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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरसी ५१० गुरूपदिष्ट गुरसी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० गो+रस) गुरुजन--संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) बड़े लोग, अँगीठी, प्राग रखने का बरतन । माता, पिता, प्राचार्य आदि। गुराई- संज्ञा, स्त्री० (दे० ) गोराई, गौर गुरुता-संज्ञा, स्रो० (सं०) गुरुत्व, भारीपन, . वर्ण, गौरता। महत्व, बड़प्पन, गुरुपन, गुरुग्राई। गुराब-संज्ञा, पु. (दे०) तोप लादने | गुरुताई:--संज्ञा, स्रो० (दे०) गुरुता। की गाड़ी। | गुरुतोमर-संज्ञा, पु. यो० (सं०) एक छंद । गुरिद--® संज्ञा, पु० दे० (फ़ा० गुर्ज) गदा। गुरुत्व गुरुत्व-संज्ञा, पु० (सं० ) भारीपन, वज़न, गुरिया-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० गुटिका ) बोझा, महत्व, बड़प्पन । माला का दाना या मनका, चौकोरा या | | गुरुत्वकेन्द्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) किसी गोल कटा हुआ छोटा टुकड़ा, मछली पदार्थ का वह विन्दु जिस पर उसका के मांस की बोटी। | बोझा एक हो कार्य करे। गुरुत्वाकर्षण --- संज्ञा, पु० या० (सं० ) वह गुरीरा-संज्ञा, पु० दे० (हि० गुड + ईला आकर्षक शक्ति जिसके कारण वस्तुएँ पृथ्वी +प्रत्य० ) मीठा, उत्तम । पर विच पाती हैं। गुरु-वि० (सं० ) लम्बे-चौड़े श्राकार वाला, गमवात्तिगा--संज्ञा, स्त्री० या० (सं०) विद्या भारी, वज़नी, कठिनाई से पकने या पचने | पढ़ लेने पर गुरु को दी गई दक्षिणा । वाला (खाद्य०) । संज्ञा, पु० ( सं० ) (सी० गुरुद्वारा- संज्ञा, पु० दे० (सं० गुरु+ द्वार ) गुरुग्रानी) देवताओं के प्राचार्य, वृहस्पति, प्राचार्य या गुरु का वास-स्थान, सिक्ख. वृहस्पति ग्रह, पुष्य नक्षत्र, यज्ञोपवीत मन्दिर। संस्कार में गायत्री मंत्र का उपदेशक, गुरु-भाई- संज्ञा, पु० यौ० (सं० गुरु + आचार्य, मंत्र का उपदेष्टा, किसी विद्या या । भाई-हि. ) एक ही गुरु के शिष्य । कला का शिक्षक, उस्ताद, दो मात्राओं का गुरु-सुख - वि० यौ० ( सं०----गुरु + मुख ) वर्ण (पिं० ) ब्रह्मा, विष्णु, शिव । संज्ञा, दीक्षित, गुरु से मंत्र प्राप्त। स्त्री० (सं० ) गुरुता । (दे०) गुरुताई, । (दे०) गुरुआई-चालाकी। गुरुमुखी-संज्ञा, स्त्री० (सं० गुरु-+ मुखी ) गुरुग्रानी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० गुरु -- पानी गुरु नानक की चलाई एक लिपि । वि. प्रत्य० ) गुरु की स्त्री, वह स्त्री जो शिक्षा स्त्री०--गुरु-मंत्र से दीक्षिता स्त्री। देती हो, गुरुग्राइन (दे०)। गुरुवाइन-संज्ञा, स्त्री० (हि. गुरु-- आइन प्रत्य० ) गुरु पत्नी, गुरु-माता । गुरुप्राइन गुरुवाई-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० गुरु - आई (दे०)। प्रत्य०) गुरु का धर्म, गुरु का काम चालाकी, | गुरुवार-संश, पु० या० (सं० ) वृहस्पति धूर्तता. गुरुनई (दे०)। का दिन, वृहस्पति, बीफै। गुरुकुल-संज्ञा. पु० यौ० ( सं० ) गुरु, श्राचार्य या शिक्षक का वास स्थान जहाँ गुरुविनी--वि० स्त्री० (सं० ) गर्भवती स्त्री। वह विद्यार्थियों को अपने साथ रखकर | गुरू-संज्ञा, पु० (सं० गुरू ) गुरु, प्राचार्य, शिक्षा देता हो। अध्यापक । (दे०) चाई, चालाक) । यौ०. गुरुच-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० गुडूची ) एक गुरू-घंटाल -- बड़ा भारी चालाक, धूर्त । मोटी बेल जो पेड़ों पर चढ़ती और दवा में गुरूपदिष्ट-वि० यौ० (सं०) (सं० गुरु+ पड़ती है, गिलोय, गुड़िच । ___ उपदिष्ट ) गुरु से शिक्षा या उपदेश प्राप्त । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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