SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शिव १८७ शिव - वि० (सं० ) अमंगल अशुभ | प्रशिशिर - वि० ( सं० ) अशीतल, उष्ण, गर्म । प्रशिश्विका—संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अनपत्या पुत्र-कन्या -हीन स्त्री, निपूती । प्रशिष्ट - वि० (सं० ) उजड्ड, बेहूदा, सभ्य, मूर्ख, प्रगलभ, दुरन्त, साधु । प्रशिष्टता-संज्ञा, भा० स्त्री० (सं० ) श्रसाधुता, ढिठाई, असभ्यता, बेहूदगी, उजडुपन | अशुचि - वि० (सं० ) अशुद्ध, अपवित्र, पुनीत, गंदा, मैला, मलीन, अस्वच्छ, शौच । शुद्ध - वि० (सं० ) अपवित्र नापाक बिना शोधा हुआ, असंस्कृत, ग़लत, अपरिष्कृत अशुचि, जो ठीक या सही न हो । प्रशुद्धता - संज्ञा, स्त्री० भा० (सं० ) थपवित्रता, गंदगी, ग़लती, त्रुटि, अशोधन, भूल । प्रशुद्धि-संज्ञा स्त्री० (सं० ) अशुद्धता | प्रशुन – संज्ञा, पु० दे० (सं० अश्विनी ) अश्विनी नामक एक नक्षत्र । अशुभ संज्ञा, पु० (सं० ) श्रमंगल, अहित, पाप, अपराध । वि० (सं०) बुरा, ख़राब, अमंगलकारी । अशुभचिन्ता – संज्ञा स्त्री० यौ० (सं० ) बुरा चिन्तन, अनिष्ट विचार, या सोचना । वि० शुभ चिन्तक | श्रशुभदर्शन -संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) जिसका देखना मंगलकारी हो, बुरे रूप का, अपशकुन, पापी, बुरे लक्षण या चिन्ह | शुभदर्शक - वि० यौ० (सं० ) अशुभदर्शी, बुराई या पाप या अपशकुन देखने वाला । मु० - अशुभ मनाना - बुरा चेतना, किसी के लिये अमंगल कामना करना, शाप देना । अशोक अशुभ होना - अपशकुन या बुरा होना । श्रशुभेच्छु - वि० (सं० यौ० ) अशुभैषी, बुरा चाहने वाला । अशून्यशयनवत -संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) श्रावण कृष्ण द्वितीया को किया जाने वाला एक व्रत विशेष । अशेष - वि० (सं० ) पूरा, समूचा, समाप्त, अनंत, बहुत, निश्शेष, जो शेष न रहे । अशेषज्ञ - वि० (सं० ) सर्वज्ञ, सर्ववित्. सब जानने वाला । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संज्ञा, स्त्री० श्रशेषज्ञता । प्रशेषतः -- भव्य ० ( अशेष + तस् ) सब प्रकार से, अनेक रूप से, बहुत भाँति । अशेष- विशेष - भव्य ० यौ० (सं० ) अनेक प्रकार से, बहुत रूप से, अनेक भाँति, विविध प्रकार | अशोक - वि० सं०) शोक - रहित, दुखशून्य, सुख । संज्ञा, पु० एक प्रकार का पेड़ जिसकी पत्तियाँ आम की तरह लम्बी लम्बी और किनारे पर लहरदार होती हैं । सुनहु विनय मम विटप अशोका " 66 रामा० । 16 जनु शोक - श्रंगार " - रामा० । पारा । एक राजा विशेष जो मौर्य वंशीय सम्राट विन्दुसार का पुत्र और चन्द्रगुप्त का पौत्र था, यह २५ वर्ष की ही श्रायु में शत्रुओं को हरा कर सिंहासनारूद हुआ, इनका दूसरा नाम शिलालेखों में प्रियदर्शी पाया जाता है, इनका राज्यकाल ईसा के २५७ वर्ष पूर्व से चलता है, प्रथम ये सनातन धर्मावलम्बी थे, राजा होने के ७ वर्ष बाद बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गये, आधा भारत इनके राज्य में था इन्हीं के समय में बौद्धमहासभा का द्वितीय अधिवेशन हुआ । इनके राज्य का प्रबंध बड़ा ही नीति -नयपूर्ण और सुन्दर था । वि० शोकित - शोक-रहित, दुःख-हीन । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy