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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - चांगल चांद्र चाँगल -वि० दे० (सं० चंग, हि० चंगा) | चाँद पर थूकना-किसी महात्मा को स्वस्थ, तन्दुरुस्त, हृष्ट-पुष्ट, चतुर । संज्ञा, | कलंक लगाना जिसके कारण स्वयम् पु. घोड़े का एक रंग। अपमानित होना पड़े । किधर चाँद चाँचर-चाँचरि-संज्ञा स्त्री० दे० (सं० निकला है—ाज क्या अनहोनी बात चर्चरी) बसन्त ऋतु का एक राग, चाचर । हुई जो आप दिखाई पड़े। यौ०-ईद का चांचुछ-संज्ञा पु० दे० (सं० ) चोंच, चंचु । चाँद-मुश्किल से दिखाई पड़ने वाली यौ० चंचुप्रवेश-थोड़ा ज्ञान, थोड़ी पैठ । वस्तु । चंद्रमाल , महीना, द्वितीया के चॉटना-स० क्रि० ( दे० ) चपना, दबाना चंद्रमा सा एक प्राभूषण । चाँदमारी में चिह्न करना। निशाना लगाने का काला दाग । संज्ञा स्त्री० चाँटा--संज्ञा पु० दे० (हि. चिमटना : बड़ी खोपड़ी का मध्य भाग । "चाँद चौथ को यूँ टी, चिउँटा, चींटा (स्त्रो० चाटो चीटी) देखियो मोहन भादों मास"-प्रेम० । संज्ञा, पु० दे० ( अनु० चट) थप्पड़, चाँदतारा-संज्ञा पु० यौ० (हि. चाँद + तमाचा । तारा ) चमकीला बूटीदार बारीक मलमल, चांड-वि० दे० (सं० चंड) प्रवल, बलवान, एक पतंग। उग्र, उद्धत, शोख, बढ़ा चढ़ा, श्रेष्ठ, संतुष्ट चाँदना--संज्ञा पु० (हि. चाँद ) प्रकाश, धना। संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चंड = प्रबल ) उजाला। भार सँभलाने का खम्भा, टेक, थूनी किसी चाँदनी-संज्ञा स्त्री० (हि. चाँद ) चंद्रमा का प्रभाव की पूर्ति के लिये श्राकुलता, बड़ी प्रकाश । चंद्रिका । मुहा०-चाँदनी का जरूरत या चाह । मुहा०-चाँड सरना खेत-चंद्रमा का चारों ओर फैला हुआ इच्छा पूरी होना । “टूटे धनुष चाँड नहि प्रकाश । लो० चार दिन की चांदनी सरई.''-रामा० । दबाव, संकट, प्रबलता, (फिर अँधियारा पाख) थोड़े दिन का सुख अधिकता, बढ़ती। या आनन्द, बिछाने की बड़ी सक्नेद चादर, चांडना-सं० क्रि० दे० (१) खोदना, ऊपर तानने का सफ़ेद कपड़ा । “छिटक खोदकर गिराना, उखाड़ना, उजाड़ना ।। चंदनी सी रहति"-वि०। चाँदवाला-संज्ञा पु० यौ० (हि. चाँद+ चाँडाल, चंडाल-संज्ञा, पु० दे० (सं० ) बाला ) कान का एक गहना। एक अत्यन्त नीच जाति, डोम, डोमरा, | चाँदमारी - संज्ञा स्त्री. (हिं० चांद ---मारना) श्वपच । वि० पतित, गाली, दुष्ट, वधिक, दीवाल या कपड़े पर बने चिन्हों को लक्ष्य निर्दयी । ( स्त्री० चांडाली, चांडालिन, करके गोली चलाने का अभ्यास। चांडालिनी ) " बन्यो चण्डाल अधोरी" चाँदी—संज्ञा स्त्री० (हिं. चाँद ) एक सफ़ेद -रना। और चमकीली धातु जिसके सिक्के, प्राभूषण चाँडिला- -वि० दे० (सं० चंड) और बरतन श्रादि बनते हैं, रजत, सिलवर, प्रचण्ड, प्रबल, उग्र, ऊद्धत, नटखट, अधिक, | (अं०) । मुहा०-चाँदी का जूता-घूस, (स्त्री० चांडिली)। रिशवत । चाँदी काटना (होना)चांडी-संज्ञा स्त्री दे० (चंडी) चोंगी, कीप। खूब रुपया पैदा करना ( होना )। चांद-संज्ञा पु० दे० (सं० चन्द्र) चन्द्रमा, चांद्र-वि० (सं० ) चंद्रमा सम्बंधी। संज्ञा चन्द, चन्दा (दे०) । मुहा०-चाँद | पु० (सं० ) चाँद्रायण व्रत, चंद्रकांतका टुकड़ा----अत्यन्त सुन्दर मनुष्य ।। मणि, अदरख । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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