SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 743
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिल्दसाज जिन्द बाँधने वाला। संज्ञा, स्त्री० जिल्द- नोक । मुहा०-जिह्वाग्र करना-कंठस्थ बंदी। या ज़बानी याद करना । " अनुष्य विद्या जिल्दसाज-संज्ञा, पु० (दे०) जिल्दबंद। जिह्वाय नर्तकी"-नैष० ।। संज्ञा, स्त्री० जिलदसाजी। जिह्वामूल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जीभ की जिल्लत-संज्ञा, स्त्री. (अ.) अमादर, अप- जड़ या पिछला स्थान । वि. जिह्वामूलीय। मान. तिरस्कार, झंझट । मुहा०--जिल्तत जिह्वामूलीय - संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वह उठाना या पाना-अपमानित होना। वर्ण जिसका उच्चारण जिह्वामूल से हो, क, दुगति, दुदशा, होन दशा । मुहा- ख के पहले विसर्ग आने से वे जिह्वामूलीय जिल्लत में पड़ना (होना, डालना) हो जाते हैं । “जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलं" -झंझट या दुर्गति में पड़ना। -~-पा०। जिवा-संज्ञा, पु० (दे०) जीव. जिउ, (ग्रा०) जींगना-संज्ञा, पु० दे० (सं० जगण ) जीउ । वि० कि० (हि. जीना) जिभो।। जुगुन । जिवनमूरि, जिवनमूरी-- संज्ञा, स्त्री० यौ० | जी-संज्ञा, पु० दे० (सं० जीव ) मन, दिल, दे० (सं० जीवन + मूल)+संजीवनी औषधि, । चित्त, हिम्मत, दम, जीवट, संकल्प, विचार। जिलाने वाली बूटी। “जिवनमूरि सम मुहा०-जी अच्छा होना---चित्त स्वस्थ्य जुगवति रहऊँ "-रामा० । होना, नीरोग होना। किसी पर जी जिवाना-स. क्रि० (दे०) जिलाना। आना किसी से प्रेम होना। जी उचजिस-वि० दे० (सं० यः, यस् ) विभक्ति- टना-चित्त न लगना, मन हटना। जी युक्त विशेष्य के साथ जो का रूप, जैसे .... उड़ जाना-भय, शा आदि से सहसा जिस पुरुष ने । सर्व-विभक्ति लगने के चित्त व्यग्र हो जाना। जो करना-हिम्मत पहले जो का रूप, जैसे -जिसको । करना, साहस करना, इच्छा होना, स्वीकार जिस्ता-संज्ञा, पु० (दे०) जस्ता, दस्ता। करना। जी का बुखार निकलनाजिस्म- संज्ञा,पु० (फा०) शरीर, देह । क्रोध, शोक, दुःखादि के वेग को रो, कलप जिष्णु-संज्ञा, पु० (सं०) अर्जुन, इन्द्र ।। या बक-झक कर शांत करना । (किसो '. आजगामाश्रमम् जिष्णोः प्रतीतः पाक- के) जी का जी समझना-किसी के शासनः" -किरा०। विषय में यह समझना कि वह भी जीव है जिह*-संज्ञा, पु० दे० (फ़ा० ज़द सं० ज्या)। उसे भी कष्ट होगा। जी खट्टा होना धनुष की प्रत्यंचा ( डोर), रोदा, ज्या।। मन फिर जाना याविरक्त होना, घृणा होना, ज़िहन (जेहन )-संज्ञा, पु० (अ०) समझ, ! जी (जिगर ) खोलकर-बिना किसी बुद्धि । मुहा०—ज़िहन खुलना-- बुद्धि संकोच के, बेधड़क, जितना जी चाहे, का विकास होना। जिहन में थाना- यथेष्ट । जी (जिगर) थाम वैठना--- समझ में आना । ज़िहन लड़ना (लगाना) धैर्य रखना। जी चलना--मन चाहना, - खूब सोचना। इच्छा होना। जी चुराना-हीलाहवाली जिहाद-संज्ञा, पु० ( म० ) मज़हबी लड़ाई, करना, किसी काम से भागना । जो छोटा अन्य धर्मियों से स्वधर्म प्रचारार्थ युद्ध । करना-मन उदास करना, उदारता _(मुस.)। छोड़ना, कंजूसी करना। जी हँगा रहना जिह्वा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) जीभ, ज़बान । या होना-ध्यान या चिंता रहना, चित्त जिह्वाग्र--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) जीभ की! चिंतित रहना । जी डूबना-चित्त स्थिर For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy