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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौहर ६०८ ग्रहदशा गौहर --- संज्ञा, पु० (फा०) मोती । " कद्र ग्रसना-स० क्रि० दे० ( सं० ग्रसन ) बुरी गौहर शाहदानद"। तरह पकड़ना, सताना। असित-वि० ग्यान--संज्ञा, पु० (दे०) ज्ञान । असनीय ग्रस्त । ग्यारस-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. ग्यारह ) ग्रस्त-वि० (सं०) पकड़ा हुआ, पीड़ित, एकादशी तिथि। खाया हुश्रा। ग्यारह-वि० दे० (सं० एकादश प्रा० एगारस) प्रस्ताग्रस्त-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) ग्रहण दश और एक । संज्ञा, पु० (दे०) दश और लगने पर चन्द्रमा या सूर्य का बिना मोक्ष एक की सूचक संख्या, ११। हुये अस्त होना। ग्रंथ-संज्ञा, पु० (सं०) पुस्तक, किताब, प्रस्तोदय-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) चन्द्रमा गाँठ देना या लगाना, ग्रंथन, धन । यौ० या सूर्य का ग्रहण लगने पर उदय होना। ग्रंथ साहब-सिक्खों का धर्म ग्रंथ । ग्रंथक-संज्ञा, पु० (सं.) ग्रंथ रचने वाला। ग्रह-संज्ञा, पु. ( सं० ) वे तारे जिनकी गति, उदय और अस्तकाल आदि का पता ग्रंथकर्ता-ग्रंथकार-संज्ञा, पु० (सं० ) ग्रंथ प्राचीन ज्योतिषियों ने लगा लिया था, वह रचने वाला। तारा जो अपने सौर जगत में सूर्य की ग्रंथचुंबक-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ग्रंथ+ परिक्रमा करे, जैसे पृथ्वी, मंगल, शुक्र आदि, चुंबक = चूमने वाला ) पुस्तकों या ग्रंथों नौ की संख्या, ग्रहण करना, लेना, अनुग्रह, का केवल पाठ करने वाला, अल्पज्ञ। कृपा, चन्द्रमा या सूर्य का ग्रहण, राहु, ग्रंथन-संज्ञा, पु. ( सं० ) गोंद लगाकर जोड़ना, जोड़ना, गूथना, गुंफन (सं.)। स्कन्द, शकुनी आदि, छोटे बच्चों के रोग । वि० ग्रंथनीय, ग्रंथित--- गूंथा हुश्रा, गाँठ मुहा०-अच्छे ग्रह होना-अच्छा समय होना, शुभ या अनुकूल ग्रह होना (फ० दिया हुआ, गुंफित (सं० )। ज्यो०)। बुरे ग्रह होना-ग्रहों का ग्रंथसंधि-संज्ञा स्त्री. यौ० (सं० ) ग्रंथ प्रतिकूल होना ( फ० ज्यो०), बुरे दिन का विभाग, जैसे--सर्ग, अध्याय । होना । वि० बुरी तरह से पकड़ने या तंग ग्रंथि- संज्ञा, स्त्री. (सं०) गाँठ, बन्धन, करने वाला, दिक करने वाला। माया-जाल, एक रोग जिसमें गोल गाँठों की भाँति सूजन हो जाती है । ग्रंथिल ग्रहण-संज्ञा, पु० (सं० ) सूर्य, चन्द्रमा या गाँठदार, गँठीला। किसी दूसरे श्राकाशचारी पिंड की ज्योति का ग्रंथिपर्णी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) गाँडर, दृव । आवरण जो ष्टि और उस पिंड के बीच में ग्रंथिवंधन-संज्ञा, पु. या० ( सं० ) विवाह किसी दूसरे श्राकाशचारी पिंड के श्राजाने के समय वर-कन्या के कपड़ों के कोनों को या छाया पड़ने से होता है ( लगना) परस्पर गाँठ लगा कर बाँधने की क्रिया। उपराग, पकड़ने या लेने की क्रिया, स्वीकार, गठ-बाँधन-गैंठ जोड़ा। मंजूर, अंगीकार । ग्रंथिमान - संज्ञा, पु० (सं० ) हरसिंगार, ग्रहणी-संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) अतिसार रोग हड़जोड़, यव, टूटी हुई हड्डी जोड़ने वाली संग्रहणी (सं.)। औषधि । ग्रहणीय-वि० (सं.) ग्रहण करने के ग्रसन-संज्ञा, पु० (सं०) भक्षण, निगलना, योग्य । ग्राह्य (सं० )। पकड़, गहन (व.) बुरी तरह से पकड़ना, ग्रहदशा-संज्ञा, स्त्री०, यौ० (सं०) गोचर ग्रास, ग्रहण । वि० ग्रसित, ग्रस्त । । ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की स्थिति के अनुसार For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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