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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ज्ञातव्य ज्योतिषी ज्ञातव्य - वि० सं०) जानने योग्य, ज्ञान गम्य । ज्यायान - वि० पु० (सं०) जेठा, श्रेष्ठ, बड़ा । ज्यारना, ज्यावना * - प्र० क्रि० स० (सं० जिलाना ) जिलाना, पालना, खिलाना (दे० ) ज्यू | - अव्य० दे० (हिं० ज्यों ) जैसे, ज्यों । ज्ञाति - संज्ञा, पु० (सं०) एक जाति के लोग, ज्येष्ठ - वि० (सं०) जेठा, बड़ा | संज्ञा, पु० (सं०) गरमी का एक महीना । ज्ञाता - वि० (सं० ज्ञातृ, ज्ञाता ) जानने वाला, ज्ञानी । ( स्त्री० ज्ञात्री ) । जाति । ज्ञान - संज्ञा, पु० (सं०) समझ, बोध, यथार्थ ज्येष्ठता - संज्ञा, खो० (सं०) बड़ाई, श्रेष्ठता । ज्ञान, तत्व-ज्ञान | ज्येष्ठा - संज्ञा, खी० (सं०) तीन तारों से बना एक नक्षत्र, पति प्रिया स्त्री, बड़ी अँगुली, छिपकली । ज्ञानकांड -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वेद का वह भाग जिसमें ज्ञान का वर्णन है, उपनिषद् | ज्ञानगम्य—संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जो ज्ञान से जाना जा सके ज्येष्ठाश्रम - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रेष्ठ श्राश्रम, 66 99 / ज्ञानगम्य जय रघुराई ७४५ रामा० । ज्ञानगोचर -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जो ज्ञान से जाना जावे | ज्ञानगम्य । ज्ञानयोग - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ज्ञान लाभ द्वारा मुक्ति प्राप्ति का साधन । ज्ञानवान - वि० (सं०) बुद्धिमान, ज्ञानी । ज्ञानवृद्ध - वि० यौ० (सं०) ज्ञान में बड़ा । ज्ञानी – वि० ( सं० ज्ञानिन् ) बुद्धिमान, समझदार, ज्ञाता । ज्ञानेन्द्रिय- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) विषय बोधक इन्द्रियाँ, आँख, नाक, चमड़ा श्रादि । ज्ञापक – वि० (सं०) समझाने या सूचना देने वाला, ज्ञात कराने वाला । ज्ञापन - संज्ञा, पु० (सं० ) वि० समझाने और सूचना देने का काम । ज्ञाप्य, ज्ञापित । ज्ञापित - वि० (सं०) समझाया हुआ, सूचना दिया हुआ । वि० ज्ञापनीय । ज्ञेय - वि० (सं०) जानने योग्य । ज्या - संज्ञा, स्त्री० (सं०) प्रत्यंचा, कमान की ताँत या डोर, वृत्त के चाप की रेखा, ज़मीन । ज़्यादती - संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) बहुतायत, अधिकता, अन्याय, अत्याचार | ज़्यादा - वि० ( फा० ) बहुत अधिक । ज्याफ़त -- संज्ञा, खो० ( ० ) भोज, दावत । ज्यामिति - संज्ञा, स्त्री० (सं०) रेखागणित, ज्यामेटरी, (अं०) क्षेत्रमिति । भा० श० को० -६४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गृहस्थाश्रम | - 66 ज्यों, ज्यौं – क्रि० वि० (सं० यः + इव ) जैसे, जिस भाँति । " ज्यों दसनन महँ जीभ बिचारी " - रामा० । मुहा० - ज्यों त्योंजैसे तैसे, किसी न किसी ढंग से । ज्यों ज्यों-जैसे २, जिस २ तरह से, जितना २, ज्यों ज्यों नीचो है चलै " - वि० । ज्योतिः शिखा -- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) एक ज्योति — संज्ञा, स्त्री० ( सं० ज्योतिस् ) प्रकाश, विषम वर्ण वृत्त ( पिं० ) । लौ, उजेला, परमेश्वर । ज्योतिरिंगण - संज्ञा, पु० (सं०) खद्योत, जुगनू । ज्योतिर्मय - वि० (सं०) प्रकाश रूप, चमकता हुधा तेजोमय, कांतिमान | ज्योतिर्लिंग - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिव या महादेव जी । ज्योतिर्लोक - संज्ञा, पु० (सं०) ध्रुवलोक । ज्योतिषिद् - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ज्योतिषी । ज्योतिर्विद्या - संज्ञा, खो० यौ० (सं०) ज्योतिष विद्या । ज्योतिर्वेत्ता - संज्ञा, पु० (सं० ) ज्योतिषी । ज्योतिश्चक्र - संज्ञा, पु० (सं०) ग्रहों और राशियों का गोला या मंडल । 1 ज्योतिष- संज्ञा, पु० (सं०) खगोल विद्या । ज्योतिष शास्त्र -२ - यौ० ज्योतिषी - संज्ञा, पु० (सं० ज्योतिषिन् ) ज्योतिष-ज्ञाता । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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