SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकोंका वक्तव्य भव्यजनकण्ठाभरणम् ग्रन्थ कविवर अर्हदासका बनाया हुआ है । यह ग्रन्थ मूलमें संस्कृत पद्य में है । काव्यदृष्टी से पं. कैलासचंद्र शास्त्रीजीने प्रस्तावना में इसकी योग्यताका वर्णन किया है। उससे इसकी योग्यताका परिचय हो सकता है। जैन गृहस्थोंको यथार्थ देवगुरुका श्रद्धान होनेसेही सम्यक्त्वकी उत्पत्ति होना संभव है, इसीलिये इस ग्रन्थ में उसकाही विशेष रूपसे विवेचन कर सच्चे देवकी की पहचान कर देनेका ग्रन्थकारने परिश्रम किया है । उसको कोई सज्जन अन्य देवोंकी निंदा समझते हैं। वास्तविक रूप से वह निंदा नहीं । किन्तु सच्चे देवका स्वरूप समझ में आनेसे उस विषयका भ्रम नष्ट होने काही जादा संभव है, इसलिये इसका प्रकाशन करना इष्ट समझा गया है । संस्कृत पद्यमय भाषाका ज्ञान आजकल सर्वत्र प्रचलित न होनेसे इसका हिन्दी भाषा में अनुवाद पंडितवर कैलासचंद्रजी शास्त्री प्रधानाध्यापक स्याद्वादपाठशाला बनारसके तरफ से करवाया गया है। वह अत्यंत सुंदर और सरल भाषामें उन्होंने कर दिया है । इसलिये उनको शतशः धन्यवाद हैं। उनके अनुवाद से भारतवर्ष के जैनियोंको इस काव्यका आस्वाद मिलने से उनको सच्चे देवका यथार्थ ज्ञान होकर सम्यक्त्वकी प्राप्ति हो ऐसी हम प्रभुसे प्रार्थना करते हैं। जीवराज गौतमचंद संस्थापक जैन संस्कृति संरक्षक संघ सोलापुर. सोलापुर विक्रम संवत् २०११ निर्वाण संवत् २४८१ कार्तिक बदि ८ For Private And Personal Use Only
SR No.020127
Book TitleBhavyajan Kanthabharanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhaddas, Kailaschandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages104
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy