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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कचरकूट ३८२ कचूमर कचरकूट-संज्ञा पु० (हि. कचरना - कूटना) कचहरी-संज्ञा, स्त्री० ( हि० कचकच = पीटना और लतियाना, मार-कूट, पेट भर विवाद । हरी - प्रत्य० ) गोष्टी, जमाकड़ा, खाना, इच्छा भोजन। दरबार, अदालत, राजसभा, न्यायालय, कचरना-स० कि० दे० (सं० कच्चरण) दफतर। पैर से कुचलना, दबाना, रौंदना, खूब खाना, कचाई ( कच्चाई )-संज्ञा, स्त्री० ( हि. कुचल कर खाना। “कीच बीच नीच तौ | कचा + ई-प्रत्य० ) कच्चापन, अनुभवकुटुम्ब को कचरिहौं "- पद्मा० । शून्यता, अजीर्ण, अनपच ।। कचर-पचर--संज्ञा, पु० (दे० ) गिचपिच । कचाना-अ० कि० (हि. कच्चा) पीछे कचरा-संज्ञा, पु० दे० (हि. कच्चा ) कच्चा हटना, हिम्मत हारना, डरना । खरबूज़ा या फूट, ककड़ी, कूड़ा-करकट, रद्दी | कचायध-संज्ञा, स्त्री० (दे० कचा-+ गंध ) चीज़, उरद या चने की पीठी, समुद्र का कच्चेपन की महक कचाइँध (दे० । सेवार । वि० कुचला हुआ। कचारना-स० क्रि० दे० ( हि०पछारना) कचरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. कच्चा) ककड़ी कपड़ा धोना, कुचलना। की जाति की एक जंगली बेल जिसके छोटे कचाल--संज्ञा, पु० (दे०) विवाद, झगड़ा। छोटे फल पकने पर खाये जाते हैं, पेंहटा । कचरिया (दे० ) । हटे के कच्चे सुखाये कचालू-संज्ञा, पु० दे० (हि० कच्चा--आलू) एक प्रकार की अरुई, बंडा, एक प्रकार की हुये फल, वही तले हुए फल, काट कर चाट, निमक-मिर्च आदि मिले उबले आलू सुखाये हुए फल-फूल जो तरकारी के लिये रक्खे जाते हैं, छिलकेदार दाल । वि० स्त्री० के टुकड़े। कचिया-संज्ञा, पु. ( दे०) काँच लवण, कुचली हुई। कचला-संज्ञा, पु० (दे० ) गीली मिट्टी, हँसुवा, दाँती । संज्ञा, पु. ( दे० ) कचिकीचड़। याहट-कचापन । कचलौंदा-संज्ञा, पु० ( हि० कच्चा--- लोंदा) कचियाना-स० क्रि० (दे०) कच्चा करना, लोई, कच्चे आटे का सना हुआ लोंदा ।। कपड़ों में योही डोरे डालना। अ० क्रि० कचलोन-संज्ञा, पु. (हि. कच्चा-लोन ) (दे० ) हिचकिचाना, सहमना, हिम्मत काँच की भट्टियों में जमे हुए क्षार से बनने हारना, झपना, डरना। वाला लवण, या नमक, विट लोन, काला कचीची*---संज्ञा, स्त्री० ( अनु० कच = नमक। कुचलने का शब्द ) जबड़ा, डाढ़, कचपची, कचलोहिया-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) कच्चे । कृत्तिका नक्षत्र । लोहे का बना हुया। मु०-कचीची बंधना-दाँत बैठना कचलोहू-संज्ञा, पु. ( हि० कच्चा--लोह ) ( मरते समय ) । खुले जखम से थोड़ा थोड़ा बहने वाला कचुलना-संज्ञा, पु० (दे०) कसोरा, प्याला । पनछा या पानी, रस, धातु । | कचूमर-संज्ञा, पु० दे० ( हि० कुचलना) कचवना-स० क्रि० (दे० ) स्वतंत्रता से, कुचल कर बनाया हुआ अचार, कुचला, निश्चित होकर खाना। कुचली हुई वस्तु, भा, गूदा । कचवाँसी-संज्ञा, स्त्री. ( दे०) बीघे का मु०-कमर निकालना (करना)पाठ हजारवाँ भाग, (२० कचवाँसी = १ खूब कूटना, चूर चूर करना, कुचलना, नष्ट विस्वाँसी)। । करना, खूब पीटना । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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