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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११० ) पाप ग्रह सप्तम स्थान में स्थित हो, लग्न पर उसकी दृष्टि होने के कारण प्रतिवादी की विजय होती है। प्रश्नशास्त्र के प्रायः सभी आचार्यों का यही मत है। किन्तु नीचराशिगत ग्रह भाव फल का विनाशक होता है और अस्तंगत ग्रह भी विनष्ट सज्ञक होने के कारण भाव फल का नाश करता है। अतः यदि लग्न में नीच राशिगत या अस्तंगत ग्रह स्थित हो तो वादी की पराजय और शत्रु की विजय कही गयी है। लग्ने छूने च यदा क्रूरः खटो विवादिनोनं तदा। कलहनिवृत्तः कालेन जयति बलबान्गतबलं तु ॥१००॥ अर्थात् यदि लग्न और सप्तम में क्रूर ग्रह स्थित हो तो विवाद करने वालों में कलह समाप्त नहीं होता। किन्तु काफी समय के बाद बलवान् ग्रह निर्बल ग्रह को जीतता है । भाष्य : प्रश्नकाल में यदि क्रूर ग्रह लग्न और सप्तम में स्थित हो तो वादी और प्रतिवादी दोनों को समान रूप से बल मिलने के कारण उन दोनों का विवाद काफी समय तक समाप्त नहीं होता। किन्तु लग्न और सप्तम में स्थित ग्रहों में से एक बलवान् और दूसरा निर्बल हो तो बलवान् की निर्बल पर विजय होती है । तात्पर्य यह है कि लग्नस्थ क्रूर ग्रह बलवान् हो तो वादी की और सप्तमस्थ ग्रह बलवान् हो तो प्रतिवादी की जीत होती है । कदाचित ये दोनों ग्रह बलवान् हों तो वादी और प्रतिवादी में काफी समय तक विवाद चलने के बाद या तो समझौता हो जाता है अथवा दोनों में भयंकर लड़ाई होती है । ग्रन्थकार के इस मत का अन्य आचार्यों ने भी समर्थन किया है। For Private and Personal Use Only
SR No.020128
Book TitleBhuvan Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
PublisherRanjan Publications
Publication Year1976
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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