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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगियासन अगोय अगियासन-संज्ञा, पु. (हिं. आग+ अगुरु-वि० (सं०) जो भारी न हो। सन् ) एक प्रकार की घास, एक कीड़ा, हलका, गुरु से उपदेश न पाने वाला, एक प्रकार का रोग जिसके कारण चमड़े संज्ञा, पु० अगर का वृत्त, ऊद, शीशम । पर फफोले पड़ जाते हैं। अगुवा- संज्ञा, पु० देखो-अगुश्रा, एक पक्षी, अगिला-वि०-देखो ‘अगला" कीड़ा, देवता, मार्ग दिखाने वाला। अगोठा* -- संज्ञा, पु० ( सं० अग्रस्थ ) धागे | अगुवानी- संज्ञा, स्त्री. (दे०) अगवानी, का भाग। स्वागत, श्रभ्यर्थना। अगीत-पछीन*-क्रि० वि०-(सं० अग्रतः अगुसरना-प्र० क्रि० (सं० अग्रसर+ना +पश्चात् ) आगे और पीछे की ओर संज्ञा, | -प्रत्य० ) आगे बढ़ना, अग्रसर होना। पु०-आगे-पीछे का हिस्सा। अगुसारना-स. प्रे० क्रि० (दे०) आगे प्रगुपा (अगुवा )- संज्ञा, पु० दे० (हि. बढ़ाना, “बाम चरन अगुसारल रे"अागा ) भागे चलने वाला, नेता, मुखिया, विद्या। प्रधान, नायक, पथप्रदर्शक, विवाह की अंगूठनाई - स० क्रि० (सं० अवगंठन ) बात-चीत करने वाला। तोपना, ढाकना, घेरना, छेकना, " केहि अगुवाई-संज्ञा, स्त्री० (हिं. आगा+ कारन गढ़ कीन्ह अगूठी"-५० आई ) अग्रणी होने की क्रिया अग्रसरता, अगूठा .. संज्ञा. पु० (सं० अगूढ ) घेरा. प्रधानता, सरदारी, मार्ग-प्रदर्शन “ लेन सुहासिरा। चले मुनि की अगुआई" रघु० । अगूढ़-वि० (सं० ) जो छिपा न हो, " कियेउ निषाद नाथ अगुवाई' रामा० स्पष्ट, प्रकट, सरल, प्रासान संज्ञा, पु० अगुयाना -स. क्रि०(हिं. अागा) अगु गुणीभूत व्यंग के पाठ भेदों में से एक जो श्रा बनना, श्रागे चलना या जाना, नेता वाच्य के समान ही स्पष्ट रहता है । सं० नियत करना, बढ़ना, “संगक सखि अगु भा०-अगूढता-स्पष्टता। श्राइलिरे" विद्या। अगूता-क्रि० वि० (हिं. आगे ) भागे, सामने। "कहै. रतनाकर" पछाये पच्छिराजहू. अगेह-वि० (सं०) गृह-रहित, बेठिकाना, की, बढ़त पुकारहू के पार अगुआये हो।" " --रत्नाकर" अगुवानी-संज्ञा, स्त्री० अगेन्द्र-वि० (सं०-अग-पर्वत + इंद्र+ (दे० ) देखो-" अगवानी" स्वागत, राजा ) पर्वतों का राजा, सुमेरु, हिमालय । अगोचर-वि० (सं०) इंद्रियों के द्वारा अभ्यर्थना। जिसका अनुभव न हो, इंद्रियातीत. अगुण-वि० (सं०) रज, तम, आदि अव्यक्त। गुणों से रहित, निर्गुण, मूर्ख, गुण-रहित, अगोट संज्ञा, पु. ( सं० अग्र+प्रोट-हिं० ) संज्ञा पु० अवगुण, दोष । (दे० ) अगुन, श्रोट, पाड़, श्राश्रय, अाधार । वि० दे० अगुनी-“खल अध-अगुन, साधु " रहिमन' यहि संसार में, सब सुख गुन गाहा।" रामा०। मिलत अगोट।" अगुताना-अ० कि० (दे० ) उकताना, . अगोटना-स० क्रि० ( अग्र+ोट+नाऊबना। प्रत्य०) रोकना, छेकना, कैद करना, पहरे प्रगमन-क्रि० वि०, दे० (सं० अग्र-+ गमन) में रखना, छिपाना, घेरना, क्रि० स०-अंगीआगे, पहिले। | कार या स्वीकार करना, पसंद करना For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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