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निक्षिप्त दृष्टिः
५४८
निगमनं
स्थापयित्वा अत्रशय्या कर्तव्येति या दीयते वसतिः सा पाठ। द्विजवणे निष्क्रियतां दृष्ट्वा किं निगदानि भ्रात्द्दन्। निक्षिप्ताः' (भ०आ०टी० २३०)
(सुद० ९७) निक्षिप्त दृष्टिः (स्त्री०) परित्यक्त दृष्टि। (वि० २१/१५) निगदं (नपुं०) स्तुति पाठ करना, सस्वर पाठ करना। निक्षेपः (पुं०) [नि+क्षिप्+घञ्] ० फेंकना, डालना, ० न्यास, ० भाषण, प्रवचन, प्ररूपण।
धरोहर, अमानत। ० स्थापना, नियत, निश्चित, ० भेजना, ० व्याख्या, उल्लेख। ० परित्याग करना। • मिटाना, सुखाना। • जैन दर्शन में ० छोड़ना, (सुद० ९७) प्रसिद्ध एक पद्धति, जो वस्तु की विविधता का न्यास निगद् (सक०) १. कहना, बोलना, (सुद० ७०) २. भाषण करता। • जो अवस्था हो वैसा मानना। (त०सू०पृ० १४) करना, पाठ करना। (जयो० १/२०) ३. स्तुति करना, निक्षिप्यते इति निक्षेपः स्थापना। ज्ञानं प्रमाणमात्मादेरुपायो प्रार्थना करना। जातिं श्रीजिनवाचमेव निगदद्यस्याः न्यासः इष्यते' (लघीयस्त्रय १० २) णिच्छए णिण्णए प्रसादाद्यतिः। (मुनि० १५) 'आनुकूलवचनं निजगाद' खिवदि त्ति णिक्खेवो' (धव० १/१०) उपायः कारणं (जयो० ४/११) 'निजगाद-कथितवांस्तदा' (जयो० ४/११) आत्मादिज्ञानस्य नामादि न्यासो निक्षेप इष्यते - निगद्यते (जयो०वृ० १/२०) (न्यायकुमुद-५२)
निगदत (वि०) बात करते हुए। (जयो०वृ० १८/७०) निक्षेपणं (नपुं०) [नि+क्षिप् ल्युट्] डालना, फेंकना, न्यास निगदित (वि०) ०कथित, प्ररूपित, (सम्य० १५४) कहा करना, रखना, विरचना।
गया, प्रतिपादित। 'जिनशासनस्य चरणानुयोगे निगदितमस्ति' निक्षेपणासमितिः (स्त्री०) प्रतिलेखन समिति, कमण्डलु, पुस्तक (जयो०वृ० १/२२) आदि का सावधानी पूर्वक रखना।
निगदितं (नपुं०) प्रवचन, भाषण, कथन, प्ररूपण। निक्षेपणीकथा (स्त्री०) वस्तु प्रतिष्ठापन कथा, | निगम् (सक) जाना, निश्चय करना।
निक्षेपकोविदकथा, जो यथार्थ चित्रण में समर्थ हो। निगमः (पुं०) [नि+गम्+घञ्] निक्षोदिमः (पुं०) पर्वतीय खनन, सुरंग से पृथ्वी का उत्खनन। ० वेद पाठ। निखननं (नपुं०) [नि+खन्+ल्युट्] खोदना, उत्खनन करना, ० शास्त्र, ग्रन्थ- श्रीनिमित्तनिगमं प्रपश्यता भाविवस्तु निकालना।
तदपेक्ष्यते मता। (जयो० २/५८) निखर्व (वि०) टिंगना।
० वाणिग्जन। (जयो० २/११३) निखात (भू०क०कृ०) [नि+खन्+क्त] ० निकाला हुआ, ० व्यापार, धन्धा, व्यवसाय यः क्रीणाति समर्घमितीदं खोदा हुआ। ० गाढ़ा हुआ।
विक्रीणीतेऽवश्यम्। विपणौ सोऽपि महर्घ पश्यन् कार्यमिदं निखिल (वि०) [निवृत्तं खिलं शेषो यस्मात्] सम्पूर्ण, पूर्ण, निगमस्य। (सुद० ९४)
सकल, व्याप्त। 'निखिलेऽप्याकाशे' (जयो०वृ० १/२३) ० मण्डी, मेला, संग्रह स्थान। निखिलात्म (वि०) सम्पूर्ण आत्म युक्त। (वीरो०२२/२९) ० निश्चय, विश्वास, तर्क। निखिलोत्करः (पुं०) चारों ओर का समूह, सम्पूर्ण ढेर।
- निगमो वणिग्जननिवासः। ०वणिकों का निवास, मण्डी क्षेत्र। निगड (वि०) [नि+गल+अच् लस्य डः] ०बंधा हुआ, जकड़ा - निगमः प्रभूत-तर-वणिग्वर्गावासं (जैन०ल० ६०६) हुआ, श्रृंखलित।
निगमनं (नपुं०) कथन, निरूपण, प्ररूपण, तर्क प्रस्तुतीकरण, निगडः (पुं०) जंजीर, बेड़ी,
उपसंहार, अध्यात्म हेतुओं का कथन। निगडं (नपुं०) हथकड़ी।
० प्रतिज्ञा का उदाहरण। निगडदोषः (पुं०) कायोत्सर्ग का दोष।
० हेतुपूर्वक पक्षवचन प्रस्तुत करना। निगडित (वि०) [निगड+इतच्] जकड़ा हुआ, बंधा हुआ, ० प्रतिज्ञा का उपसंहार-'प्रतिज्ञाया उपसंहारः साध्यधर्मजंजीर युक्त, श्रृंखलित।
विशिष्टत्वेन प्रदर्शनं निगमनम्' (प्रमेयरत्नमाला० ३/५१) निगणः (पुं०) यज्ञ धूम।
० जाना, पलायन करना, छोड़ जाना। 'नक्षत्रता दृष्टिमपि निगदः (पुं०) [नि+गद्+अप्+घञ्] ० स्तुति पाठ, सस्वर | नाञ्चति सितधु तेर्निगमनतः। (सुद०६९)
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