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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौघडा-चौघरा ६८० चौदस चौड़ा चिपटा दाँत, चौभर, चौहर (ग्रा० )। | चौतारा-संज्ञा, पु० (दे०) तँबूरे का सा चार चौघड़ा-चौघरा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० चौ तारों का एक बाजा। -: चार+घर=खाना) पान, इलायची रखने चौताल-संज्ञा, पु. ( हि० चौ+ताल ) का चार खानों वाला डिब्बा, चार खानों मृदंग का एक ताल, होली का एक गीत । का बरतन, चार बड़े पानों की खोंगी। चौतका-वि० दे० ( हि० चौ+तुक ) चौधरी- वि० (दे० ) घोड़ों की एक चाल, जिसमें चार तुक हों। संज्ञा, पु०-एक चौफाल, पोइया, सरपट। प्रकार का छंद जिसके चारों चरणों के तुक चैौघोड़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० चौ+ मिलते हों। घोड़ा) चार घोड़ों की गाड़ी, चौकड़ी। चौथ-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चतुर्थी ) पक्ष चौचंद*-संज्ञा, पु. ( हि० चौथ --- चंद या | की चौथी तिथि, चतुर्थी । मुहा०-चौथ चबाव+चड ) कलंक-सूचक अपवाद, । का चांद-भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी बदनामी की चर्चा, निन्दा । का चाँद जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि चैौचंदहाई-वि० स्त्री० (हि० चौचंद + हाई यदि कोई उसे देख ले तो उसे झंठा कलंक -प्रत्य० ) बदनामी करने वाली। लगता है--" चाँद चौथ को देखिये "चौड़-संज्ञा, पु० (दे० ) मुंडन, चूड़ाकरण प्रे० स० । चतुर्थाश, चौथाई भाग के रूप संस्कार, चौपट, सत्यानाश । में लिया गया आमदनी या तहसील का चौड़ा-वि० दे० (सं० चिविट = चिपटा ) | चतुर्थांश (मरहटा०)। -वि. चौथा । लंबाई की ओर के दोनों किनारों के बीच चौथपन-संज्ञा, पु. यौ० (हि० चौथा + का विस्तृत या चकला भाग, लम्बा का पन ) जीवन की चौथी अवस्था, बुढ़ापा, उलटा. अर्ज । ( स्त्री० चौड़ी)। वृद्धावस्था। " मनहुँ चौथपन अस उपचौडाई- संज्ञा, स्त्री० (हि० चौड़ा+ई प्रत्य०) देसा -रामा० । चौड़ापन, फैलाव, अर्ज़ । संज्ञा, स्त्री० | चौथा-वि० दे० (सं० चतुर्थ ) क्रम में चार चौड़ान । __ के स्थान में पड़ने वाला । (स्त्री० चौथी) चौडॉल-संज्ञा, पु० ( दे० ) पालकी, चौपंक्ति या पालकी। चौथाई---संज्ञा, पु० (हि० चौथा + ई प्रत्य० ) चौथा भाग, चतुर्थीश, चहारुम ( 0 )। चौतनियां- संज्ञा, स्त्री० (दे० ) चौतनी। | चौथिया- संज्ञा, पु० दे० (हि. चौथा ) वह चौतनी-संज्ञा स्त्रो० दे० ( हि० चौ=चार+ ज्वर जो प्रति चौथे दिन आवे, चौथाई का तनी=बंद ) बच्चों की वह टोपी जिसमें चार | बंद लगे रहते हैं। "पीत चौतनी सिरन्ह हकदार। सुहाई "-रामा० । चौथी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० चौथा) विवाह के चौथे दिन की एक रीति जिसमें वरचौतरफा-संज्ञा, पु० (दे०) पटमंडप, कन्या के हाथ के कंकन खोले जाते हैं, फसल वस्त्रागृह, तम्बू, कनात, रावटी। क्रि० वि० (दे०) चारो तरफ । की बाँट जिसमें ज़मीदार चौथाई लेता है । चौतरा-संज्ञा, पु. ( दे० ) चबूतरा | चौदंत-वि० (दे० ) चार दाँत का बच्चा, चउतग (ग्रा० ) " सम्पति में ऐठि बैठे । पशु, बली, हृष्टपुष्ट । चौतरा अदालत के "-देवः। चौदंती-संज्ञा, स्त्री० (दे०) शूरता, वीरता, चौतही-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० चा-+ तह ) अल्हड़पन। खेस की बुनावट का एक मोटा कपड़ा। चौदस-संज्ञा, स्त्री. (सं. चतुर्दशी) पक्ष चौपरत (दे०) चार तह वाली। का चौदहवाँ दिन, चतुर्दशी। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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