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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वार्दुष्यं ९५७ वासक वार्दुष्यं (नपुं०) सूद, ब्याज। वादलः (पुं०) ०बादल, मेघ। वार्दकुलः (पुं०) मेघ, बादल। (वीरो० १९/२२) (वीरो०४/१३) वार्धि (पुं०) समुद्र, सागर। (जयो० १२।८, वीरो० ३/२) वार्ध (नपुं०) चमड़े की पट्टी। वार्मणं (नपुं०) कवच युक्त। वार्य (नपुं०) [वृ+ण्यत्] आशीष, शुभ कामना। ०वरदान। ०सम्पत्ति, वैभव। वार्वणा (स्त्री०) [वर्वणा+अण+टाप] नीले रंग की मक्खी। वार्ष (वि०) [वर्ष+अण्] ०वार्षिक। ०वर्षा से सम्बंध रखने वाला। वार्षिक (वि०) [वर्ष+ठक्] वर्ष सम्बंधी। ०वर्षा सम्बंधी। (जयो० २/३३) सलाना, प्रतिवर्ष का।। वार्षिला (स्त्री०) [वार्जाताशिला] ओला, हिमखण्ड। वार्ष्णेयः (पुं०) [वृष्णि+ठक्] वृष्णि की संतान। नल के सारथि का नाम। कृष्ण। वाहेः (पुं०) बालक। वालवः (पुं०) अजगर। वालबालक (पुं०) अजगर का बालक। (जयो० १३/४५) वालिः (स्त्री०) वानर राज। वालुका (स्त्री०) [वल्+उण्+कन्+टाप्] ०रेत, बजरी। चूर्ण। ०कपूर। ककड़ी। वाल्क (वि०) [वल्क+अण] वृक्षों की छाल से निर्मित। | वाल्कल (वि.) [वल्कल+अण] वृक्षों की छाल से बना हुआ। वाल्कलं (नपुं०) वल्कल वस्त्र, छाल से बने परिधान। वाल्मीकिः/वाल्मीकिः (पुं०) [वल्मीके भवः अण इञ् वा] विख्यात मुनि, रामायण के प्रणेता। ०वामी। (दयो० ३९) वाल्लभ्यं (नपुं०) [वल्लभ+ष्यञ्] वल्लभता, प्रिय होने का भाव। वावदूक (वि०) [पुनः पुनरतिशयेन वा वदति वद्+यङ् लुक्] | बातूनी, मुखर, वाक्पटु। वावयः (पुं०) [वय्+यङ्-लुक्] तुलसी। वाविलः (पुं०) बाईविल, ईसाई धर्म का प्रसिद्ध धार्मिक ग्रन्था (वीरो० १९/१०) वावुटः (पुं०) नाव, नौका, डोंगी। वावृत् (सक०) छांटना, चुनना, चयन करना। __प्रेम करना, पसंद करना। वावृत्त (वि०) [वावत्+क्त] छांटा गया, चयन किया गया। वाश् (सक०) दहाड़ना, चिल्लाना। . चीत्कार करना, ध्वनि करना। ०हू हू करना, गुनगुनाना। ०बुलाना, पुकारना। वाशक (वि०) [वाश्+ण्वुल] चिल्लाने वाला, पुकारने वाला। दहाड़ने वाला, मुखर, निनादी। वाशकं (नपुं०) [वाश्+ल्युट्] ०दहाड़ना, चिंघाड़ना, गुर्राना। आक्रोश करना। ०चहचहाना, कूकना, भिनभिनाना। वाशिः (पुं०) [वाश्+इञ्] अग्नि, आग। वाशितं (नपुं०) कलरव, चहचहाना। वाशिता (स्त्री०) [वाशित+टाप् ]०हथिनी। स्त्री, वनिता। वाश्रः (पुं०) [वाश्+रक्] दिन। वाथ (नपुं०) आवास स्थान, घर। ०चौराहा। गोबर। वाष्पः (पुं०) भाप, अश्रु। वाष्यं (नपुं०) देखो ऊपर। वाष्याम्बुपूरः (पुं०) नेत्रजलप्रवाह। (जयो० १६/६) वाष्पिन् (वि०) भाप युक्त। (वीरो० १९/४३) वास् (सक०) सुगन्धित करना, सुवासित करना, धूप देना। सिक्त करना, भिगोना। वासः (पुं०) सुगंन्ध। निवास, आवास। (सम्य०७०) घर, स्थान, जगह। सद्भाव। (जयो० १/३) वस्त्र, परिधान, कपड़े। (जयो०२/५०.) (सुद० २/१२) अथ प्रभाते कृतमङ्गला सा हृदेकदेवाय लसत्सुवासः। (सुद० २/१२) वासक (वि०) सुगन्धित करने वाला, धूप देने वाला, आबाद करने वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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