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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्यारी ५०७ क्रमान्वय नहीं सब कुछ । वि० कितना, बहुत ऋतुमाली--संज्ञा, स्त्री० (सं.) एक औषधि, अधिक, अपूर्व, विचित्र, बहुत अच्छा। क्रि० । किरवाली। वि० क्यों, किसलिये । श्रव्य-केवल प्रश्न- कथन-संज्ञा, पु० (सं०) सफ़ेद चंदन, ऊँट । -सूचक शब्द । काह (७०) कहा (५०) क्रम-संज्ञा, पु० (सं० ) पैर रखने या डगका (प्रान्ती. ) भरने की क्रिया, वस्तुओं या कार्यों के क्यारी---संज्ञा, स्त्री० (दे० ) कियारी। परस्पर आगे-पीछे होने का विधान या क्यों-क्रि-वि० (सं० किम् ) किसी कारण ! नियम, पूर्वापर सम्बन्ध व्यवस्था, शैली, की जिज्ञासा का शब्द, किस कारण, किस सिलसिला, तरतीब, कार्य को उचित रूप लिये, काहे (७०) क्यौं (०) । यो क्योंकि से धीरे धीरे करने की प्रणाली, परिपाटी, ---इस लिए या इस कारण कि, चूंकि ।। कल्पविधि, वेद-पाठ की एक प्रणाली, वैदिक मुहा०-कोंकर---किस प्रकार, कैसे। विधान, कल्प, रीति, एक अलंकार जिसमें क्यों नहीं-ऐसा ही है, ठीक है, निस्संदेह, प्रथमोक्त वस्तुओं का वर्णन कम से किया बेशक, सही कहते हो, हाँ, ज़रूर, कभी जाय (१० पी०) । संज्ञा, पु० (दे०) कर्म । नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता। क्योहूँ "मन, क्रम, बचन चरन-रत होई"- रामा। (७०) कैसे ही, किसी प्रकार भी। * क्रि० मु०-क्रम क्रम करके-धीरे धीरे, शनैः वि. किस भाँति या प्रकार । शनैः, कम से कम-क्रम से.-(एक क्रम कंदन -संज्ञा, पु. (सं०) रोना, विलाप, से) धीरे धीरे, एक सिलसिले से, यथायुद्ध-समय वीरों का आह्वान । वि० क्रदित क्रम-क्रम बांध कर-नियम बाँध कर, -विलपित, रोदित । क्रम लगाना-सिलसिला लगाना । क्रकच-संज्ञा, पु० (सं० ) एक अशुभ योग क्रमनासा - संज्ञा, स्त्रो० (दे० ) कर्मनाशा (ज्यो०) करील, पारा, करवत, एक नरक, नदी। गणित की एक क्रिया। क्रमशः - कि० वि० (सं० ) क्रम से, धीरेऋतु-संज्ञा, पु० (सं० ) निश्चय, संकल्प, धीरे, थोड़ा-थोड़ा करके, सिलसिलेवार । अभिलाषा, विवेक, प्रज्ञा, इंद्विय, जीव, | क्रम-भंग-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विधि-हीनता अश्वमेधयज्ञ, विष्णु, याग, आषाढ़, ब्रह्मा के एक प्रकार का दोष ( साहित्य० )। मानस पुत्रों या विश्वेदेवों में से एक, कृष्ण क्रमयोग-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) विधिके एक पुत्र । यो क्रतुपति-विष्णु, नियोग। क्रतु-फल-यज्ञ-फल, स्वर्ग । क्रम-संन्यास-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) ब्रह्मक्रतद्वैषी-संज्ञा, पु. यो० (सं०) असुर, चर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ के पश्चात क्रमानुसार दैत्य, नास्तिक। लिया गया सन्यास, परंपरागत । ऋतुध्वंसी-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिव, क्रमागत-वि० (सं० यौ०) परंपरागत, (दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट करने वाले) क्रम-प्राप्त। महादेव। ऋतु-पशु-संज्ञा, पु. यो. (सं० ) घोड़ा। क्रमानुकूल-क्रमानुसार-वि०,कि०वि० (सं० क्रतु-पुरुष--- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नारायण, यौ०) श्रेणी के अनुसार, क्रम से, तरतीब से। विष्णु। क्रमानुयायी-वि० यौ० (सं० ) व्यवस्थित, क्रतुभुज-संज्ञा, पु० (सं० ) देवता, सुर । ऋतुविक्रय-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) धन से क्रमान्वय–वि. यौ० (सं०) क्रमानुयायी, यज्ञ-फल का बेचने वाला। यथाक्रम, क्रमागत । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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