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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रौंधा ओसाना ३७१ अोसाना-स० कि० दे० (सं० आवर्षण ) श्रोहट -संज्ञा, स्त्री० (दे०) श्रोट, आड़। दाँये हुए अनाज को हवा में उड़ाना, जिससे अोहर-क्रि० वि० (दे०) उधर (हि.) दाना और भूसा अलग अलग हो जाय। संज्ञा, पु० (दे०) श्रोट, अोझल । संज्ञा, ओसरी* ( ग्रोसरा)-संज्ञा, पु० (दे०) पु. ( दे० ) आहार-परदा, आड़ । बारी, पाली, दाँव, क्रम, पारी।। उहार (दे० ) उहर (दे०)। अोसार -संज्ञा, पु. ( दे० ) (सं० ओहदा-संज्ञा, पु. (अ.) पद, स्थान, अवसार = फैलाव ) विस्तार। हुदा (दे०)। संज्ञा, पु० (अ०) ओहदेओसारा-संज्ञा, पु० (दे०) (सं० उपशाला) दार-पदाधिकारी, हाकिम ।। दालान, बरामदा, भोलारा का छाजन, सायबान । स्त्रो० ओसारी। प्रोही- सर्व० ( दे० ) उसे, वही। ओसीसा ( उसीसा )--संज्ञा, पु० (दे०) "चातक रटत तृषाप्रति श्रोही"-रामा० सिरहना, तकिया। | ओहि सर्व० (दे०) विभक्ति के पूर्व का रूप। अोह-अव्य० (सं० अहह ) श्राश्चर्य, खेद, ग्रोही-अव्य० (सं० ) पाश्चर्य या प्रानन्दया उपेक्षा सूचक शब्द, श्रोहो, पोहो हो। सूचक शब्द, अहो । औ-संस्कृत-वर्ण माला का चौदहवाँ और या उभड़ा हुआ किनारा, बारी, छोर, अोठ । हिन्दी-वर्णमाला का ग्यारहवाँ स्वर वर्ण, औंड-संज्ञा, पु० दे० ( स० कुंड ) बेलदार, अ-+ो का संयुक्त वर्ण जो कंठ और मिट्टी खोदने या उठाने वाला। श्रोष्ट से बोला जाता है। अव्य० (दे० औंडा--वि० दे० (सं० कुंड) गहरा, गंभीर । अल्प० ) और, आह्वान, सम्बोधन विरोध, स्त्री० औड़ो। वि० उमड़ा हुआ। निर्णय-सूचक । संज्ञा, पु० (सं० ) अनन्त, औंदना*-अ० कि० दे० (सं० उन्माद, निस्वन । उद्विग्न ) उन्मत्त होना, व्याकुल या बेसुध औं-अव्य० दे० (सं० ) शूद्रों का प्रणव होना, घबराना। वाचक (ों)। औंदाना-प्र० कि० दे० (सं० उद्विग्न ) ओंगा-वि० दे० (सं० अवाक् ) गूंगा, बना, दम घुटने से घबराना या व्याकुल मूक । संज्ञा, स्त्रो० ओंगो-चुप्पी, मौनता. होना, विकल होना। खामोशी, गंगापन । । औंधना-अ. क्रि० (हि० औंधा ) उलट औंगना-स० क्रि० (दे०) देखो "ओंगना''. जाना । स० कि. उलटा कर देना। गाड़ी की धुरी में तेल देना। औंधा-वि० दे० (सं० अधामुख ) उलटा, औंघना (औंघाना ) अ० क्रि० दे० (सं० पेट के बल लेटा हुआ, पट, नीचे मुख किये अवाङ्) ऊँघना, अलसाना । संज्ञा, स्त्री० (दे०) हुये। स्रो० औंधी। औंघाई-झपकी, ऊँघ, हलकी नींद। मु०-औंधी खोपड़ी का-मूर्ख, जड़। औजना-अ० कि० दे० (सं० आवेजन) ओंधी बुद्धि (समझ) उलटी या जड़ बुद्धि ऊबना, व्याकुल होना, अकुलाना। क्रि० औंधे मुंह गिरना-धोखा खाना, नीचा स० (दे० ) उड़ेलना, ढालना। देखना । संज्ञा, पु० (दे०) उलटा या यौंड-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्रोष्ठ ) उठा चिल्ला नामक पकान्न । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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