SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्ककीर्तिः १०३ अर्तिः इदमाह सुरम्यककीर्तिमचिरादुपगम्य।' अर्कस्य कीर्ते सूर्यस्य अर्चासमयः (पुं०) पूजन समय, पूजनकाल, आराधनाकाल, वा। (जयोल वृ० ७/६४) स्तवन काल। 'तत्राहतोऽर्चासमयेऽर्चनाय।' (वीरा० ५/१६ ) अर्ककीर्तिः (पुं०) सूर्यकान्ति, रविप्रभा। अर्चासमये/पूजाकाले तदा अर्चनायपूजनाय योग्यान्युचितानि अर्कता (वि०) आक वृक्षत्व पना, क्षुद्रवक्ष विशेषता। (जयोल वस्तूनि प्रदाय। (वीरो० वृ० ५/१६) ७/६४) अर्चिः (स्त्री०) ज्वाला, किरण, स्फुलिंग, ज्योति, प्रभा, कान्ति। अर्कपद (वि०) अर्ककीर्ति के समीप। (जयो० ७/५६) (जयो० १२/६९) अर्कराजन् (पुं०) अर्ककीर्ति राजा। अर्चिष (वि०) प्रज्वलित अग्नि, प्रदीप्ताग्नि। 'नाद्रिताय तु अर्कयशः (पुं०) अर्ककीर्ति का यश। सदर्चिप घृता' (जयो० २/१०३) सम्यक्त्वेन निरीहताचिर्षि अर्गलः (पुं०) सांकल, सिटकनी, व्योंडा। तपत्येवं तपस्वी भवेत्। (मुनि०३३) अर्गला (स्त्री०) आगल, किल्ली, अगड़ी। अचिस् (पुं०) सूर्य, अग्नि, तेज, प्रकाश, चमक, प्रभा। अर्गलिका (स्त्री०) छोटी आगल, सांकल। अर्ज (अक०) उपार्जन करना, उपलब्ध करना, प्राप्त करना, कमाना, संग्रहण करना। "अर्जयन्ति ततः ताभ्यां परमार्थ अर्घ (अक०) ०मूल्यवान् होना, मूल्य रखना, ०मूल्य लगाना अर्घः (पुं) मूल्य, कीमता यः क्रीणाति सममितीदं। (सुद०९१) मनीषिणः।" (दयो० वृ० १२३) "स्वदोभ्यामर्जयेद्वृत्तिं" अर्घः (पु०) पूजा, आहूति। जल, चन्दनादि का एकत्रितकर (समु० २/३४) (अपने हाथों से अपनी अजीविका करें।) अर्जक् (वि०) [अण्वुल्] संग्रहण कर्ता, उपार्जन करने पूजना। स्थल स्यामनर्घतायाः (सुद० ७० ७२) वाला, प्राप्तकर्ता। अर्ध्य (वि.) १. मूल्यवान्, अत्यधिक कीमती। २. पूज्य अर्जनं (नपुं०) [अ+ ल्युट्] संग्रहण, उपार्जन, अधिग्रहण, भावना. ममप्रणता। ३. उपहारत्व, प्राभृतत्व। प्राप्त करना। हलिजनो बुधान्य-गुणार्जने।' (जयो० ४/६७) अy (नपुं०) अर्चनभाव, पूजनभाव, समादरभाव। किसान बहुधान्य अर्जन/संग्रहण/इकट्ठा करते हैं। अर्च् (अक०) पूजा करना, अर्चना करना, स्मरण करना, अर्जित (वि०) उपर्जित, संग्रहीत। सत्कार करना, अभिवादन करना। "श्रीमतां चरितमर्चतः अर्जुनः (पुं०) १. अर्जुन-नाम, कुन्ती पुत्र, पाण्डुपुत्र, तृतीय सताम।" (जयो० २/४६) अर्चत: स्तुवतः स्तवन। 'पर्वाणि पाण्डु। (जयो० १/१८) युधिष्ठिरो भीम इतीह मान्यः विशेषतोऽर्चयेत,' (जयो० २/३८) अर्चयेत्-पूजयेत्। पर्व शुभैर्गुणैरर्जुन एव नान्यः। (वि) २. [अर्ज उनन्+णिलुक् के दिनों में जिन भगवान् का स्मरण किया करें। च] धवल, निर्मल, स्वच्छ, उज्ज्वल, प्रभा युक्त, चमक अर्चक (वि०) [अण्वुल] स्मरण करने वाला, स्तुति करने युक्त। (जयो० १/१८) अर्जुनोधवलो। (जयो० वृ० १/१८) वाला, पृजक। ३. अर्जुन नामक वृक्ष, धन्वि, कीहा वृक्ष। (जयो० २४.१०६) अर्चन (वि०) [अङ्घ ल्युट्] स्मरण करने वाला, स्तुति करने (जयो० वृ० २१/२४) (धन्विभिरर्जुनवृक्षैर्बल) वाला. पूजा करने वाला, समाराधन, पूजन, स्मरण। अर्जुनवृक्षः (पुं०) कीहावृक्ष, धन्विवृक्ष। (जयो० २१/२४) 'महामते: श्रीपुरुपर्वतार्चने।" (जयो० २४/१६) (अर्चने अर्णः (पुं०) [ऋ+न] सागवान वृक्षा वर्णमाला का अक्षर। समाराधने-पूजा करने में) अर्णवः (पुं०) [अर्णासि सन्ति यस्मिन् अर्णस्व सलोपः] अर्चना (स्त्री०) पूजा, आराधना। (वीरो० ५/१६) समुद्र, उदधि, सागर। अर्चनीय (वि०) [अर्च+अनीय] पूजनीय, स्मरणीय, सम्माननीय, अर्णस् (नपुं०) [ऋ+असुन्। नुट् च] जन, नीर, वारि। "करिष्णवो आराधनीय, आदरणीय। दुग्धमिवार्णसोऽशात्।" अर्घ्य (वि०) [अर्च+ ण्यत्] पूजनीय, स्मरणीय, अर्चनीय। । अर्णसांश (वि०) जलांश (भक्ति० सं०६) अर्चा (स्त्री०) [ अर्च अङ्कटाप्] आराधना, पूजा, अर्चना। अर्णस्वत् (वि०) [अर्णस्+मतुप] गहरा जल, अधिक पानी। (वीरो० ५/१९) अर्तनं (नपुं०) [ऋत्+ल्युट्] आर्त, रुदन, शोक, कष्ट। अर्चावसानं (नपुं०) पूजा का अन्त, पूजा समाप्ति। आचार्याः | अर्तिः (स्त्री०) [अर्द क्तिन्] दुःख, शोक, पीड़ा, व्याधि। पूजाया अवसाने अन्ते गुरुरूपयोश्चर्चाद्वाराहतो। (वीरो० अशान्ति (भक्ति २४) 'न्यासीत्प्रहर्तुं भवसम्भवार्तिम्।' ५/१९) (समु० १/११) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy