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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुणोघ ५८७ गुदारा गुणोघ-संज्ञा, पु० यौ० (सं० गुण--अोघ) गुदगुदाहट -- संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) सुहराहट, गुण-समूह । चुलबुली। गुण्डा -संज्ञा, पु० (दे० ) लम्पट, दुराचारी, गुदडी- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० गूथना ) फटे दुरात्मा, दुष्ट, निर्लज, लुच्चा, बदमाश । पुराने टुकड़ों को जोड़ कर बनाया हुआ संज्ञा, स्त्री० गंडई। संज्ञा, पु. गंडापन । कपड़ा, कंथा (सं० ), कथरी (दे०), गुण्य-संज्ञा, पु० (सं० ) वह अंक जिसे जीर्ण वस्त्र । गुदरी, गदरी (दे०)। गुणा करना हो, गुणनयोग्य । मुहा०--गुदड़ी में (के) लाल-तुच्छ गुत-वि. पु. ( दे० ) उदासीन, मौन, स्थान में उत्तम वस्तु । संज्ञा, पु० (दे.) गम्भीरता, चुपचाप, लापरवाह, गुप्त (सं.)। गूदर, गुदरा। गुत्थमगुत्था-संज्ञा, पु० दे० (हि० गुथना ) उलझाव, फँसाव, भिड़त, (दे०) हाथापाई । गुदड़ी बाज़ार-संज्ञा, पु० यौ० (हि. गुदड़ी+बाज़ार-फा० ) फटे पुराने कपड़ों या गुत्थी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० गुथना ) कई टूटी-फूटी चीज़ों का बाज़ार। वस्तुओं के एक में गुथने से पड़ी गाँठ, गाँठ, गिरह, उलझन । गुदना-संज्ञा, पु० (दे०) गोदना। गुथना-अ० क्रि० दे० (सं० गुत्सन ) एक गुदभ्रंश - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) काँच लड़ी या गुच्छे में नाथा या गाँथा जाना, निकलने का रोग। टाँकना, भद्दी सिलाई होना, टाँका लगाना, गुदर--संज्ञा, पु० (दे० ) गूदर, गूदड़ एक का दूसरे से लड़ने को खूब लिपट फटा-पुराना वस्त्र । जाना। प्रे० स० कि० (हि० ) गुथाना. गुदत-स. गुदरत-स० कि० (दे०) जानता है, जनाता गुथवाना। है, जाते हैं, चलते हैं, निवेदन । “कहि न गुथवाना---स० क्रि० दे० (हि. गूथना का जाय नहिं गुदरत बनई "-- रामा० । प्रे० ) गूथने का काम दूसरे से कराना। गुदरना-स० क्रि० (दे०) (फा० गुज़र + गुथवा--वि० दे० ( हि० गुथना) जो गूंथकर ना०-हि. प्रत्य० ) जनाना, जानना, बनाया गया हो। गुज़रना, बीतना। गुदकार, गुदकारा--वि० यौ० ( हि० गुदरानना -स० कि० दे० (फा० गुज़रान गूदा या गुदार ) गूदेदार, जिसमें गूदा हो, +हि० --ना-प्रत्य०) पेश करना, सामने गुदगुदा, मोटा, मांसल । रखना, निवेदन करना। गुदगुदा-वि० दे० ( हि० गूदा ) गूदेदार, | | गुदरैन --संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० गुदरना) मांस से भरा, मुलायम । पढ़े हुए पाठ को शुद्धता पूर्वक सुनाना, गुदगुदाना-अ. क्रि० दे० ( हि० गुदगुदा) परीक्षा, इम्तिहान । हँसाने या छेड़ने के लिये किसी के तलवे, गुदा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) मल-द्वार । काँख आदि को सहलाना, मन-बहलाव या गुदाना-स० क्रि० दे० (हि. गोदना, प्रे० विनोद के लिये छेड़ना, किसी में उत्कंठा रूप ) गोदने की क्रिया कराना, गुदवाना। उत्पन्न करना। गुदाम-संज्ञा, पु० दे० ( अं० गोडाउन ) गुदगुदी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. गुदगुदाना ) गोला, वस्तुओं का भंडार, जहाँ बहुत सी वह सुरसुराहट या मीठी खजुली जो मांसल वस्तुयें जमा रहें, गोदाम । स्थानों पर अँगुली आदि के छू जाने से गुदार-वि० दे० (हि० गूदा ) गूदेदार। होती है, उत्कंठा, शौक, पाल्हाद, उल्लास । गुदारा --संज्ञा, पु० दे० (फ़ा. गुजारा) For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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