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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १४५ ) में शुभग्रह बैठे हों तो वस्तु मन्दी होती है । इसके विपरीत यदि लग्न निर्बल हो—अर्थात् लग्नेश से दृष्टयुक्त न हो, अपितु पाप ग्रह से युतदृष्ट हो और पापग्रह केन्द्र में हो तो वस्तु तेज होती है । यह सिद्धान्त प्रश्नशास्त्र के सभी आचार्यों को मान्य है । उदाहरणार्थ निम्नलिखित कुण्डलियाँ देखिये : यहां लग्न लग्नेश गुरु से युक्त और बुध से दृष्ट है । तथा चन्द्रमा केन्द्र में है । अतः लग्न के बलवान होने के कारण मन्दी ( समर्ध) का योग है । इस कुण्डली में लग्न पर लग्नेश शुक्र की दृष्टि नहीं है। अपितु मंगल और राहु की दृष्टि है । तथा ये दोनों केन्द्र में स्थित भी हैं । अतः लग्न निर्बल होने के कारण मह ( तेजी ) का योग है । ३०. अथ नौमृतिबन्धन द्वारम् के र श ४ ६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2 ༢ मृत्युर्धरणकं नौश्च फलेन म्रियते येन योगेन तेन योगेन क्षेमेण नौः समायाति मृत्यु योगे आमयावी सम्रियते बद्धः 109 ३ For Private and Personal Use Only ३ ५ ७ १२ ६ बु ४ ८ सदृशं त्रयम् । สุ १० ९ चं bes ११ सू の १ मं ११ ९ मुच्यते ॥ १३८ ॥ समागते । शीघ्र ेण मुच्यते ॥१३६॥ SE ४ १२ अर्थात् मृत्यु, बन्धन एवं नौका ( जलयान ) तीनों प्रश्नों का फल समान होता है । जिस योग से मृत्यु होती है, उसी योग
SR No.020128
Book TitleBhuvan Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
PublisherRanjan Publications
Publication Year1976
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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