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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रैलोक्य ८६० थका-माँदा त्रैलोक्य-संज्ञा, पु० (सं०) तीनों लोक, स्वदंघ्रि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) आपके चरण । __एक छंद। त्वदीय -- सर्व० (सं० ) तुम्हारा, आपका । त्रैवर्णिक-वि० यौ० (सं०) ब्राह्मण, क्षत्रिय, "कृष्ण त्वदीय पद पंकज पादरेणु" । वैश्य तीनों वर्गों का धर्म । त्वरा- संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) बल्दी, शीघ्रता । त्रैवार्षिक-वि० यौ० (सं०) जो प्रति तीसरे स्वरावान... वि. ( सं० त्वरावत्) जल्दी करने वर्ष हो, तीन वर्ष सम्बन्धी कार्य । वाला, जल्दबाज । त्रविक्रम-संज्ञा, पु. ( सं० ) बावन भगवान, त्वरित--वि० ( सं०) शीघ्रता-युक्त, तेज, "विष्णु, त्रिविक्रम । तुरत (दे०) । क्रि० वि० जल्दी, तुरंत । त्रोटक-संज्ञा, पु. ( सं०) ४ जगण का एक त्वरित गति-संज्ञा, पु० यौ० (सं०)शीघ्रगामी, छंद, नाटक का एक भेद (नाट्य)। एक छंद (पि०)। रोटी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) चोंच । स्वरितोदित-वि• यो० ( सं०) शीघ्रता या त्रोण-संज्ञा, पु० (सं० तूण ) तूण, भाथा, जल्दी से कहा हुआ वचन । तरकश, तूणीर । स्वष्टा-संज्ञा, पु० (सं० त्वष्ट) विश्वकर्मा, भ्यंबक-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) महादेव जी। शिव, प्रजापति, बढ़ई, सूर्य, देवता। त्र्यंबका-संज्ञा, स्त्री० ( सं०) दुर्गा जी। स्वाष्ट्र-संज्ञा, पु. ( सं० ) वृत्रासुर, वज्र । व्यधीश-संज्ञा, पु. ( सं० ) तोनों लोकों के स्वाष्ट्री-संज्ञा, स्त्री० (सं०) चित्रा नक्षत्र, स्वामी, विष्णु, शिव. तीनों कालों के स्वामी, संज्ञा नामक सूर्य-पत्नी । सूर्य्य, अयाधीश। विष-विषा--संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) शोभा, ध्याहिक-संज्ञा, पु. ( सं०) प्रति तीसरे दिन प्रभा, कांति । होने वाला, तीसरे दिन का। विषाम्पति-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) सूर्य, त्वक-संज्ञा, पु० (सं०) खाल, छाल, चमड़ा। रवि, भानु । त्वचा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) खाल, छाल, चमड़ा। विषि-संज्ञा, पु० (सं०) तेज, प्रताप, किरण। थ-हिन्दी-संस्कृत की वर्णमाला के त वर्ग थकना-अ० क्रि० दे० (सं० स्था+कृ ) का दूसरा वर्ण । संज्ञा, पु. ( सं०) मंगल, मेहनत करते करते या रास्ता चलते चलते भय, रक्षण, पहाड़, भोजन। हार जाना, शिथिल, या क्लांत होना या ऊब थंडिल-संज्ञा, पु० (सं०) यज्ञ की वेदी, ! जाना, शक्ति-हीन हो जाना, ढीला पड़ना, यज्ञ-स्थान। मोहित होना, ठहर जाना । पू० का. (दे०) थंब, थंभ-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्तंभ) खम्भा, थाकि, थकि ।' थके नारि नर प्रेम पियासे” थूनी, टेक । स्त्री० थंबी। -रामा०। थंभन-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्तंभन ) स्तंभन, थकान—संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. थकना) शिथिरुकावट, ठहराव । लता, थकावट, थकने का भाव । तकान । यभना-अ० क्रि० दे० (सं० स्तंभन ) रुकना, थकी (दे०)। ठहरना, थमना (दे०)। थकाना-स० कि० दे० (हि. थकना) क्लांत, थंभित*-वि० दे० (सं० स्तंभित ) ठहरा या शिथिल या अशक्त कराना । रुका हुआ, स्थिर, अटल, निश्चल । । थका-मांदा-संज्ञा, वि० देख्यौ०(हि. थकना+ For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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