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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खई ५१८ खजाना-खजीना खई-संज्ञा, स्त्रो० (सं० क्षयी ) क्षय, लड़ाई, खग्ग---संज्ञा, पु० दे० (सं० खड़) तलवार । झगड़ा । " सुत-सनेह तिय सफल कुटम खनास-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सूर्य या चन्द्र मिलि निस-दिन होत खई"-सूर। के समस्त मंडल के ढक जाने वाला ग्रहण, खखा-संज्ञा, पु० दे० ( अ० कहकहा ) ज़ोर पूर्ण ग्रहण। की हंसी, अट्टहास, अनुभवी पुरुष, बड़ा, खचन-संज्ञा, पु. (सं० ) बाँधने, जड़ने ऊँचा हाथी खक्खा (दे०)। या अंकित करने की क्रिया। खखार -संज्ञा, पु. ( अनु० ) गाढ़ा थूक या खचना -अ० कि दे. (सं० खचन ) जड़ा कफ़, खखारने की क्रिया। जाना, अंकित होना, रम या अड़ जाना, खखारना-अ० क्रि० (अनु० ) थूक या अटक रहना, फँसना। स० कि० जड़ना, का के बाहर निकालने के लिए शब्द- अंकित करना, बनाना। सहित वायु का गले से बाहर फेंकना। खचाना-स० कि० (दे०) त्रींचना, अंकित खखेरना -स० क्रि० दे० (सं० आखेट) करना, शीघ्र लिखना । दबाना, भगाना, घायल करना, पीछा मुहा०—अपनी खचाना-अपने ही पर करना, छेदना, व्याकुल करना । ज़ोर देना। खखेटा-संज्ञा, पु० (दे० ) छिद्र, शंका, | खचर-संज्ञा, पु० (सं० ) सूर्य, मेघ, ग्रह, खटका। नक्षत्र, वायु, पक्षी, वाण । वि०-पाकाश. खखारना-प्र० क्रि० ( दे० ) खोदना, कोई गामी -- संज्ञा, पु० राक्षस, कसीस । वस्तु ढूंढना। खचरा-वि० दे० (हि. खचर ) दोगला, खग-संज्ञा, पु० (सं० ) आकाशचारा, वर्णशङ्कर, दुष्ट, पाजी, कूड़ा करकट । पक्षी, गंधर्व,वाण, ग्रह, तारा, बादल; देवता, खचाखच-क्रि० वि० ( अनु० ) बहुत भरा सूर्य, चन्द्रमा, वायु । “खग जाने खग ही हुआ, ठसाठस । की भाषा"-रामा० । यो० खगकेतुविष्णु, खगनायक-सूर्य, गरुड़। खचित--वि० (सं० ) चित्रित, लिखित, निर्मित, गड़ा हुआ। खगना --अ० क्रि० ( हि० खाँग = काँटा ) खचीना---संज्ञा, स्त्री० . दे०) लकीर, रेखा । चुभना, धंसना, लगजाना, लिप्त होना, खच्चर- संज्ञा, पु० (दे०) गधे और घोड़ी उपट पाना, अटक या अड़ जाना, चित्त में के संयोग से उत्पन्न एक पशु । बैठना, प्रभाव पड़ना, “न सुगन्ध-सनेह के ख्याल खगी "-दास । “ तेहि खेत | खज-वि० (सं० खाद्य, प्रा० खाजा ) खाने खगिय सूरज बली”–सूजा। खगनाथ-खगनायक, खगपति - संज्ञा, पु० | खजरा-वि० (दे० ) मिलावटी, बँडेरी, मगरा। यौ० (सं०) सूर्य, गरुड़, खगेश-खगेंद्रचन्द्रमा । खजला-संज्ञा, पु. ( दे०) खाजा । खगहा-संज्ञा, पु० (दे०) गैंडा। खजहजा—संज्ञा, पु० (दे०) (सं० खाद्याद्य) खगेश-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) गरुड़, । खाने के योग्य फल या मेवा । सूर्य, चन्द्र । खज़ानची संज्ञा, पु. ( फा० ) खज़ाने का खगोल-संज्ञा, पु० (सं० ) श्राकाश मंडल, मालिक, कोशाध्यक्ष । खगोल विद्या । यौ० खगोलविद्या --- | खज़ाना-खजीना-संज्ञा, पु० ( फा० ) धन नभ के नक्षत्र-ग्रहादि के ज्ञान प्राप्त करने या अन्य पदार्थो के संग्रह का स्थान, धनाकी विद्या, ज्योतिष। गार, राजस्व, कर, कोश, भंडार । योग्य, भच्य। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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