राप्त हुआ। रतीशकेतुः। (सुद० १०१) विकारजन्य (वि०) विकृत परिणाम युक्त। विकाससंकटी (वि०) विकास युक्त, खिलने वाले, हर्षित विकारविभी (वि०) विकारधारी। (जयो० ५/६६) विकारभावः (पुं०) विषय-वासना युक्त भाव। (भक्ति० २) होने वाले। (समु० २/९) विकारशून्य (वि०) राग-द्वेषादि रहित।। विकासिकुमाञ्जलि (स्त्री०) खिले हुए पुष्प समूह। (जयो० विकारि (वि०) व्याधिग्रस्त। (सुद० १०७) ३/१०७) विकारित (वि०) [वि+कृ+णिच+क्त] परिवर्तित, पथभ्रष्ट, विकासिन् (वि०) हर्षित होने वाले, आनन्द को प्राप्त होने पतित, रोगी। वाले, खिलने वाले। (जयो० ३/४९) विकारिन् (वि०) [वि+कृ+णिच्+णिनि] ०विकार युक्त, विकासिहास (वि०) निकली हुई हंसी, प्रकट हुई हंसी। * पतित हुआ, राग-द्वेषादि (जयो० २/१५७) परिणामों (जयो० १३/९१) तत् सङ्गमोत्पन्नसुखानुभूत्या वाला। विकासिहासच्छुरितेव तावत्। (जयो० १३/९१) 'विकासी ०संवेग युक्त। (सम्य० १९) प्रकटतामाप्तो यो हासस्तेन' (जयो०वृ० १३/९१) विकालः (वि०) [विरुद्धः कालः] सन्ध्या। विकिरः (पुं०) [वि कृ+अप्] बिखरा हुआ। दिनावसान, अस्ताचल। गिरा हुआ, टूटा हुआ, पतित हुआ। ०काल को छोड़ना। कुंआ। विकालिका (स्त्री०) [विज्ञातः कालो यया] समय का अभाव। विकाशः (पुं०) [नि+कश्+घञ्] खिलना, फूलना, विकसित | विकिरणं (नपुं०) [वि+वृ+ल्युट्] बिखेरना, फेलाना, होना। (जयो० ३/१३) छितराना। प्रकटीकरण, प्रदर्शन। ज्ञान, बोध। वृक्षा For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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