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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुल्हरी-कुल्हाड़ी ४८२ कुशल कुल्हरो-कुल्हाड़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० | कुवृत्ति-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) नीच बासना, कुल्हाड़ा) कुठारी (सं०)" ऐसे भारी वृक्ष अधम कर्म । को कुल्हरी देत गिराय"-गिर० । कुवेर-- संज्ञा, पु० (सं०) यक्षों का राजा कुल्हिया-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. कुल्हड़) एक देवता, धनेश, महर्षि पुलस्त्य के पोते छोटा पुरवा, चुकरिया। और विश्रवा ऋषि के पुत्र हैं, यह देवताओं मुहा०-कुल्हिया में गुड़ फोड़ना-चुप- | के कोषाध्यक्ष हैं, चतुर्थ लोकपाल होकर चाप, छिपाकर कुछ काम करना।। अलकापुरी में राज्य करते हैं, कुरूप होने से कुवलय-संज्ञा, पु० (सं०) नीलो कुई, कुवेर कहलाये, इनके ३० पैर और ८ दाँत कोक, नील कमल, भूमंडल, एक प्रकार के हैं, भरद्वाज जी की कन्या देववर्णिनी इनकी असुर " कुवलय विपिन कुंत हिम बरसा।" | माता है, इन्हें वैश्रवण भी कहते हैं, है -रामा० । निधियों के यह भंडारी हैं। कुवलयाश्व-संज्ञा, पु० (सं०) धंधमार और ऋतुध्वज राजा (गंधर्व-राज-कन्या कुश-संज्ञा, पु० (सं० कुश ---अल) दर्भ, कुशा, एक तृण, जो कांस के समान होता मदालसा के पति ) एक घोड़ा जिसे ऋषियों के यज्ञ-विध्वंसक पातालकेतु के वधार्थ सूर्य है और यज्ञादि में प्रयुक्त होता है, एक द्वीप, श्री रामचन्द्र के पुत्र, इनकी राजधानी कुशाने भेजा था। कुवलयापीड़-संज्ञा, पु० (सं० कुवलय+ वती थी, जल, कुली, काल, हलकी कील, प्रा+पीड़ ) हाथी (कंसका) या हाथी रूपी कुसी। कुस (दे०) कुसा। या० संज्ञा, एक दैत्य जिसे श्री कृष्ण ने मारा था। पु० (सं० ) कुशद्वीप-- घृत-सागर से कुवाच्य (कुवाक्य)-वि० (सं० ) न | घिरा हुश्रा ७ द्वीपों में से एक।। कहने योग्य, गंदा, बुरा । संज्ञा, पु. (सं० ) | कुशकेतु - संज्ञा, पु० (सं० ) राजा जनक के दुर्वचन, गाली। एक भाई। कुवादी-वि० (सं०) दुर्वचनवक्ता. मुँहफट। | कुशध्वज-संज्ञा, पु. (सं० ) सीरध्वज, कुवार ( कुवार )-संज्ञा, पु० दे० (सं० । जनक के छोटे भाई ( सीता के चचा ) आश्विन, कुमार) आश्विन मास, क्वाँर (दे०) इनकी दो कन्यायें मांडवी और श्रुतिकीर्ति असोज, कुआँर (दे०)। वि० बिना व्याहा, | यथाक्रम भरत और शत्रुघ्न को व्याही थीं। वि० स्त्री० कुवारी-कुआँर का। कुशनाभ-संज्ञा, पु० (सं० ) महाराज कुश कुविक्रम- संज्ञा, पु० (सं० ) अत्याचार, | शठता । वि० कुविक्रमी-शठ। कुशकंडिका- संज्ञा, स्त्री० (सं०) सब प्रकार कुविचार-संज्ञा, पु. (सं० ) नीच या अधम के यज्ञों के लिये अग्नि के संस्कार की एक विचार, अन्याय विचार । वि० कुविचारी- विधि, जिसमें हवनकर्ता कशासन पर बैठ, बुरे विचार वाला । स्त्री० कुविचारिणी | दाहिने हाथ से कुश लेकर उसकी नोक से "मिल्यौ दसकंठ सदा कुविचारी"-राम। वेदी पर रेखा खींचता है। कुविंद-संज्ञा, पु. ( सं० ) तन्तुवाय, | कुश-मुद्रिका-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) कुशकी जुलाहा, कपड़ा बुनने वाला......" गुबिंद पैंती ( दे०) पवित्री। सुकुबिंद बनि पाये हैं"। कुशल-वि० (सं० ) चतुर, दक्ष, प्रवीण, कविन्दु-संज्ञा, पु० (सं०) अधम पुत्र।। श्रेष्ठ, पुण्यशील, क्षेम, मंगल, राजी-खुशी। कुविहंग- संज्ञा, पु० (सं० ) बुरा या नीच | वि० स्त्री० कुशला-निपुणा । यो० कुशलपक्षी, बाज़। । क्षेम-कुसल-छेम (व.) राजी-ख़ुशी। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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