SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Roma अंतपाल प्रांत फँसना, अंतड़ियों में बल पड़ना-पेट का मूलाधारादि कमलाकार के छः चक्र, प्रात्मीय ख़ाली होना, अंतड़ियां, मिलना---एक वर्ग, बंधु-बाँधव-मंडल । होना, पैंतड़ियों के बल खोलना- बहुत अन्तरजामी-संज्ञा, पु० (सं० अन्तर्यामी ) समय में भोजन मिलने पर खूब भर पेट मन की बात जाननेवाला, ईश्वर । खाना। ग्रात उतरना- एक रोग जिसे | अन्तर दिशा-संज्ञा, स्त्री० यौ (सं० ) दो हानिया कहते हैं, अंत्रवृद्धि । दिशाओं के मध्य की दिशा, कोण अंतपाल- संज्ञा, पु. (सं० ) यौ०-द्वार- विदिशा। पाल, ड्योढ़ीदार, संतरी, पहरू, दरबान, अन्तर दशा-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) मन राज्य की सीमा का रक्षक, पहरेदार, प्रतिहारी। की हालत, ज्योतिष में ग्रहों की चाल का अन्तरंग-संज्ञा. पु. ( सं० अंतर । अंग ) विधान, जिससे मानव-जीवन प्रभावित भीतरी, बहिरंग का विपरीत, अत्यंत समीपी, । होता है। अभिन्न, घनिष्ट, गुप्त बातों का जाननेवाला, | अन्तरपट-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) परदा दिली, जिगरी, मानसिक, अंतःकरण ।। भीतरी भाड़, श्रोट, पाड़ करने का कपड़ा, अंतर-संज्ञा, पु० (सं० ) भेद, विभिन्नता, विवाह-मंडप में मृत्यु की आहुति के समय फर्क, अलगाव या विलगता, बीच, मध्य, अग्नि और वर-कन्या के मध्य में डाला हुआ दर्मियान का फासला, दूरी, अवकाश, वस्त्र या परदा, छिपाव, दुराव, धातु या मध्यवर्ती स्थान या समय, श्रोट, भाड़ औषधि को फूंकने के प्रथम, उसको संपुट व्यवधान. परदा, छिद्र, छेद, रंध्र। कर गीली मिट्टी का लेप करते हुए कपड़ा अंतर्धान, अंतर्हित-ग़ायब, गुप्त, लोप, लपेटने की विधि या क्रिया, कपड़कोट, छिपना, दूसरा, अन्य, और-कालान्तर- कपड़-मिट्टी, कपड़ौरी। क्रि० वि० दूर, अलग, पृथक, जुदा बिलग, | अंतरीय-वि० भीतरी, संज्ञा, पु० (सं० ) संज्ञा, पु. (सं० अंतस् ) हृदय, अंतःकरण, अधोवस्त्र । क्रि० वि०-भीतर, अंदर।। अंतर संचारी-संज्ञा, पु० ( सं०-अंतर+ मु०-अंतर रखना, या करना, भेद-भाव संचारी ) संचारी भाव ( काव्य-साहित्यरखना या करना। शास्त्र) अंतर पड़ना - श्राना-वैमनस्य, विगाड़ | अंतरस्थ-वि० (सं० अंतर+स्थ ) अन्दर होना, भेद पड़ना। रहने वाला, भीतरी, अंदर का। अँतरछाल-- संज्ञा, यौ० स्त्री० (हि. अंतर+ | अंतरा-क्रि० वि० (सं० अन्तर ) मध्य, छाल ) पेड़ की भीतरी छाल, गाभा। निकट, रिवाय, अतिरिक्त, पृथक, बिना, सं० अंतर अयन-संज्ञा, पु० (सं० ) यौ० - | पु०-किसी गीत या गान के स्थायी या टेक अन्तर+अयन-अन्तर्गृही, तीर्थों की पद के अतिरिक्त और अन्य पद या चरण एक विशेष परिक्रमा । (संगीत०) प्रातः तथा संध्या के मध्य का अन्तर चक्र-सं० पु० (सं०) यौ० अंतर+ समय, दिन, एक प्रकार का ज्वर जो एक दिन चक्र—दिशाओं और विदिशात्रों के मध्यवर्ती | का व्यवधान देकर आता है, अतरा (दे०) । अंतर को चार समभागों में बाँटने से होने । अँतग- संज्ञा पु० (सं० अंतर )-दे० अंझा, वाले ३२ भाग । दिग्विभागों में पक्षियों के | नागा, बीच, अन्तर, व फ़क़, एक दिन का शब्द श्रवण कर शुभाशुभ फल कहने की नागा देकर श्रानेवाला ज्वर । विद्या, तंत्रशास्त्रानुसार शरीर के आंतरिक प्रतिर संज्ञा पु० (दे०) बीच, अंझा, नागा। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy