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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कनउड www.kobatirth.org कनटोप कनउड-कनऊँड –वि० (दे०) कनौड़ा, कनकतार -- संज्ञा, पु० (सं० ) सुहागा । कनावड़ा । कनकाचल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) स्वर्ण पर्वत, सुमेरू । श्रगस्तगिरि । कनकानी - संज्ञा, पु० ( दे० ) घोड़े की एक जाति । कनक संज्ञा, पु० (सं० ) सोना, कंचन, धतूरा, पलास, टेसू, या ढाक नागकेसर, खजूर, गेहूँ का आटा । छप्पय छंद का एक भेद | संज्ञा, पु० दे० (सं० कणक ) गेहूँ | कनकली - संज्ञा, (पु० यौ० सं० कन + कली - हि० ) करन फूल, लौंग । कनककशिपु - संज्ञा, पु० (सं० ) हिरण्यकशिपु, प्रह्लाद के पिता । - ३६७ कनक चंपक संज्ञा, पु० (सं० ) कर्णिकार, कनियादी, कनकचंपा ( हि० ) | कनकटा - वि० ( हि० कान + काटना ) जिसका कान कटा हो, बूचा, कान काट लेने वाले, कनकटवा (दे० ) | कनकना - वि० ( अनु० ) रंचकाघात से टूटने वाला, तनिक में ही चिढ़ने वाला, व्यर्थ कुपित हो बकने वाला । वि० ( हि० कनकनाना ) कनकनाने, या चुनचुनानेवाला, refuse चिड़चिड़ा, बड़बड़ाने वाला | स्त्री० कनकनी | कनमनाना - अ० क्रि० ( हि० कांद, पु० हि० कान ) सूरन, अरवी आदि वस्तुओं के छूने से अंगो में उत्पन्न होने वाली चुनचुनाहट, गला काटना, अरुचि लगना, बड़बड़ाना, लड़ना | झि० प्र० ( हि० कना ) चौकन्ना होना, रोमांचित होना, ज्वर के पूर्व बदन का कुछ कँपना । कनखी - संज्ञा स्त्री० दे० ( हि० कोन + आँख ) पुतली को कोने में ले जा कर टेढ़ी नज़र से देखना, दूसरों को दृष्टि बचा कर देखना, थाँख का इशारा । कनैखी ( ब० ) मु० - कनखी मारना--- - याँख से इशारा करना, सना करना । कनखी चलाना - कनखी मारना । कनखी लगाना-- इशारा करना । (आँख से 'कनकनाहर ' संज्ञा, स्त्री० संज्ञा, पु०. कनकनी । कनखैया - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) कनखी | कनखोदनी -संज्ञा स्त्री० दे० ( हि० कान + का फल । कनक पुष्प-संज्ञा, पु० (सं० थौ० ) धतूरे खोदना ) कान का मैल निकालने की सलाई । कनगुरिया - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० कानी + अँगुरी ) सब से छोटी अँगुली, कनिfar | विनी (दे० ) संज्ञा, पु० (सं० यौ० ) कनछेदना- संज्ञा, पु० दे० ( हि० कान + छेदना ) कर्ण वेध, कान छेदने का एक संस्कार ( हिन्दू ) | कनटोप - संज्ञा, पु० दे० ( हि० कान + टोप कनकफल- संज्ञा, पु० (सं० यौ० ) धतूरे का फल, जमाल गोटा । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कनकरस हरिताल । कनकलोचन - संज्ञा, पु० ( सं० यौ० ) हिर ण्याक्ष राक्षस । कनकी - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कणिक ) चावलों के टूटे हुए करण । कनकृत-संज्ञा पु० दे० ( हि० कन + कूत्ना) खेत की खड़ी फसल का अनुमान । कनकौवा - ( कनकौआ ) - संज्ञा, पु० (दे० ) ( हि० कन्ना + कौवा ) बड़ी पतङ्ग, गुड्डी । कनखजूर - संज्ञा, पु० दे० ( हि० कान + खर्जसं ० ) विषैला कीड़ा जिसके बहुत से पैर होते हैं, काँतर, गोजर । कनखा - संज्ञा, पु० दे० (सं० कांडक ). नवांकुर, कोंपल | कनखियाना -- स० क्रि० दे० (हि० कनखी ) तिरछी या । टेढ़ो दृष्टि से देखना, आँख से इशारा करना । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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