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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बड़े हों। दीर्घकेश १०७ दीवा. दीर्घकेश- संज्ञा, पु० यौ० (सं०)लम्बे या बड़े | दीर्घबाहु-वि• यो० (सं०) जिसके हाथ बाल, भालू । दीर्घ-ग्रीव-संज्ञा, पु. यो० (सं०) ऊष्ट्र, ऊँट । दीर्घमूल- संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) सरवन, वि० (सं०) लम्बी गर्दन वाला। शालपर्णी (औषधि) जवासा । दीर्घजंघा-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सारस दीर्घमूलक-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) विधारा पक्षी, ऊँट, बगुला पक्षी। । (औष०)। दीर्घजिह्वा-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) साँप, सर्प। दीर्घरद-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) शूकर, बाराह, स्त्री० (सं०) राजा विरोचन की कन्या। | दीर्घदंत । "सुता विरोचन की हती दीरघजिह्वा नाम । दीर्घलोचन-वि० यौ० (सं०) बड़ी बड़ी -राम। दीर्घ जीवित--वि० यौ० (सं०) चिरायु, आँखों या नेत्रों वाला। बहुत दिनों तक जीने वाला। संज्ञा, पु० | | दीर्घलोमा-संज्ञा, पु० यौ० सं०) रीछ, भालू । दीर्घवंश- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) नल, दीर्घजीवन । दीर्घ जीवी-वि० यौ० (सं० दीर्घ जीविन् ) तृण, खश । वि०-बड़े वंश वाला। चिरजीवी, बहुत समय या काल या दिनों | दीर्घवक्त्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हाथी। तक जीने वाला । संज्ञा, पु. (सं० दीर्घजीविन) दीर्घवर्ण - संज्ञा, पु० यौ० (सं०)द्विमात्रिकवर्ण। | दीर्घश्रुत - वि० यौ० (सं०) जो दूर तक सुन व्यास, अश्वत्थामा, बलि, हनुमान, विभीषण।। पड़े, दूर तक विख्यात । दीर्घतमा-संज्ञा, पु० (सं०) उतथ्य के पुत्र । जिन्होंने स्त्रियों का दूसरा ब्याह रोक दिया। दीर्घसक्थि -संज्ञा, पु० (सं०) गाड़ी, रथ । दीर्घतरु-संज्ञा, पु. यौ० ( सं० ) ताइ या दीर्घसत्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) यज्ञ विशेष। दीर्घसन्धानी-वि० यौ० (सं०)दूरदर्शी.ज्ञानी। खजूर का वृक्ष । दीर्घदंड-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एरण्ड वृक्ष, | दीर्घसूत्र--वि० यौ० (सं०) प्रत्येक कार्य में रेडी का पेड़ । विलम्ब करने वाला, बालसी, सुस्त । दीर्घ दर्शिता--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) दूर दीर्घसूत्रता--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) प्रत्येक दर्शिता । कार्य में देरी करने का स्वभाव । दीर्घदर्शी-वि० यौ० (सं० दूर दर्शिन् ) दूर- दोघसू दीर्घसूत्री-वि० (सं० दीर्घ सूत्रिन् ) बड़ी दर्शी, दूर की सोचने वाला, अग्र सोची, गृध । । देर करने वाला, श्रालसी, सुस्त । दीर्घ दृष्टि-वि० यौ० (सं०) दूरदर्शी, दीर्घ दीर्घस्वर-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) द्विमात्रिक दर्शी । संज्ञा, पु. (सं०) बहुत ज्ञानी, गृध्र स्वर । वि० संज्ञा, पु० (सं०) ऊँचे स्वर वाला। या गीध पक्षी। दीर्घाकार-वि० यौ० (सं०) बड़े डील-डौल का, दीर्घ नाद- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) शंख। । दीर्घकाय, वृहत्काय । दीर्घनिद्रा- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) मौत, मृत्यु दीर्घाव-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) लम्बी राह, दीर्घनिःश्वास--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) दुख | बड़ा मार्ग। की अधिकता से लम्बी लम्बी साँस । दीर्घायु-वि० यौ० (सं०) चिरजीवी, दीर्घजीवी। दीर्घपत्रक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लहसुन, दीधिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) बावली।। लाल पुनर्नवा (औष०)। दीवट-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० दीपस्थ ) दीर्घपुष्पक-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) मदार, दीपकाधार, चिरागदान, दियट। प्राक। दीवाई-संज्ञा, पु० दे० ( सं० दीपक ) दीया, दीर्घ पृष्ट-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) साँप, सपी दिया, दीपक । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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