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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org उपांत्य ३४१ उपाय IT भाग, आस-पास का हिस्सा, प्रांत, भाग, ! उपादेयता संज्ञा, स्त्री० (सं० ) उत्तमता, उत्कर्षता । छोटा किनारा । वि० निकट, अंतिक । उपांत्य - वि० (सं० ) अंत वाले के समीप वाला, अंतिम से पूर्व का । उपाई-स० क्रि० दे० (सं० उत्पन्न ) उत्पन्न की, रची, उपजाई, बनाई " जेहि सृष्टि उपाई " - रामा० । संज्ञा स्त्री० (दे० ) उपाइ ( उपाय - सं० ) । उपाऊ – संज्ञा, पु० दे० (सं० उपाय ) यत्र, उपाय, इलाज | उपाकर्मसंज्ञा, पु० (सं० ) धारम्भ, वर्षा कालोपरान्त वेदारम्भ का समय, एक संस्कार | उपाख्यान - संज्ञा, पु० (सं० उप + आ + ख्या + श्रनट् ) प्राचीन कथा, पुराना वृत्तान्त, किसी कथा के अंतर्गत कोई अन्य कथा, आख्यान, वृत्तान्त । उपखान ( दे० ) कहानी, लोकोक्ति । यह उपखान लोक सब गावै "-: " - स्फुट० 1 उपाटना -- स० क्रि० दे० (सं० उत्पादन ) उखाड़ना । उपाड़ना-स० क्रि० दे० (सं० उत्पादन ) उखाड़ना । उपात - वि० सं०) गृहीत, प्राप्त । उपातिक-संज्ञा स्त्री० (दे०) उत्पत्ति (सं० ) । उपादानसंज्ञा, पु० (सं० उप + आ + दा + श्रनट् ) प्राप्ति, ग्रहण, स्वीकार, ज्ञान, बोध, परिचय, अपने अपने विषयों की ओर इंद्रियों का जाना, प्रत्याहार, प्रवृत्ति जनक ज्ञान, स्वयंमेत्र कार्य रूप में परिणत होने वाला कारण, किसी वस्तु के तैय्यार होने की सामग्री, चार श्राध्यात्मिक तुष्टियों में से एक जिसमें मनुष्य एक ही बात से पूरे फल की आशा करके प्रयत्न छोड़ देता है ( सांख्य ) । उपादेय वि० (सं० उप + आ + दा + य ) ग्रहण करने के योग्य, लेने लायक, उत्तम, श्रेष्ठ, ग्राह्य, उत्कृष्ट, विधेय कर्म, उपयोगी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir fi उपाध-संज्ञा, पु० (दे० ) उपद्रव, अन्याय | उपाधि--संज्ञा, स्त्री० (सं० ) और वस्तु को और बतलाने का छल, कपट, वह जिसके संयोग से कोई वस्तु और की और अथवा किसी विशेष रूप में दिखाई दे, उपद्रव, उत्पात, कर्तव्य का विचार, धर्म-चिंता. प्रतिष्ठा या योग्यता सूचक पद, ख़िताब | विघ्न, बाधा, अत्याचार | उपाधी (दे० ) । मोहि कारन मैं सकल उपाधी " रामा० । वि० उपाधी - (दे० ) उपद्रवी, ऊधमी । उपाध्याय संज्ञा, पु० (सं० उप + अधि + इङ् + घञ् ) वेद-वेदांग का पढ़ाने वाला, श्रध्यापक, शिक्षक, गुरु, ब्राह्मणों का एक भेद । उपध्या (दे० ) । उपाध्याया— संज्ञा, स्त्री० (सं०) श्रध्यापिका । उपाध्यायानी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) उपाध्याय की स्त्री, गुरु- पत्नी । उपाध्यायी संज्ञा स्त्री० (सं० ) श्रध्यापकभार्या, गुरु- पलो, पढ़ाने वाली, अध्यापिका । उपानत् संज्ञा स्त्री० (सं० ) उपानह ( दे० ) पादुका, जूता । उपानह- संज्ञा, पु० (सं० ) पादुका, जूता, नहीं, पदत्राण | रु पाँय उपानह की नहि सामा - सुदा० । उपाना स० क्रि० दे० (सं० उत्पन्न ) उत्पन्न करना, पैदा करना, सोचना, उपार्जन करना, कमाना, करना, रचना, " हौं मनते विधि पुत्र उपायों . के० । उपाय -संज्ञा, पु० (सं० उप + आ + इ + अल् ) पास पहुँचना निकट थाना, श्रभीष्ट तक पहुँचाने वाला, साधान, युक्ति, तदबीर, शत्रु पर विजय पाने की चार युक्तियाँ - "" "" ". "" साम, दाम, रु दंड, नीति ) श्रंगार के दो साधन, विभेदा - ( राजसाम और दान, उपचार, प्रयत्न । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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