SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उघारना ३०१ उचाटन उघारना -स. क्रि० (दे०) उघाड़ना विरक्त होना, उदास होना, मन न लगना । (हि.) " सखी बचन सुनि सकुचि सिय, भूलना “ उचटत फिर अंगार गगन लौं सूर दीन्हें दृगनि उघारि' -रघु० " नीके निरखि ब्रज ज्ञान बेहाल "--सूर० । जाति उधारि श्रापनी '... सूबे०, “आये | उचटाना-स० कि० दे० (सं० उच्चाटन ) है तिलोचन तेंलोचन उघारि दै"-- उचाइना, नोचना, अलग करना, छुड़ाना, " सरस"। वि० उधार-उघारा-नग्न, उदासीन करना, विरक्त करना, भड़काना, खुला हुआ। स्त्री० वि० उघारी-नड़ी, | बिचकाना भुलाना । " जब ब्रज की बातें खुली हुई। "हाय दुरजोधन की जंव | यह कहियत तबहिं तबहिं उचरावत "पै उघारी। बैठि..." --रतनाकर । वि० सूर०। उघारू-प्रकाशक, उधारने वाला। उचड़ना-प्र० कि० दे० (सं० उच्चाटन ) उघेलना8-स० कि० दे० (हि उघारना) सटी या लगी हुई चीज़ का अलग होना, खोलना। " को उजियार करै जग झापा | पृथक होन', किसी स्थान से हटना, जाना. चंद उघेलि"-प० । भागना। उचंग-उछंग-संज्ञा. पु. ( दे. ) उमंग। उचना-प्र. क्रि० (दे० ) ऊँचा होना, उच-अव्य० (दे० ) उच्च ( सं० ) ऊँचा । ऊपर उठाना। स० कि. ऊँचा करना, उचकन-संज्ञा, पु० दे० (सं० उच्च + " भौंह उचै अाँचर उलटि, मोरि मारि करण ) इंट, पत्थर आदि का टुकड़ा जिसे | मुँह मोरि "--वि० । अ० कि. (स. नीचे रख कर किसी चीज़ को ऊँचा करते । रूप० ) उचाना, उठाना । संज्ञा, स्त्री० हैं। संज्ञा, पु० (हि. उचकना ) उचकना। उननि-उठान, उभाड़। उचकना-प्र. मि.० दे० (सं० उच्च + उचरंग:--संज्ञा, पु० दे० (हि. उछलना+ करण ) ऊँचा होने के लिये पैरों के पंजों अंग ) उड़ने वाला, कीड़ा, पतंग, पतिंगा। के बल एंडी उठा कर खड़ा होना ऊपर उचरना* -- स० कि० दे० (सं० उच्चारण ) उठना, उछलना, कूदना, स्थान से हटना । उच्चारण करना, बोलना । " चढ़ि गिरिस० क्रि० उछल कर लेना, लपक कर सिखि सब्द इक उचर्यो "- सूर० । छीनना। क्रि० अ०-मुँह से शब्द निकलना, धीरेउचका -- कि० वि० दे० (हि. अचाका) धीरे चलना. काक का एक विशेष प्रकार से अचानक, सहसा। बोलना और चलना ( शकुन विशेष) उचकाना--स० कि० दे० (हि. उचकना । __ " उचरहु काकः पीय मम श्रावत" । कि० का स. रूप०) उठाना, ऊपर करना । अ० (दे०) उचड़ना, उचलना। "केतिकलंक उपारि वाम कर लै आवै । उचाकना-कि० अ० (दे०) बिलगाना, ऊचकाय"--सूरा० । अलग करना, क्रि० स० (प्रे०) उचालनाउचक्का-संज्ञा, पु० (हि. उचकना) उचक | उखाड़ना, ऊपर उठाना। कर चीज़ ले भागने वाला, चाई, ठग, | उचाट-संज्ञा, पु० दे० (सं० उच्चाट ) बदमाश, छली, पाखंडी । स्त्री० उचक्किन । मन का न लगना, विरक्ति, उदासीनता, सचटना-क्रि० प्र० दे० (सं० उच्चाटन ) । उदासी, "भा उचाट बस मन थिर नाही" जमी हुई वस्तु का उखड़ना, उचड़ना, -रामा० । चिपका या जमा न रहना, अलग होना, | उचाटन -संज्ञा, पु० दे० (सं० उच्चाटन ) पृथक होना, छूटना, भड़कना, विचकना, | उच्चाटन, विरक्ति । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy