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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कोतवाल रक्षक । " पौरि पौरि कोतवार जो बैठा " -प० । कोतवाल - संज्ञा, पु० दे० (सं० कोटपाल ) पुलिस का एक प्रधान कर्मचारी या इंस्पेक्टर, पंडितों की सभा, बिरादरी की पंचायत, साधुत्रों के अखाड़े की बैठक, भोजादि का निमंत्रण देने या ऊपरी प्रबन्ध करने वाला । कोतवाली -संज्ञा, स्त्री० ( हि० ) कोतवाल ५०० का दफ़्तर या उसका पद या काम | कोता — वि० दे० ( फ़ा० कोतह) छोटा, कम, अल्प | ( स्त्री० कोती ) । कोताह - वि० ( फा० ) छोटा, कम । कोताही - संज्ञा, स्त्रो० ( फा० ) त्रुटि, कमी कोति* - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) कोद, दिशा, 1 र, तरफ़ । कोथला - संज्ञा, पु० ( हि० गोथल, कोठला ) बड़ा थैला, पेट । कोथली - संज्ञा, स्त्री० ( हि० कोथला ) कमर में बाँधने की रुपयों-पैसों की एक लम्बी थैली, बसनी, हिमयानी । कोदंड - संज्ञा, पु० (सं०) धनुष धनुराशि, भौंह | " कोदंड खंड्यौ राम " - रामा० । कोद ( कोध ) - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कोण - कुत्र) दिशा, चोर, कोना । कोदो, कोष, कोदों-संज्ञा, पु० दे० (सं० कोद्रव, कोद्रव्य) एक प्रकार का मोटा अनाज, कदन्न । मु० - कोदो देकर पढ़ना ( सीखना ) - अधूरी या बेढंगी शिक्षा पाना । छाती पर कोदो दलना- किसी को दिखाकर कोई बुरा लगने वाला काम करना । कोन-कोना - संज्ञा, पु० दे० (सं० कोण ) पृथक रह कर एक बिंदु पर मिलती हुई दो रेखाओं के बीच का अंतर, अंतराल, नुकीला किनारा या सिरा, लम्बाई-चौड़ाई के मिलने का स्थान, खूंट, दो दीवारों के मिलने का स्थान, एकान्त या छिपा हुआ कोमल स्थान । मुहा० - कोना झाँकना - सर्वत्र ढूंढ़ना भय या लज्जा से जी चुराना या बचने का उपाय करना । कोने में घुसनाछिपना । यौ० कोने-कोतरे- (कोथरे ) - कोने में, (दे० ) कोनौधे । कोनिया - संज्ञा, स्त्री० ( हि० कोना ) दीवाल के कोने पर चीजें रखने की पटिया, दो छप्परों के मिलने का स्थान। क्रि० स० (दे० ) कोनियाना -कोने में छिपा कर रखना ! कोप संज्ञा, पु० (सं० ) क्रोध, रिस, गुस्सा | वि० कुपित (सं० ) । कोपना - अ० क्रि० दे० (सं० कोप ) क्रोध करना, नाराज़ होना । कोपेउ जबहिं बारिचर - केतू - " रामा० । कोप भवन - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) रूठ कर बैठने का स्थान । " (C कोप भवन गवनी कैकेयी – " रामा० । कोबर - संज्ञा, पु० दे० ( हि० कोंपल ) डाल का पका श्रम, टपका, सीकर । कोपल संज्ञा, पु० दे० (सं० कोमल पल्लव) नई मुलायम पत्ती, कल्ला । कोपि सर्व० यौ० ( कोऽपि ) (सं० ) कोई भी । पू० क्रि० (हि० कोपना ) कुपित होकर । कोपी - वि० (सं० कोपिन् ) कोप करने वाला, क्रोधी । कोपीन - संज्ञा, पु० दे० (सं० लँगोटी । कोफ़्ता - संज्ञा, पु० ( फा ) एक प्रकार का कौपीन ) - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क़बाब | कोबिद - संज्ञा, पु० (दे० ) कोविद (सं० ) | कोबी - संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) गोभी नामक तरकारी । कोमल - वि० (सं० ) मृदु, मुलायम, नर्म, सुकुमार, नाजुक, अपरिपक, कच्चा, सुंदर, एक स्वर-भेद ( संगीत ० ) संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कोमलता - मृदुलता, नरमी । कोमलाई कोमलताई - (दे० ) ....... For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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