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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११२ ) विचार है कि यदि लग्नेश अष्टम स्थान में हो तो वादी की और सप्तमेश अष्टम स्थान में हो तो प्रतिवादी की मृत्यु कहनी चाहिए। क्योंकि लग्न और सप्तम क्रमशः वादी और प्रतिवादी के प्रतिनिधि भाव हैं। २३. अथ संकीर्ण निर्णयद्वारम् व्रतदानपट्टारोपण प्रतिमास्थापन विधिः स्मृतो गुरुणा। दशमस्थानं कार्य रविदृष्टि प्रभृतिभिर्बलवत् ॥१०२॥ अर्थात् दीक्षाग्रहण, राज्याभिषेक और प्रतिमा स्थापन (जब) दशम स्थान सूर्यादि की दृष्टि से बलवान् हो (तब) करना चाहिए, ऐसा गुरुजनों ने कहा है। भाष्य : दीक्षा, राज्य एवं देव प्रतिष्ठा का प्रतिनिधि भाव दशम भाव है तथा इस भाव के कारक सूर्य, बुध और गुरु होते हैं । अतः दशम स्थान पर सूर्य, बुध एवं गुरु आदि की दृष्टि होने पर जब दशम स्थान बलवान् हो तब दीक्षाग्रहण, राज्याभिषेक एवं मूर्ति प्रतिष्ठा आदि कार्य शुभ होते हैं । वस्तुतः उक्त तीनों कार्य व्यक्ति का यश, प्रभाव एवं प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले हैं। इसलिए प्रश्न कुण्डली में दशम स्थान का बलवान होना आवश्यक है। यत्रान्य लाभ योगो न भवति नवमं च भवति शुभदृष्टम् । तत्राचिन्ति तलाभः प्रष्टुर्गणकेन निर्देश्यः॥१०३॥ अर्थात् जब लाभ का कोई अन्य योग न हो, और नवम स्थान पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो प्रश्नकर्ता को अचिन्तित (अप्रत्याशित) लाभ होता है ऐसा दैवज्ञ को कहना चाहिए। भाष्य : यदि लाभ विषयक प्रश्न के समय लाभालाभ For Private and Personal Use Only
SR No.020128
Book TitleBhuvan Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
PublisherRanjan Publications
Publication Year1976
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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