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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंगना अगहनं पूर्ववर्ती, प्राचीन, पुराना, अागामी, प्राने अगसार -कि० वि० (सं० अग्रसर वाला, अपर, दूसरा। संज्ञा, पु० अगुवा, आगे, पहिले ।। प्रधान, चतुर, पूर्वज, पुरखा ( बहु० अगले ) अगसारी-क्रि० वि०, (दे०) आगे, सामने, अगरो (दे० ) अगला, निपुण (व्रज.)।। " हस्तिक जूह प्राय अगसारी" ५० अगवना-अ० क्रि० (हि. आगे+ना) अगस्त-संज्ञा, पु० (सं० अगत्स्य) आगे बढ़ना, उद्यत होना, सँभालना. अगस्त्य-संज्ञा, पु० (सं० ) एक ऋषि सहना-" अगवै कौन, सिंह की झपटैं" | जिन्होंने समुद्र को सोख लिया था, ये मित्रा. छत्र० बरुण के पुत्र मान हैं, विन्ध्यपर्वत का गर्व अगवाई-संज्ञा, स्त्री० (हि० आगा+अवाई ) खर्व करने के कारण अगस्त्य कहलाये, अगवानी, अभ्यर्थना, स्वागत, " सफदरजंग इनको कुंभज भी कहते हैं, इनका उल्लेख भये अगवाई " सुजा०-मुनि आगमन वेद में भी पाया जाता है, इन्होंने "अगस्त्यसुनत दोऊ भाई, भूपति चले लेन अग संहिता" नाम का एक ग्रन्थ भी रचा था, वाई।" रघु०-संज्ञा, पु० (सं० अग्रगामी) । एक तारा जो भादों में सिंह के सूर्य के आगे चलने वाला, अग्रसर, अगुवा। १७ अंशों पर उदय होता है, इसके उदित अगवाड़ा-संज्ञा, पु. ( सं० अग्रवाट ) घर | होने पर जल निर्मल हो जाता है और के श्रागे का भाग, (विलोम) पिछवाड़ा, वर्षा कम तथा शीत की वृद्धि हो चलती अगवारे (दे० ) अगवारे-पिछवारे (दे०) है. मार्गादि का जल सूख चलता है, राजा श्रागे-पीछे। लोग तभी विजय-यात्रा करते हैं, पितृअगवान-संज्ञा, पु० (सं० अय-+-यान) तर्पणादि का प्रारम्भ होता है-" कहँ अगवानी या स्वागत करने वाला, अभ्यर्थना कुंभज कहँ सिंधु अपारा " " उदित अगस्त करने वाला, विवाह में कन्या पक्ष के लोग पंथ-जल सोखा" - रामा० । जो बारात को आगे से लेते हैं । " अगवा- अर्धचन्द्राकार लाल या सफ़ेद फूलों वाला नन्ह जब दीख बराता"रामा० एक वृक्ष। अगवानी-संज्ञा, स्त्री० ( अग्र --- वान ) । अगस्त्यकूट-संज्ञा, पु० (सं० ) दक्षिण में अतिथि के समीप जाकर आदर से मिलना, एक पर्वत जिस से ताम्रपर्णी नामक नदी निकली है। अम्यर्थना, स्वागत, पेशवाई, विवाह में अगह - वि० (सं० अग्राह्य ) न ग्रहण बारात को आगे से लेने की रोति, संज्ञा, . करने के लायक, चंचल, जो वर्णन और पु० अग्रणी, नेता, अग्रगामी (सं०) चिंतन से परे हो, कठिन, दुर्बोध " निसि" याहीते अनुमान होत है पटपद से बासर यह भरमत इत उत, अगह गही अगवानी" सू० नहि जाई-- सूर०। अगवार-संज्ञा, पु० दे० (सं० अग्र--वर) अगहन-संज्ञा, पु० (सं० अग्रहायण ) हलवाहे आदि के लिये अलग किया हुआ हेमन्त ऋतु का पहिला महीना, मार्गशीर्ष, अनाज का भाग, भूसे के साथ उड़ जाने मगसर। वाला अन्न, (दे० ) अगवाड़ा। अगवार- अगहनिया-अगहनी-वि० (सं० अग्रपिछवार ( दे० )। हायणी ) अगहन में होने वाली फसल, अगवासी-संज्ञा स्त्री० (सं० अग्रवासी ) हल- धान। में फाल लगाने की लकड़ी, पैदावार में हल अगहनी--संज्ञा, स्त्री० (हि. अगहन+ ईवाहे का भाग। । प्रत्य०) अगहन में काटी जाने वाली फसल । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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