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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कणिका ३६२ कतली अच् ) सुवर्णकार, वैशेषिक दर्शन-कर्ता एक कतरछांट-संज्ञा, स्त्री० (दे० यौ ) काटमुनि या ऋषि, जो तंडुल-कण खाकर छाँट, कतर-ब्यौंत । जीवन बिताते थे, (अतः यह नाम ) इनका कतर-व्योत-संज्ञा, स्त्री० यौ० (हि० कतरना दूसरा उलूक था, यह परिमाणुवादी थे, । +ब्योंतना ) काट-छांट, उलट-फेर, इधर इनका शास्त्र औलूक्य या वैशेषिक है। का उधर करना, उधेड़-बुन, हेर फेर, सोचकणिका-संज्ञा, स्त्री० (सं० कणिक् + पा) विचार, दूसरे के सौदे में से कुछ रकम अपने किनका, टुकड़ा, बिन्दु, चावल के छोटे छोटे लिये निकाल लेना, युक्ति, जोड़-तोड़, ढंग, टुकड़े कनका, लेश । ढर्रा, सुलझाना। कणिश-संज्ञा, पु. (सं० ) गेहूँ आदि कतरवाना—स० कि० (दे० कतरना का प्रे० अनाज की बाल। रूप ) कतराना। कणी--संज्ञा, स्त्री० (सं० ) टुकड़ा, कनी कतरा--संज्ञा, पु. (अ.) बंद, बिंदु, (दे० ) अति सूक्ष्म भाग। (दे०)। संज्ञा, पु० (हि. कतरना ) कटा कत-संज्ञा, पु. (अ.) देशी कलम की हुश्रा टुकड़ा, टुकड़ा, खंड | वि० (दे.) नोंक की गाड़ी कीट, कलम या लेखनी का कतरा हुआ, काटा हुआ।... कतरे कतरे डंक । ॐ अव्य० दे० (सं० कुतः, प्रा. कुतो) पतरे करिहाँ की "प० । क्यों, किस लिये, काहे को। कतक कतराई-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० कतराना ) (दे०)। "बिन पूछे ही धर्म कतेक कहिये कतरने का काम, कतरने की मजदूरी । दहिये हिय-"नन्द “कत सिख देइ हमै कतराना-संज्ञा, स्त्री० (हि. कतरना) कोउ माई." रामा० । किसी वस्तु या व्यक्ति को बचा कर किनारे कतई-अव्य० (अ.) बिलकुल, एकदम । से निकल जाना, रास्ता काट कर चला कतक-संज्ञा, पु. ( सं० ) रीठा, निर्मली। जाना । स० कि० (हि. कतरना का प्रे० क्रि० वि० (दे०) कत, क्यों ।। रूप) कटाना, छंटवाना, कटवाना, अलग कतनई-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) सूत कातने की करना । अ० कि० (दे०) बचा कर या मजूरी, कताई। काट कर जाना। कतना-अ० क्रि० (हि. कातना) काता कसरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कर्तरी = जाना । अत्र्य० ( दे.) कितना । चक) कोल्हू का पाट जिस पर बैठ कर कतनी-संज्ञा, स्त्री. ( दे. हि. कसना ) सूत कातने की टिकरी। बैल हांके जाते हैं हाथ में पहिनने का पीतल कतरन-संज्ञा, स्त्री० ( हि• कतरना ) काटने का एक गहना, जमी हुई मिठाई का टुकड़ा । छांटने के बाद बचे हुए कपड़े या कागज़ वि० (हि. कतरना ) काटी हुई। के छोटे टुकड़े। कतल-संज्ञा, पु० दे० (अ० कत्ल) बध, हत्या। कतरना-स० कि० दे० सं० कर्तन ) कैची कतलबाज--संज्ञा, पु० दे० (अ. कल --- या किसी औजार से काटना, छाँटना। वाज़ - फ़ा ) बधिक, हत्यारा, जल्लाद । कतरनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. कतरना) वि. कल करने वाला, जालिम । बाल, कपड़ा, काग़ज़ आदि काटने का एक कतलाम-संज्ञा, पु० दे० (अ. कल्लेअाम ) औज़ार, कैची , मिकराज धातुओं की चद्दर सर्व साधारण का बध, सर्व संहार। आदि काटने का सँड़सी-जैसा एक औजार, कतली--संज्ञा, स्त्री० दे० (फा० कतरा) जमी काती, कतन्नी ( दे० )। करम कतरनी हुई मिठाई आदि का चौकोर टुकड़ा । वि० ज्ञान का छूरा, बद्धी टेक लगावै-"। । (अ० क़त्ल ) कत्ल करने वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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