SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 881
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दगड़ दगड़ - संज्ञा, पु० (दे०) बड़ा ढोल या नगाड़ा (युद्ध में) । ८७० दगड़ाना - स० क्रि० (दे०) डगराना, दौड़ना | दगदगा – संज्ञा, पु० ( प्र०) संदेह, चिन्ता, खटका, डर, भय, एक लालटेन या कंडील | दगदगाना - ० क्रि० दे० (हि० दगना) चमकना, प्रकाशित होना, दमदमाना । क्रि० स० (दे०) चमकाना, दमकाना । दगदगाहर—संज्ञा, स्त्री० दे० हि० दगदगाना) चमक, चमत्कार, प्रकाश । दगदगी – संज्ञा, त्रो० दे० (अ० दगदगा) संदेह, चिन्ता, खटका, डर, भय । दगध-संज्ञा, पु० दे० (सं० दग्ध) जला हुआ, दुग्ध ( सं ० ) । द्गधना - ० क्रि० दे० (दग्ध ) जलना । स० क्रि० (दे० ) जलाना, दुख देना । दगना - अ० क्रि० दे० (सं० दग्ध + ना -- प्रत्य० ) तोप या बंदूक यादि का छूटना चलना, जलना, झुलस जाना दागा जाना, विख्यात होना | स० क्रि० चल्लाना, छुटाना, जलाना, झुलसाना । दगर, दगरा -- संज्ञा, पु० (दे०) विलंब, देरी, रास्ता, राह, पंथ, मार्ग, डगर, डहर (ग्रा० ) | दगल, दगना - संज्ञा, पु० (दे०) मोटे कपड़े का बना या रुई भरा बड़ा अँगरखा, भारी लबादा, श्रोवर या बरान कोट-- "राम जी | के सोहे केसरिया दगला सिय जी के पचरँग चीर” – स्फु० । दगल फसल – संज्ञा, पु० (दे०) धोखा, छल, दुगा, फरेब | foot-co वाला | वि० (हि० दगना + हा प्रत्य०) दागा या जलाया हुआ । दगा -- संज्ञा, त्रो० (०) धोखा, छल, कपट । दगादार - वि० ( फा० ) दगाबाज़, छली कपटी | " एरे दगादार मेरे पातक प्रपार तोंहि" - पद्मा० । | दगाबाज़ - वि० ( फा० ) दगादार छली, कपटी ! दगाबाज़ी - संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) धोखा, छल । दगैल वि० दे० ( ० दाग़ + ऐल - प्रत्य० ) दागी, दागवाला, दोष, बुराई या खोट-युक्त। दग्ध - वि० (सं०) जला या जलाया हुआ. दुखी, कष्ट प्राप्त । दगवाना- - स० क्रि० दे० (हि० दागना का प्रे० रूप) किसी दूसरे से तोप, बंदूक आदि चलवाना या छुड़वाना, गर्म वस्तु से देह पर जलवाना ! दगहा - वि० दे० ( हि० दाग ) जिसकी देह में कहीं दाग़ हो, दाग़ वाला। दागी (दे० ) । वि० (हि० दाह मृतक संस्कार + हा प्रत्य ० ) मृतक संस्कार करने वाला, मुर्दा जलाने 1= Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दग्धा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) जली या जलायी हुई, दुखिया, पश्चिम दिशा अशुभ तिथियाँ । दग्धाक्षर -- संज्ञा, पु० (सं०) झ ह, र, भ और प पाँचों व जिनका छंद के आदि में लाना वर्जित है ( पिं० ) । दग्धिका - संज्ञा, स्त्री० (सं०) जला या भूना अन्न या भात | दग्धोदर - वि० यौ० (सं० दग्ध + उदर) भूखा पेट या भूख का मारा, क्षुधार्त्त | संज्ञा, पु० (सं०) खाने की इच्छा । संज्ञा, पु० (दे०) त्याग हिंसा, नाश । दनक दत्रका संज्ञा, खो० दे० ( अनु० ) ठोकर, धक्का, दबाव, झटका, ठेस । दक्कना - अ० क्रि० दे० (अनु०) दब जाना, धक्का या झटका खाना ठोकर लगना । " उचकि चलत कपि दचकनि दचकत मंच ऐसे मचकत भूतल के थल थल - राम० । दवना- अ० क्रि० दे० (अन० ) गिरना, पड़ना । दन्छ - संज्ञा, पु० दे० ( सं० दक्ष ) प्रवीण, चतुर, एक प्रजापति । दच्छकन्या, दन्छ- कुमारी, दच्छ सुतासंज्ञा, त्रो० यौ० दे० (सं० दक्षकन्या- दक्ष कुमारी ) सती जी । दच्चिन-दछिन वि० दे० (सं० दक्षिण) एक दिशा, अनुकूल, सीधा, दाहिना, दखिन । दविन पवन बह धीरे” " विद्या० । For Private and Personal Use Only ***
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy