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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १७३ ) (v) सूर्योदय से लेकर प्रश्नकाल तक जितना घण्टा मिनटात्मक अन्तर हो उसे ढाई गुना करने से इष्टकाल होता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदाहरण: सं० २०३२ आषाढ़ शुक्ला १२ रविवार २० जुलाई, १६७५ को अपराह्न १६/२० बजे प्रश्न किया । अतः नियमानुसार १६ / २० प्रश्नकाल ५/३६ सूर्योदयकाल १०/४१ = अन्तर इस अन्तर को ढाई गुना करने से २६ घटी ४२ पल ३० विपल इष्ट काल हुआ । ग्रह स्पष्टीकरण आजकल प्राय: सभी पञ्चाङ्गों में दैनिक स्पष्ट ग्रह दिये रहते हैं । उनके आधार पर अनुपात से इष्टकालीन स्पष्ट ग्रह का साधन कर लेना चाहिए । प्रश्नकुण्डली से यथार्थं फलादेश करने के लिए अपेक्षित है कि दृग्गणितीय या चित्रपक्षीय पंचाङ्ग का प्रयोग करें । अन्य पंचाङ्गों में गणित की स्थूलता के कारण प्रश्न कुण्डली एवं उसका फलादेश यथार्थ रूप से नहीं मिल पाता । लग्न साधन प्रश्नकालीन स्पष्ट सूर्य और इष्टकाल द्वारा लग्न सारिणी की सहायता से स्पष्ट लग्न का साधन किया जाता है । लग्न सारिणी में राशि का उल्लेख बायीं ओर तथा अंश का उल्लेख ऊपर के कोष्ठक में किया गया है । स्पष्ट सूर्य के राशि तथा अंश के आधार पर लग्न सारिणी से अंक लेकर उनमें इष्टकाल (घटी एवं पल ) जोड़ देना चाहिए। इन दोनों का योग सारिणी में जिस कोष्ठक के आसन्न हो, उसके बायीं ओर राशि का अंक और ऊपर अंश का अंक होता है। इस प्रकार लग्न के राशि-अंश का ज्ञान For Private and Personal Use Only
SR No.020128
Book TitleBhuvan Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
PublisherRanjan Publications
Publication Year1976
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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