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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रात्मष्टि २३७ प्रात्मलय - प्रात्मदृष्टि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) ज्ञान-दृष्टि । आत्मबोध-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) वि० श्रात्मद्रष्टा, भात्मदर्शक । श्रात्मज्ञान, ईश्वर-ज्ञान। मात्मनिंदा-संज्ञा, स्त्री० यो० (सं.) श्रात्मवाणी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) अपनी बुराई, अपनी निंदा, अपनी आत्मा का कथन-प्रात्मगिरा, अंतःकरण अवहेलना। का शब्द, ब्रह्मयात्मनिदेश-संज्ञा, पु. यो. ( सं० ) अात्मभाव-संज्ञा. पु० यौ० (सं० ) अपनी आत्माज्ञा, आत्मादेश, अपनी प्रात्मा का प्रात्मा का सा सब पर भाव रखना, हुक्म या आज्ञा, ईश्वराज्ञा। समदृष्टि। अात्मनिवेदन-संज्ञा, पु. यो. (सं०) प्रात्मभ-वि० यौ० (सं०) अपने शरीर से अपने यापको या अपना सर्वस्व अपने इष्ट उत्पन्न, आप ही श्राप उत्पन्न होने वाला, देव पर चढ़ाना, श्रात्म-समर्पण, (नवधा- स्वयंभू ।। भक्ति में से एक ) प्रारम-विनय, अपने संज्ञा, पु. ( सं० ) पुत्र, कामदेव, ब्रह्मा, विष्णु सम्बन्ध में आप ही कहना। शिव, स्वयंभू। श्रात्म-निर्णय-संज्ञा, पु. यो० (सं०) मात्मम्भरि-वि० (सं० ) अपना ही पेट अपना निर्णय, अपना निश्चय, अपने श्राप पालने वाला, स्वार्थी, खुदग़र्ज़, मतलबी। किसी प्रश्न का निर्णय कना, प्रात्म यात्ममहिमा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) निश्चय। अपनी बड़ाई। श्रात्मनीय- संज्ञा, पु० (सं० ) पुत्र, तनय, आत्म-मंत्रणा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) सुत, आत्मज, शाला ( साला-दे० ) अंतःकरण की अनुमति, सलाह । विदूषक। प्रात्ममोह-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) ममता, आत्मनेपद-संज्ञा, पु० ( सं० ) क्रिया का | अज्ञान। चिन्ह या भेद विशेष । आत्मयोनि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ब्रह्मा, प्रात्मप्रभाष-संज्ञा, पु. (सं०) अपना विष्णु, शिव, कामदेव । या अपनी आत्मा का प्रभाव।। प्रात्मप्रशंसा-संज्ञा, स्त्री. यो० (सं०) प्रात्मरक्षा-संज्ञा, स्त्री० यो० (सं० ) अपनी रक्षा या बचाव। अपने मुँह अपनी बड़ाई। वि. प्रात्मप्रशंसक-अपने मुख अपनी वि० आत्मरक्षक-अपनी रक्षा करने प्रशंसा करने वाला प्रात्मश्लाघी। वाला। संज्ञा, स्त्री० श्रात्मप्रशस्ति-अपनी संज्ञा, पु० (सं०) आत्मरक्षण । बड़ाई। श्रात्मरत-वि० यौ० (सं०) प्रात्मा में आत्म-प्रीति-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) अपना लीन, आत्मज्ञान में लगा हुआ, ब्रह्मज्ञान में प्रेम, स्वार्थ । लीन, ब्रह्मज्ञान-प्राप्त । वि० श्रात्मप्रेमी-स्वार्थी, मतलबी। प्रात्मरति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) प्रात्मा प्रात्म-प्रतीति-संज्ञा स्त्री. ( सं० ) अपना या ब्रह्म में लीनता, प्रारमज्ञान में अनुराग । विश्वास, आत्म विश्वास, अपना भरोसा। प्रात्म-लाभ-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) श्रात्मप्रेम-संज्ञा, पु० (सं० ) अपने पर उत्पत्ति, स्वलाभ, स्वार्थ । प्रेम, अपनी प्रात्मा पर प्रेम, प्रात्म- प्रात्मलय-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) ब्रह्म में प्रणति। । लय हो जाना, मुक्त, मोक्ष । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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