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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिलिया | वरी तिसरायत तिलिया-संज्ञा, पु० दे० (हि. तिल)| तिलौदन-संज्ञा, पु. यौ० ( सं० तिल+ एक विष, शंखिया, सरपत । __ अोदन ) तिल और चावल मिली खिचड़ी। तिली-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. तिल) सफेद तिलौरी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि. तिल+ तिल, तिल्ली । तिल्ली-(ग्रा०)। __वरी) तिल मिली बरी या तिल की कचौरी । तिलुवा-संज्ञा, पु० (दे०) तिलों का लड्डू। तिल्ला-संज्ञा, पु० दे० ( अ० तिला ) कलातिलेदानी- संज्ञा, स्त्री० (हि. तिलदानी) वतून के काम का वस्त्र । संज्ञा, स्त्री० एक दरजियों की थैली जिसमें वे सुई तागे। वर्ण वृत्त, तिलका (पि०)। रखते हैं। तिल्लाना- एंज्ञा, पु० दे० (फा० तराना ) तिलेगू---संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० तेलगू ) तैलंग | गाने का एक गीत। देश की भाषा, तेलगू। तिल्ली-संज्ञा. स्त्री० दे० (सं० तिलक) प्लीहा, तिलैहा-संज्ञा, पु० (दे०) एक पक्षी, घुध्धू, | पिलही । संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० तिल) सनद पंडुकी, पंडुक । तिल, तिली। तिलोक-संज्ञा, पु० दे० (सं० त्रिलोक) तीनों तिवाड़ी-तिवारी-संज्ञा, पु० दे० (सं० लोक-पृथ्वी, आकाश, पाताल । “ ठाकुर त्रिपाठी ) ब्राह्मणों की एक जाति । तिलोक के कहाइ करिहैं कहा"--ऊ० श० ! तिवारा- संज्ञा, पु० दे० यौ० ( हि० तीन+ द्वार या वार ) तिदरी, तीन द्वार की दालान, तिलोक-नाथ तिलोक-पति - संज्ञा, पु. | तिवारी । तीन बार, तीसरी बार, यौ० दे० (सं० त्रिलोकनाथ-त्रिलोक-पति) तिबारा। तीनों लोंकों के स्वामी, विष्णु, तिलोकी तिवासा-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० त्रिवासर) नाथ, तिलोकीपति। तीन दिन, तिबासर । तिलोको-संज्ञा, पु० दे० (सं० त्रिलोकी) तिबासा-तिबासी-वि० दे० ( हि० ) तीन तीनों लोक, उपजाति छंद (पिं०)। दिनों का वासी। तिलोचन-संज्ञा, पु० दे० यौ० ( सं० त्रिलोचन ) शिव जी । तिशना, तिसना*-संज्ञा, पु० दे० ( सं० तृष्णा ) प्यास, तृष्णा, चाह । संज्ञा, पु० दे० तिलोत्तमा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक अप्सरा । (फ़ा० तशनीय) ताना, व्यंग। तिलादक-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) तिल और तिष्ठना*-अ० क्रि० दे० (सं० तिष्ठ) ठहरना। पानी जो प्रेत को दिया जाता है। " श्राजु तिष्ठित-वि० (सं० तिष्ठ) ठहरा हुआ। तिलोदक देहुँ पिता को "-राम । तिष्य-संज्ञा, पु० (सं०) पुष्य नक्षत्र, पूस तिलोरी- संज्ञा, स्त्री० (दे०) तेलिया, मैना। महीना, कलियुग, कल्याणकारी। संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० तिल-+बरी) तिल तिवन-वि० दे० (सं० तीक्ष्ण) तेज़, पैना, की बरी या कचौरी। तीखा, तीव्र, प्रचंड, चरपरा, तीछन (दे०)। तिलौचना-स० क्रि० दे० (हि. तेल + | तिसा-सर्व दे० (सं० तस्मिन् ) उस (विलो. औंछना ) थोड़ा तेल लगा किसी वस्तु को जिस) । मुहा०—तिस पर-इतना होने चिकना करना। पर या ऐसी दशा या अवस्था में । तिलौंडा-वि० दे० (हि. तेल ---ौंछा) तिसराय-क्रि० वि० दे० (हि. तीसरा ) तेल के से रंग या स्वाद वाला, चिकना, तीसरी बार, तिबारा। तेलयुक्त, स्नेहयुक्त । "जकित चकित द्वैतकि तिसरायत-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. तीसरा) रहे, तकित तिलौंछे नैन"-बि०। । तीसरा पन, पराया। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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