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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रनागम ८३ अनादर अनायात, अज्ञात, अनादि, अजन्मा, अपूर्व, | अनातप-संज्ञा पु० (सं० ) छाया, घर्माअद्भुत, अपरिचित, विलक्षण, भविष्यत् ।। भाव, ताप-रहित, गर्मी का अभाव, ग्रीष्म " धेयंदुःखमनागतम् "- ( दर्शन शास्त्र ) । ऋतु का अभाव । " नीके करि हम सबको जानतिं बातें कहत | अनातपत्र-वि. (सं० अन् । प्रातपत्रअनागत"-सूबे० क्रि० वि० - अचानक, छाता ) छत्र-रहिन, छत्राभाव, बिना सहसा, अकस्मात् । छाते के। प्रनागम-संज्ञा, पु. ( सं० ) श्रागमन का | अनात्म-वि० (सं० ) आत्मा-रहित, जड़, प्रभाव, न आना, अनागमन । संज्ञा, पु. आत्मा का विरोधी पदार्थ, अचित्. अनाघात- वि० (सं० ) श्राघात या चोट जड़। से रहित, संज्ञा. पु० (सं०) एक प्रकार का अनात्मभान्-- वि० ( सं० ) अवशीभूतमना, ताल या स्वर (संगीत) “ उपजावत श्रात्म-निग्रह-हीन, अात्मा-विहीन । गावत गति सुन्दर, अनाघात के ताल" - अनात्म्य-वि० (सं० ) जो आत्मा से भिन्न सूर०। हो, पर, दूसरा, अपना जो न हो । अनाघ्रात-वि० (सं० ) बिना सूंघा, घ्राण अनाथ-वि० (सं० ) नाथ-हीन, बिना रहित, अस्पृष्ट, अभिनव, कोरा, नया, मालिक का, जिसके कोई पालन पोषण " अनाघ्रातं पुष्पं ---शकु० । करने वाला न हो, असहाय, अशरण, दीन, अनाचार--संज्ञा, पु० (सं० ) कदाचार, दुखी, अनाथा, अनाथू (बु० दे० ) “जो दुराचार, कुरीति, अशुद्धाचार, हीन, कुप्रथा, पै हौ अनाथ तब तुम ही बताओ नाथ" कुचाल, अंधेर,-श्रुति-स्मृति विरुद्ध कर्मा- | -- रत्नाकर । "अनाथ कौन है कि जो चारी, वि• अनाचारी- कुचाली। अनाथ-नाथ साथ हैं"। अनाचारिता-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) दुरा- | अनाथा--- वि० दे० (हिं म+नाथना ) जो चारिता, कुरीति, कुचाल, बुरा आचरण, नाथा न गया हो, बिना नाथा हुआ, अ. अत्याचारिता। ब्र० अनाथ । स्त्री. श्रनाथा-पति-हीना, अनाज-संज्ञा पु० दे० (सं० अन्नाद ) अन्न, | विधवा, असहाया, स्त्री. अनाधिनी-- धान्य, दाना, ग़ल्ला, सस्य । विधवा, पतिहीना, अनाश्रिता । अनाड़ी-नारी (दे०) वि० (सं० । अनाथालय-संज्ञा, पु. ( सं० यो० अनाथ+ मनायें ) नासमझ, नादान, अनजान, अदक्ष, प्रालय ) दीन-दुखियों या असहायों के अकुशल, अपटु, जो निपुण न हो, मूर्ख, पालने-पोषणे का स्थान, मुहताजखाना, गवार । यतीम ख़ाना, लंगर ख़ाना, अनाथाश्रम, अनारी-दे० (अ+ नारी) नारी-हीन, । लावारिस बच्चों की रक्षा का स्थान । मूर्ख “ नारि को न जानै बैद निपट अनाथाश्रम-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) अनारी है" " भाय क्यौं अनारिनि को अनाथालय । 'भरत अन्हाई हैं-" ऊ० श०। अनादर-संज्ञा, पु. ( सं० ) श्रादर-रहित, प्रनाडीपन-संज्ञा, भा० पु. (हिं. ) निरादर, अवज्ञा, अपमान, अप्रतिष्ठा, अवमूर्खता नासमझी, अनारीपना (दे०)। हेलन, तिरस्कार, सम्मान, बेइज्जती, एक मनास्य-वि० ( सं० ) दरिद्र, दुखी, ग़रीब, | प्रकार का अलंकार जिसमें प्राप्त वस्तु के .दीन, निर्धन, कंगाल। तुल्य दूसरी अप्राप्त वस्तु की इच्छा के द्वारा For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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