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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८७ इमरती इधर का उधर हाना-उलट-पलट होना, | इनारा-संज्ञा, पु० दे० (सं० इन्दारा) व्यतिक्रम होना, अव्यवस्थित, या तितर- कूप, पक्का कुआँ । बितर होना, नष्ट होना। इनारुन-संज्ञा, पु० (दे०) इद्रायण का में इधर की कहना न उधर को..- फल (सं.)। पक्षापक्ष में किसी के भी सम्बन्ध में कुछ " अमृत खाइ अब देखि इनारुन, को भूखा न कहना। जो भूलै "-हरि० न इधर हाना न उधः-न पक्ष में होनाइनगिन-वि० दे० ( अनुः इन--- गिनना) न विपक्ष में, तटस्थ रहना। कपियय, कुछ थोड़े से, चुने-चुनाए, चुनिंदा । न इधर का होना न उघर का-दो ! इन्ह®---सर्व० (दे० ) इन (हि. ) जैसे उद्देश्यों में से किसी का भी सफल न होना। इन्होंने, इन्हकर ।। न इधर के रहन उधर के रह-न तो । इप्सु-वि० (सं०) ईप्सित, इच्छुक, लोभी। इस लोक को ही सार्थक किया और न उस इफरात-संज्ञा, स्त्री. (अ.) अधिकता, लोक को ही, भुक्ति और मुक्ति दोनों न। बाहुल्य । मिली, दो पक्षों में ( पतापत ) से किसी इबरानी-वि० (प्र.) यहूदी। ओर भी न रहना किसी काम का न संज्ञा, स्त्री० पैलिस्तान देश की प्राचीन रहना, असफल और व्यर्थ प्रयास होना।। भाषा । इध्म-संज्ञा, पु० ( सं० ) भाग सुलगाने की इबादत--संज्ञा, स्त्री० ( अ० ) पूजा, अर्चा, लकड़ी, इंधन । उपासना। इन-सर्व० (हि. इस ) इस का बहबचन ।। इबारत--संज्ञा, स्त्री. (अ.) लेख, लेखसंज्ञा, पु० (द०) सूर्य, समर्थ, राजा, प्रभु मा. शैली, लिखा हुआ। ईश्वर, हस्ति, नक्षत्र, १२ की संख्या। वि० इबारती---गद्यात्मक ।। इनकार-संज्ञा, पु० (अ० ) अस्वीकृति, । इभ-संज्ञा, पु० (सं० ) गज, कंजर, हाथी, नामंजूरी, इसरार का विलोम । समान. सदृश, नाई, तरह । यौ०-इभपालक-संज्ञा, पु. ( सं० ) इनसान-संज्ञा, पु. (अ.) मनुष्य । महावत । इनसानियत--संज्ञा, स्त्री० (अ. मनुष्यता, इभेश-संज्ञा, पु. ( सं० ) ऐरावत, गजेन्द्र, मनुष्यत्व प्रादमियत, बुद्धि. शऊर. भल. । इभेद्र। ममसी, सौजन्य । इभ्य-वि० (सं०) धनवान, हाथीवान् । इनाम-संज्ञा, पु० दे० (अ. इनग्राम ) इमदाद-संज्ञा, स्त्री० ( अ. ) मदद, पुरस्कार, उपहार, बखशिश, पारितोषिक । । सहायता। यो० इनाम-इकराम-कृपा पूर्वक दिया। क दिया - वि० इमदादा--मदद दिया हुआ, सहायता. गया पुरस्कार, पारितोषिक । प्राप्त। " मेहनत करो इनाम लो इनाम पर इमन-संज्ञा, पु. ( दे०) स्वर का मिलान, इकराम लो"~ एक रागिनी। इनायत-संज्ञा, स्त्री० (अ.) कृपा, दया, । यो० इमनकल्पान - एक रागिनी। अनुग्रह, एहसान । इमरती--संज्ञा, स्वा० दे० (सं० अमृत) मु०-इनायत करना- दया करके देना।' एक प्रकार की जलेबी जैसी मिठाई । या० इनायलनामा---कृपापत्र । अमिरती, श्रमरती। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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