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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारः अनन्त परंतु जिनेन्द्र की वाणी सार्वहितैषी अनक्षरायित/अनक्षर निरूपायरमणीयानि सुहजसुन्दराणि। (जयो० ३/४०) अङ्गेन रूप से प्रकट हुई। (वीरो० १५/८) । शरीरेण रम्यो मनोहरो न बभूवेति विरोधः, किन्तु अनङ्गः अनगारः (पुं०) अनगार, साधु, श्रमण। (सुद० ४/२५) न कामदेव इव रम्यो मनोहरोऽभूदिति। (जयो० वृ० १/४१) विद्यते ऽगारमस्येत्यनगार:। (स०सि०७/१९) प्रात: अनङ्गलेखं (नपुं०) प्रेमपत्र। समापितसम्प्रधिरिहानगारधुर्यो नमोऽर्हत इतीदमदादुदारः। अनङ्गसङ्ग (वि०) काम साहचर्य। (जयो० १०/११५) (सुद०४/२५) अनङ्गसमवाय (वि.) कामदेव की सादृशता, कामदेव सम्बन्ध अनग्न (वि०) [नञ्+नग्न +घञ्] वस्त्रधारी। वाला। (दयो०६८) अनग्नि (वि०) अग्नि रहित, जलन विहीन, निस्तेज। अनङ्गसुखसारः (पुं०) काम-वासना जन्य सार, काम सुख अनघ (वि०) निष्पाप, निर्दोष, (जयो० २/२५) निष्कलंक। __ का प्रयोजन, शरीरातीत सुख, मोक्ष सुख। (जयो० ५/५१) अनघः (पुं०) शिव, विष्णु। अनञ्जन (वि०) बिन अंजन, कज्जल रहित। अनघानक (वि०) निर्दोष रूपार्थ, निर्दोष रूप अर्थ बताने अनच्छ (वि०) गर्त, गड्ढा। उन्मार्गगामी निपतेदनञ्छे। (वीरो० वाला। (जयो० २/२५) साम्प्रतं प्रणदितानघातक। (जयो० १८/४२) २/२५) अनणि (वि०) विपुल विस्तार। (जयो० वृ० २१/७६) अनणौ अनङ्ग (वि०) आकृतिविहीन, अशरीरी, देह रहित। विपुलविस्तारे। (जयो० वृ० २१/७६) अनङ्गः (पुं०) काम, कामदेव, रतिपति। (जयो० १०/११५) | अनति (अव्य०) बहुत अधिक नहीं, कम। अनङ्ग (वि०) परम सुन्दर (जयो० ६/५१) मदनश्चानङ्ग अनति (वि०) स्वीकृति, अङ्गीकृत। (जयो० २४/३) नयस्य एवाङ्ग (जयो० ६/५१) परिपूर्णमङ्ग यस्य सः परमसुन्दरः नीतेरानतिः स्वीकृतिः। (जयो० वृ० २४/३) इत्यर्थः। यस्यावलोकने कृते सति मघ्नः कामः स पुनरनङ्गः अनद्यतन (वि०) आज/प्रारम्भिक/आधुनिक/वर्तमान से सम्बन्ध एव शरीररहितः, स्वल्पसुन्दरो वा, प्रतिभातीति। (जयो० न रखने वाला यह लङ्गलकार और लट्लकार के अर्थ को वृ०६/५१) भी प्रकट करता है। अनङ्गक्रीडा (स्त्री०) कामक्रीड़ा, अन्य अंग की कामना। अनधिक (वि०) अधिकता रहित, असीम, पूर्ण। (अङ्ग प्रजननं योनिश्च, ततोऽन्यत्र क्रीडा अनङ्गक्रीडा। अनधीन (वि०) अपने आधीन, स्वाधीन। (स०सि०७/२८) अनध्यायः (पुं०) अनाभ्यास। अनजिष्णु (वि०) मदन विजेता, कामजयी मदन महेन्दु। अनध्ययनं (नपुं०) अध्ययन पर विराम। (जयो० ११/२८) जगज्जिगीषाभृदनङ्गजिष्णु। (जयो० अननं (नपुं०) [अन्+ल्युट्] सांस लेना, जीना। ११/२८) अननुका (वि०) आज्ञा। (समु० ३/४) अनङ्गजूर्तिः (पुं०) कामज्वर (सुद० १०२) अननुगामी (वि०) अवधिज्ञान का एक भेद। अनङ्गता (वि०) तुच्छशरीरता (जयो०१/४६) कामो भस्मीभावं अननुभाषण (नपुं०) निग्रहस्थान। गतवान्। (जयो० वृ० १/४६) अननुभावुक (वि०) न समझ, अनभिज्ञ। अनङ्गदशा (स्त्री०) काम भाव, [अन्+अङ्ग दशा] शरीर रहित | अननुया (वि०) पीछे दौड़ना। अवस्था। (सुद० वृ० १२३) सङ्गच्छन् यत्र महापुरुष, को अनन्तः (पुं०) अनन्तनाथ, चौदहवें तीर्थंकर। (भक्ति सं० नाऽनङ्गदशां याति। (सुद० १२३) १९) अनङ्गदर्शिक (वि०) १. कामदर्शक, २. अङ्ग नहीं दिखलाने अनन्तः (पुं०) शक्ति विशेष, जिसे अनन्त चतुष्टय भी कहा है। वाली। (जयो० ५/१०६) अनन्तः (पुं०) शेष नाग। (वीरो० २/२३) अनङ्ग प्रविष्टं (नपुं०) आगम ग्रन्थ, स्थविर रचित रचना। अनन्त (वि०) [नास्ति अन्तो यस्य] अन्त रहित, (सम्य अनङ्गभास (वि०) एकान्त, जहां शरीर नहीं दिखाई दे। १२२) अक्षय, असीम, अपरिमित। (जयो० १७/१०७) न सावश्यक ग्लानिरनङ्गभासे। (भक्ति सं० ४७) विद्यतेऽन्तो यस्य। (जयो० वृ० १७/१०७) अन्तो विनाश, अनङ्गरम्य (वि०) कामदेव के लिए रमणीय, अनङ्गरम्याणि न विद्यते अन्तो विनाशो। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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