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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - उछलवाना ३०४ उजरना साथ एकबारगी देह को इस प्रकार क्षण उछिन्न-वि दे० (सं० उच्छिन्न ) खंडित, भर के लिये ऊपर उठा लेना, जिससे पृथ्वी निर्मल । का लगाव छूट जाय, कूदना, अत्यंत प्रसन्न उछिष्ट-वि दे० (सं० उच्छिष्ट ) भोजनावहोना, खुशी से फूलना, रेखा या चिन्ह शिष्ट, जूठा, दूसरे का वर्ता हुआ। का स्पष्ट दिखाई पड़ना, उपटना, चिन्ह ! उछीनना-स० क्रि दे० (सं० उच्छिन्न) पड़ना, उभड़ना, उतराना, तरना। उच्छिन्न करना, उखाड़ना, नष्ट करना । उछलवाना--स० क्रि० (हि० उछलना का ! उछीर-संज्ञा, पु० दे० ( हि. छीर = प्रे० रूप ) उछलने में प्रवृत्त करना । किनारा) अवकाश, जगह. छेद, रिक्त स्थान । उछलाना-स० क्रि० (हि. उछालना का | उछेद-संज्ञा पु० दे० (सं० उच्छेद ) खंडन, प्रे० रूप ) उछालने में प्रवृत्त करना । नाश । उछाँटना-स० कि० दे० ( हि० उचाटना ) | उजट-संज्ञा, पु. दे. (सं० उटज ) उटज उचाटना, उदासीन करना, विरक्त करना, नामक एक प्रकार की घास से बनी कुटी, पर्ण-कुटी । *स० कि० (हि० छाँटना) छाँटना, चुनना। उचारना*-स० कि० (दे०) उछालना उजड़-वि० (दे० ) उतावला, उच्छखल, (हि०)। संज्ञा, स्त्री० उछार (उछान्ल) चौगान, शून्य, जनशून्य स्थान, अप्रवीण, उजर---उजड्ड (दे० )। एकाएक ऊपर उठना, ऊँचाई. छोटा, ऊपर उजडना-अ. क्रि० (सं० अव =उउठता हुअा जल-कण, कै, वमन । नहीं-+जड़ना --- हि० ) उखड़ना, उचड़ना, उकाल-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० उच्छालन ) उच्छिन्न होना, ध्वस्त होना, गिर पड़ना, सहसा ऊपर उठने की क्रिया, फलाँग, तितर-बितर होना, बरबाद होना, नष्ट चौकड़ी, कुदान, ऊँचाई जहाँ तक कोई होना, वीरान होना, बिखरना, उजाना । वस्तु उछल सकती है। उलटी, कै. वमन | उलटा, ज. वमन उजडवाना-स० कि० (हि. उजाड़ना, का प्रे० पानी का छींटा। रूप ) किसी को उजाड़ने में प्रवृत्त करना । उकालना-स० कि० दे० (सं० उच्छालन ) उजडा-वि० (दे० ) उजड़ा हुआ, विनष्ट, ऊपर की ओर फेंकना, उचकाना, प्रगट । वीरान, उजटा-(द. ) निर्जन, बरबाद । करना, प्रकाशित करना, उपटना। उजट्ट -- वि० दे० ( सं० उदंड ) वन उछालास-संज्ञा. पु. ( हि० उछाल ) जोश, मूर्ख, असभ्य, अशिष्ठ, उद्दड, निरंकुश, उबाल, वमन, कै, उलटी। संज्ञा, स्त्री० उजड़ता। उछाह-संज्ञा, पु० दे० (सं० उत्साह ) उजडुपन-संज्ञा, पु. (दे० ) उदंडता, उत्साह, उमंग, हर्ष, उत्सव, आनंद की | असभ्यता, उजड्डुता। धूम, जैन लोगों की रथ-यात्रा, इच्छा, उजबक- संज्ञा, पु. (तु.) तातारियों की उत्कंठा, " " मन अति उठ्यौ उछाह " --- एक जाति । वि० उजड्ड, बेवकूफ़, मूर्ख, सूर० " भुवन चारि दस भरयो उछाहू" । अनारी । संज्ञा, पु. एक प्रकार की घास । --- रामा०। उजरत--संज्ञा, स्त्री. (अ.) मजदूरी, उछाही —वि० (दे० उछाल ) उत्साह किराया, भाड़ा । कि० अ० (हि. उजड़ना) करने वाला, उत्साही, हर्ष या अानंद मनाने उजड़ते हुए। वाला, " तब सुकाल महिपाल राम के है है उजरना* - प्र. क्रि० ( दे. ) उजड़न प्रजा उछाही"- रघु०। (हि.) नष्ट होना। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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