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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृपाण ४६० कृष्णसार की इच्छा या वृत्ति, अनुग्रह, दया, किरपा कृशोदरी-वि० स्त्री. यौ० (सं० ) पतली (दे०) क्षमा। यौ० संज्ञा, पु. (सं०) कमर वाली स्त्री। कृपाचार्य-द्रोणाचार्य के साले । कृषक-संज्ञा, पु० (सं०) किसान, खेतिहर, कृपाण-संज्ञा, पु० (सं० ) तलवार, कटार, । हल की फाल । दंडक वृत्त का एक भेद, कृपान, किरपान कृषारण-संज्ञा, पु० (दे० ) किसान, कृषि(दे०)। स्त्री० ( अल्पा०) कृपाणिका- जीवी, खेतिहर। कटारी। कृषि--संज्ञा, स्त्री. (पं०) खेती, काश्त, कृपा-पात्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कृपाकांक्षी, किसानी । वि. कृष्य-खेती के योग्य कृपा का अधिकारी, जिस पर कृपा की भूमि । यौ० कृषि-कर्म । कृष्ण-वि० (सं.) श्याम, काला, नीला । गई हो। कृपायतन-संज्ञा, पु० (सं०) अति कृपालु, | संज्ञा, पु. ( सं० ) यदुवंशीय वसुदेव और कृपानिधि, कृपासिंधु । कसानुजा देवकी के पुत्र जो विष्णु के प्रधान कृपालु-कृपाल-वि० (सं०) (दे०) कृपा अवतारों में हैं, एक असुर, जिसे इन्द्र ने करने वाला । संज्ञा, स्त्री० (सं०) कृपालुता मारा था, एक मंत्र-द्रष्टा ऋषि, अथर्ववेद के -दयालुता। अंतर्गत एक उपनिषद, छप्पय छंद का एक कृमि-संज्ञा, पु० (सं०) छोटा कीट, कीड़ा, | भेद, ४ वर्णों का एक वृत्त, वेद-व्यास, हिरमिजी या मिट्टी, लाह, किरवा अर्जुन, कोयल, कौवा, कदम वृक्ष, अँधेरा (प्रान्ती)। वि० कृमिल--कटियुक्त ।। पक्ष, कलियुग, चंद्र-कालिमा, सुरमा, कृमिज-वि० (सं०) कीड़ों से उत्पन्न । करौंदा । कान्ह, कन्हाई, कन्हैया,कान्हा संज्ञा, पु० (सं० ) रेशम, अगर, किरमिजी । काँधा ( ब )। कृष्णकर्मा-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) पापी, स्त्री० कृमिजा। कृमिघ्न-संज्ञा, पु० (सं० ) बायबिडंग । | अपराधी, दुष्कृत, निदित कर्म करने वाला। कृमिजंघा--संज्ञा, पु० (सं०) काला अगर । | कृष्णगंधा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) शोभांजन या सहिजन का वृक्ष । कृमिरोग--संज्ञा, पु० यो० (सं०) प्रामाशय में कीड़े उत्पन्न होने का रोग। कृष्णचंद्र--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) श्रीकृष्ण । कृश-वि० ( सं० ) दुबला, पतला, क्षीण, कृष्णद्वैपायन-संज्ञा, पु० (सं० ) महर्षि पराशर और दासराज की पालित कन्या अल्प, सूक्ष्म । वि० कृशित (सं०)। सत्यवती के पुत्र, जो द्वीप में उत्पन्न होने से कृशता-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) दुर्बलता, | द्वैपायन और वेदों का विभाग करने से अल्पता, कमी, कृसताई ( दे०)। कृशर--संज्ञा, पु. ( सं० ) तिल-चावल की वेदव्यास कहलाये, इन्हीं महर्षि ने १८ पुराण रचे । खिचड़ी, खिचड़ी, लोबिया मटर, केसारी, कृष्ण पक्ष-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) मास का दुबिया, कृसर (सं.)। वह अर्ध भाग जिसमें चंद्रमा की कलाओं कृशांगी-वि० यौ० (सं० ) पतली दुबली __ का क्रमशः हास होता और पूर्वनिशा में स्त्री, क्षीणांगी। अंधकार बढ़ता जाता है, धेरा पाख । कृशाक्षि-वि० (सं० ) मंद दृष्टि वाला। कृष्णफला-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) वाकुची, कृशानु-कसान ( दे० )--संज्ञा, पु० (सं०) करौंदा। अग्नि, आग, चित्रक या चीता औपध। कृष्णसार-संज्ञा, पु० (सं० ) काला हिरन, कृशित-वि० (सं० ) दुबला-पतला। । करसायल, सेंहुड, थूहर वृक्ष । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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